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लोगों ने कहा था अंधे लड़के को मरने छोड़ दो, जानिए कैसे वही लड़का बना 50 करोड़ की कंपनी का मालिक

लोगों ने कहा था अंधे लड़के को मरने छोड़ दो, जानिए कैसे वही लड़का बना 50 करोड़ की कंपनी का मालिक

डेस्क...आज आप को बताने जा रहें है जीने की इच्छा और कुछ कर गुजरने की हिम्मत से कोई भी कुछ भी बन सकता है. श्रीकान्त का जन्म आन्ध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके माता-पिता किसान थे. एक अंधे लड़के को जन्म देकर वह अपने आप को शापित मानते थे. श्रीकांत का बचपन जैसे काँटों से भरे बिछौने में ही गुज़र गया. परंतु इनकी दादी की तो जैसे जान ही उसमें बसती थी, बच्चे के हर दैनिक काम करने में उसकी मदद करती थी. श्रीकांत ही एक अकेला बच्चा था जिसे दूसरे बच्चों से अलग-थलग महसूस कराया जाता था. वह खेल के मैदान में खेलना चाहता था पर दूसरे बच्चे उसके साथ ऐसा बर्ताव करते कि मानो वह वहाँ मौजूद ही न हो. यह सब तकलीफें देखने के बाद उसके चाचा ने उसके माता-पिता को हैदराबाद के ब्लाइंड स्कूल में डालने का लिए सुझाव दिया. तब श्रीकांत को घर से लगभग 400 किलोमीटर दूर एक अलग ही परिवेश में भेज दिया गया जहाँ उसे घर की बहुत याद आती थी.

 उस माहौल में वह खुद को नहीं ढाल पाया और अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना वह वहाँ से भाग निकला. उसके चाचा ने उसे बाहर खोज निकाला और तब उन्होंने श्रीकांत से एक ही बात पूछी आखिर वह घर पर रह कर किस तरह की जिंदगी जीना चाहता है? यही वह क्षण था जिसमे उसका सब कुछ बदल गया. उसने अपने आप से यह वचन लिया कि उसके रास्ते में जो कुछ भी आयेगा उन सब में वह अपना उत्कृष्ट देगा. इसके लिए उसने बहुत मेहनत की और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. अपने स्कूल में दसवीं की परीक्षा में उसने प्रथम स्थान प्राप्त किया. उसका बहुत मन था कि वह साइंस में आगे की पढ़ाई करे पर उसे मज़बूरन आर्ट्स स्ट्रीम चुनना पड़ा. भारतीय शिक्षा पद्धति में नेत्रहीन बच्चों के लिए साइंस विषय था ही नहीं. लेकिन हमेशा की तरह श्रीकांत ने बाधाओं को नहीं देखा. उसने एक कोर्ट में एक मामला दायर किया और तब तक लड़ते रहे जब तक सभी भारतीय छात्रों के लिए पूरा कानून ही बदल नहीं गया. अपनी बोर्ड परीक्षा उसने 98 फीसदी नंबरों से पास की. श्रीकांत का भाग्य ही कुछ ऐसा था कि उन्हें कुछ भी कभी भी आसानी से नहीं मिला। वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई देश के अच्छे इंस्टिट्यूट से करना चाहते थे परंतु नेत्रहीनता की वजह से आईआईटी में उनका एडमिशन नहीं हो पाया. अस्वीकार किये जाने के बाद उन्होंने विश्व की प्रतिष्ठित मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में आगे की पढ़ाई के लिए आवेदन किया। वह पहले ऐसे नेत्रहीन छात्र थे जिन्हें एमआईटी में पढ़ने का मौका मिला था.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कॉर्पोरेट सेक्टर में नौकरी करने का निश्चय किया और भारत लौट आये। बाद में उन्होंने हैदराबाद में समन्वय नामक एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना की जिसमें छात्रों को व्यक्तिगत जरुरत के अनुसार और विकलांग छात्रों के लिए लक्ष्य आधारित सेवाएं प्रदान की जाती है. श्रीकांत ने विश्व को यह सिद्ध कर दिया कि आदमी में अगर इच्छा शक्ति कूट-कूट कर भरी हो तो वह हर अँधेरे को पार कर जाता है. 2012 में श्रीकांत ने बोल्लांत इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की जिसमें दिव्यांग लोगों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान किये जाते.

इस कंपनी में इको-फ्रेंडली उत्पाद बनाये जाते हैं जैसे-ऐरेका लीफ प्लेट्स, कप्स, ट्रेज और डिनर वेयर, बीटल प्लेट्स और डिस्पोजेबल प्लेट्स, चम्मच, कप्स आदि बाद में इसमें इन्होंने गोंद और प्रिंटिंग उत्पाद को भी शामिल कर लिया श्रीकांत के बिज़नेस मॉडल और क्रियान्वयन की सारी जिम्मेदारी रवि मंथ की थीं जिन्होंने न केवल श्रीकांत की कंपनी में इन्वेस्ट किया था बल्कि वह उनके मेंटर भी थे. आज उनकी कंपनी में 150 दिव्यांग लोग काम कर रहे हैं. उनकी सालाना बिक्री 70 लाख के पार हो चुकी है. रतन टाटा ने भी श्रीकांत को फण्ड प्रदान किया है. 2016 में श्रीकांत को बेस्ट इंटरप्रेन्योर के अवार्ड से नवाज़ा भी गया है.अगर हिम्मत और कुछ कर गुजरने का साहस हो तो इंसान कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है.

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