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किसान आंदोलन पर राज्य सभा में मनोज झा की हुंकार- लोकतंत्र में सुनना क्यों भूल गए आप, कहा - सत्ता का गुरुड़ लंबा नहीं चलता

किसान आंदोलन पर राज्य सभा में मनोज झा की हुंकार- लोकतंत्र में सुनना क्यों भूल गए आप, कहा - सत्ता का गुरुड़ लंबा नहीं चलता

नई दिल्ली। कृषि कानूनों को लेकर राज्यसभा सांसद मनोज झा ने केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। राजद सांसद ने कहा है कि लोकतंत्र में सुनना और सुनाना बहुत जरुरी है, लेकिन चिंता की बात है कि आप सुनना भूल गए और सिर्फ सुनाए जा रहे हैं। मनोज झा राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपना धन्यवाद संदेश पढ़ रहे थे। उन्होंने कहा कहा कि आज देश के रिश्ते रिस रहे हैं, जो बहुत खतरनाक है।

मनोज झा ने कृषि बिल पर पंचतंत्र की कहानी का जिक्र करते हुए बताया  कि एक राजा के पास कई हंस थे, जो उन्हें हर दिन एक पंख देते थे। एक दिन इन हंसों के बीच एक सोने के पंख देनेवाला पक्षी आया और उसने वहां रहने की इच्छा जताई, जब हंसों ने इसका विरोध किया तो वह राजा के पास चला गया और सोने के पंख देने की बात कही। जिसके बाद राजा ने उस पक्षी की बात मानकर अपने सभी हंसों को मरवा दिया। लेकिन इसके बाद वह सोने का पंख देनेवाला पक्षी भी उड़ गया। यह कहानी वर्तमान कृषि बिल पर बिल्कुल सही बैठती है।

सीमा पर नहीं दिखी ऐसी सुरक्षा


मनोज झा ने दिल्ली की सीमाओं पर की गई सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसी व्यवस्था अगर देश की सीमाओं पर की गई होती होती हमारे देश में घुसपैठ नहीं कर पाते, लेकिन अफसोस आप जहां सुरक्षा करनी चाहिए वहां ऐसी व्यवस्था नहीं करते हैं और जो किसान देश को अन्न प्रदान करते हैं उनके लिए दीवारें खड़ी कर रहे हैं। उन्होंने कहा जेपी आंदोलन इससे बड़ा था, लेकिन उस समय भी ऐसी स्थिति नहीं थी जैसा कि अब दिख रहा है। अगर आज जेपी आंदोलन होता तो कैसे हालात होते यह समझा जा सकता है।  किसानों को समझाने की जरुरत क्यों पड़ रही है। चिंता की बात यह है कि आज आंदोलनों को अलग नजरिए से देखा जाने लगा है। आंदोलन से जिस तरह से डील की जा रही है, वह सही नहीं है। किसानों से वार्ता करनेवाले मंत्री कहते हैं कि हमने उन्हें यह दिया, मेरा सवाल यह है कि आप यह खैरात बांटनेवाले कौन हैं।

303 अब चलन में नहीं

राजद नेता ने अपने संबोधन में 303 रायफल का जिक्र करते हुए कहा कि अब यह नहीं चलता है। सत्ता में बैठे लोग जो इस बात का दंभ भरते हैं, उन्हें इस बात को समझना चाहिए, आपके पास भी यही आंकड़े हैं और यह आंकड़े आपकों इन्हीं किसानों से मिला है, जिन्हें आप देशद्रोही और आतंकी बताने की कोशिश कर रहे हैं।  यह किसी कोल्ड स्टोरेज और गोदाम से नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस तरह का दंभ भरनेवालों को देश ने सबक सिखाया है, ऐसा न हो आपके साथ ही भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो। 

किसानों से बेहतर नहीं जानते आप

किसानों के हित की बात करनेवाली सरकार यह बताए कि क्या वह किसानों से बेहतर जानती है कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत। कृषि कानून को उन पर थोपा जा रहा है. उन्होंने कृषि बिल पर बिहार के एमएसपी का जिक्र करते हुए कहा कि 2006 में इसे खत्म कर दिया गया। आज बिहार की स्थिति यह है कि यहां किसान नहीं खेतिहर मजदूर रह गए हैं। अब यही व्यवस्था पूरे देश में लागू करने का प्रयास किया जा रहा है. जो हालत बिहार की है, इस कानून के लागू होने के बाद देश के दूसरे राज्यों में वही स्थिति होगी। आज बिहार की स्थिति सिर्फ लेबर सप्लाई वाला स्टेट बनकर रह गया है, जिसका काम है देश के राज्यों में मजदूर सप्लाई करना रह गया है। उन्होंने कहा कि चिंता की बात है कि आज सदन में कोई किसान नहीं है, जो इस बात का विरोध जताता. न हमारे नेता लालू प्रसाद यहां हैं, और न आपके पास कोई किसान नेता है। अगर वह रहते तो निश्चित रूप से यह बिल पास नहीं होता।

मुल्क रिश्तों से बनता है, जन गण मन से नहीं

मनोज झा ने कहा कि देश जन गण मन, देश भक्ति से नहीं, रिश्तों से बनता है, लेकिन आज जो स्थिति आपने बना दी है, उन रिश्तों में रिसाव होने लगा है। किसानों के साथ इस रिश्ते के पुल को मजबूत करने की जरुरत है, लेकिन आपने वहां पर किलों की दीवार खड़ी कर दी है। आपने उनके लिए पानी बंद कर दिया, शौचालय बंद कर दिया, ऐसा पड़ोसी मुल्क के साथ भी नहीं किया गया।


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