पटना. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री आलोक कुमार मेहता ने बिहार के सभी 38 जिलों के भू अर्जन पदाधिकारियों के साथ मासिक बैठक की। इस दौरान मंत्री आलोक मेहता ने कहा कि सरकारी कार्यों के निष्पादन में अनावश्यक विलंब से विकास की रफ्तार पर बुरा असर पड़ता है और देश की तरक्की बाधित होती है। भू-अर्जन पदाधिकारी रैयतों को मुआवजा भुगतान में तेजी और पारदर्शिता लाएं ताकि विभाग की बदनामी नहीं हो।
इस मौके पर राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री ने कहा कि राज्य में कई तरह की परियोजनाएं चल रही हैं। सड़कों का जाल बिछाने का काम चल रहा है। कई रेलवे लाइन का निर्माण किया जा है। कई केन्द्रीय एजेंसियों जैसे एसएसबी, आईटीबीपी के लिए जमीन का अधिग्रहण हुआ है। बस स्टैंड, एयरपोर्ट के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया है। फिलहाल पटना में मेट्रो के लिए भी जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। विकास की बुनियाद जमीन पर ही रखी जाती है। जमीन के अधिग्रहण की निश्चित प्रक्रिया है। अधिकारी यह देखें कि सारा काम नियमों के मुताबिक हो और जिनकी जमीन ली जा रही है, उन्हें बगैर किसी परेशानी के जमीन का उचित मुआवजा प्राप्त हो जाए।
बैठक में भू-अर्जन से संबंधित मुआवजे की दर और भूमि की प्रकृति को लेकर जिला भू-अर्जन पदाधिकारियों और एनएचएआई के प्रतिनिधियों के बीच चर्चा हुई। भू अर्जन के लिए मुआवजा तय करने की प्रक्रिया एक्ट और रूल्स से तय होती है। दर का निर्धारण जमीन की प्रकृति के हिसाब से तय होता है। यानि कृषि प्रकृति की भूमि का मुआवजा कम और व्यवसायिक प्रकृति की भूमि का मुआवजा अधिक भुगतान किया जाता है। इसी कारण कई जगहों पर कम मुआवजा बताकर रैयतों द्वारा मुआवजा राशि लेने से इनकार किया जाता है और परियोजना पूरी होने में दिक्कत आती है।
बैठक में एनएचएआई से संबंधित कई परियोजना पदाधिकारियों ने जिला भू अर्जन पदाधिकारियों द्वारा मनमाने तरीके से जमीन की प्रकृति बदलने का आरोप लगाया। उनका आरोप था कि इससे परियोजना की लागत बढ़ जाती है। जिला भू अर्जन पदाधिकारियों का तर्क था कि भूमि की प्रकृति का निर्धारण 6 सदस्यीय टीम करती है और उसमें पूरी पारदर्शिता बरती जाती है। अपर मुख्य सचिव ने सभी जिला भू अर्जन पदाधिकारियों को कहा कि शिकायतों की जांच की जाएगी और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने बैठक में मौजूद भू अर्जन निदेशक को इस मामले की सूक्ष्मता से जांच करने का आदेश दिया।
एनएचएआई और एनएच से संबंधित भू अर्जन के मामलों में अर्जन की कार्रवाई मुख्यतः एनएच एक्ट 1956 के प्रावधानों के तहत होती है, जबकि राज्य की अधिकांश परियोजनाओं के लिए अधिग्रहण आरएफसीटीएलएआरआरएक्ट 2013 के प्रावधानों के तहत होता है। रेलवे के लिए भूमि का अर्जन रेलवे के एक्ट से संचालित होता है। बैठक में राज्य में चल रहे विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य सरकार से संबंधित परियोजनाओं और रेलवे की परियोजनाओं की विस्तृत समीक्षा की गई। मुख्य मुद्दा था मुआवजा भुगतान की रफ्तार तेज करना ताकि समय पर परियोजनाओं को पूरा किया जा सका। केवल पटना जिले में ही एनएच एवं एनएचएआई को मिलाकर कुल 9 परियोजना संचालित है। पटना-गया-डोभी एनएच-83, 119 डी आमस से रामनगर, बख्तियारपुर से मोकामा एनएच- 31, रिंग रोड अंतर्गत शेरपुर दिघवारा 6 लेन निर्माण समेत दर्जनों परियोजनों पर विस्तार से चर्चा की गई।
बैठक में भारत माला के तहत धनरूआ अंचल और फतुआ अंचल के अधीन कुल 12 मौजों में मुआवजा भुगतान की धीमी रफ्तार का कारण पूछा गया। जिला भू अर्जन पदाधिकारी पटना द्वारा बताया गया कि फतुआ के ग्रामीण कम मुआवजा राशि के कारण जबकि धनरूआ के रैयत लगान एवं एलपीसी जैसे जमीन के दस्तावेजों की कमी के कारण मुआवजा नहीं ले पा रहे हैं। कई परियोजनओं में मंदिर और मजार के कारण सड़क निर्माण में आए अवरोध पर भी चर्चा हुई। हाजीपुर-मुजफ्फरपुर मार्ग में गोरौल के पास इस तरह का एक मामले में विभाग के अपर मुख्य सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा ने तत्काल बैठक से ही संबंधित जिला पदाधिकारी से फोन पर बात करके अवरोध हटाने एवं निर्माण कार्य तेज करने का निर्देश दिया।
बैठक में बिहार में संचालित 100 से अधिक एनएच एवं एनएचएआई की परियोजनाओं एवं 2 दर्जन से अधिक रेलवे की परियोजनाओं पर चर्चा की गई। बैठक में पटना के पहाड़ी और रानीपुर मौजा में निर्माणाधीन मेट्रो के डिपो/यार्ड एवं शहर में बन रहे 10 स्टेशनों पर विस्तार से चर्चा हुई। पटना के जिला भू अर्जन पदाधिकारी रंजन कुमार चौधरी द्वारा बताया गया कि दोनों मौजों में डिपो निर्माण के लिए करीब 75 एकड़ भूमि अर्जनाधीन है, लेकिन दोनों मौजों में बड़ी संख्या में खतियानी रकवा से अधिक की रैयतों की जमाबंदी कायम होने के कारण मुआवजा भुगतान में परेशानी हो रही है। सभी मामलों को जमाबंदी जांच के लिए अपर समाहर्ता पटना को भेज दिया गया है।