नालंदा: जिले के गिरियक प्रखंड के घोसरावां गांव स्थित मां आशापुरी मंदिर में शारदीय और वासंतिक नवरात्र में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है। महिलाएं बाहर से ही मां आशापुरी का दर्शन करेंगे। नवरात्र समाप्ति के बाद ही महिलाएं मंदिर में पूजा कर सकेंगी। इस प्राचीन मंदिर में तांत्रिक विधि से नवरात्र की पूजा होती है। इसी कारण महिलाओं के प्रवेश निषेध की परंपरा है। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को अभी तक निभाया जा रहा है। नियमों के अनुसार शारदीय नवरात्र के दौरान महिलाओं का मंदिर परिसर के साथ ही गर्भगृह में जाने की मनाही होती है। वहीं वासंतिक नवरात्र में मंदिर में प्रवेश तो होता है, लेकिन गर्भगृह में जाने पर प्रतिबंध रहता है।
सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा
पुजारी पुरेंद्र उपाध्याय बताते हैं कि सैकड़ों सालों से यह परंपरा चली आ रही है, जिसे हमलोग आज भी निभा रहे हैं। इसमें कोई तब्दीली करने के संबंध में अभी तक कोई बात नहीं हुई है। इसी कारण नियम को सब लोग मानते हैं।
अष्टभुजी है मां की प्रतिमा -
पं. बालमुकुंद उपाध्याय बताते हैं कि मां आशापुरी का यह मंदिर अतिप्राचीन है। इसकी स्थापना मगध साम्राज्य के पालकाल में माना जाता है। यहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है जो मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप में पूजित हैं। घोसरावां मंदिर के पुजारियों के मुताबिक इस मंदिर में सबसे पहले राजा जयपाल ने पूजा की थी। मंदिर की स्थापना के पीछे की कहानी यह है कि यहां एक गढ़ हुआ करता था जिसपर मां आशापुरी विराजमान थीं। गढ़पर ही आज भी मां का मंदिर बना हुआ है। सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं मां आशापुरी। यहां हर मंगलवार को काफी भीड़ जुटती है।