PATNA : राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद आज ढाई साल के बाद पटना की धरती पर कदम रखनेवाले हैं। उनके आगमन को लेकर बिहार की राजनीति में एक नया उत्साह नजर आ रहा है। जहां राजद कार्यकर्ताओं में खुशी इस बात की है कि उनके भगवान आज पटना आ रहे हैं, वहीं एनडीए की खुशी इस बात की है लालू के आने के साथ बिहार में उन्हें जंगलराज के प्रतीक के तौर पर दिखाया जाएगा। जिससे जनता के बीच लालू का खौफ दिखाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी।
बेटों का झगड़ा सुलझाएंगे लालू
उप चुनाव के दौरान लालू प्रसाद पटना आ रहे हैं। अब चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि आखिरकार लालू ने पटना आने के लिए यह समय क्यों चुना। जबकि कुछ दिन पहले पत्नी राबड़ी देवी ने यह कहा था कि वह अभी पटना नहीं आएंगे। जवाब स्पष्ट है कि लालू के दोनों बेटों के बीच मनमुटाव इस कदर बढ़ चुका है कि इसे दूर सिर्फ लालू प्रसाद ही कर सकते हैं और यह काम दिल्ली में रहकर करना संभव नहीं है। अगर ऐसा होता है तो खुद को अकेले बता चुके तेजस्वी को मजबूत सहारा मिल जाएगा।
तेजस्वी भी एक बड़ा कारण
राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा थी कि लालू प्रसाद इसलिए पटना नहीं आना चाहते थे, क्योंकि वह अपनी राजनीतिक विरासत बेटे को सौंपने से पहले उन्हें पूरी तरह से तैयार करना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने तेजस्वी को पूरा मौका दिया और तेजस्वी ने इसे बखूबी अंजाम दिया। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। उप चुनाव में राजद को अपने सबसे पुराने साथी का साथ छूट गया है। कई लोग इसके लिए तेजस्वी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। तर्क दिया जा रहा कि उपचुनाव में कांग्रेस को दुश्मन बनाकर तेजस्वी ने मुसीबत को आमंत्रण दिया है। अब उनके सामने राजद के आधार वोट बैंक की हिफाजत बड़ी चुनौती बनकर आ रही है और इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए लालू को ही फिर से आगे आना पड़ रहा है।
कांग्रेस की तिकड़ी से मिल रही चुनौती
एक चुनौती कांग्रेस की नई तिकड़ी भी बनकर सामने आई है। कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी की तिकड़ी ने पटना आते ही जिस तरह लालू परिवार पर प्रत्यक्ष हमला बोला है, उसका भी भावार्थ निकाला जा रहा है। संसदीय चुनाव में बेगूसराय में राजद प्रत्याशी डा. तनवीर हसन को भाकपा के टिकट पर लड़ते हुए कन्हैया ने तीसरे नंबर पर ढकेल दिया था। राजद का मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावजूद एक हिस्से में कन्हैया के प्रति प्रेम उमड़ता दिखा था। जाहिर है, लालू का माय समीकरण पूरी तरह एकजुट नहीं रहा था। लालू की यात्रा का विश्लेषण इससे भी जोड़कर किया जा रहा है।
एनडीए के लिए लालू के आने का असर
वहीं दूसरी तरफ लालू के बिहार आने का असर एनडीए पर भी पड़ेगा। यह असर उनके लिए अच्छा भी है और बुरा भी। उप चुनाव में अगर लालू प्रचार के लिए तो विरोधियों को हथियार मिल सकता है। संबोधन में लालू सामाजिक न्याय की बात से परहेज नहीं कर सकते हैं। इसकी प्रतिक्रिया भी तय है। ज्यादा बोले तो तेजस्वी के तथाकथित प्रगतिशील चेहरे को झटका भी लग सकता है। एक वर्ग अभी भी ऐसा है, जिसकी नजरों में लालू खटकते हैं। वे राजद के विरोध में आक्रामक हो सकते हैं। एनडीए को यह राहत दे सकता है तो मुश्किल से भी इनकार नहीं किया जा सकता।