PATNA: नियोजित शिक्षकों की अनिश्चित कालीन हड़ताल 25 फरवरी 2020 से चल रही है ।हड़ताल के पूर्व बिहार के सीएम नीतीश कुमार और शिक्षा मंत्री साथ ही अपर मुख्य सचिव शिक्षा विभाग का ध्यान आकृष्ट किया गया था लेकिन किसी स्तर पर सुनवाई नहीं हुई तो विवश होकर संघ को हड़ताल पर जाना पड़ा ।22 मार्च को जनता कर्फ्यू और कोरोना संकट के कारण लॉक डाउन का प्रभाव पड़ा ।सरकार ने कोई वार्ता नहीं की। सिर्फ समाचार पत्रों में सरकार का बयान आता रहा कि नैतिकता के आधार पर हड़ताल वापस ले लेनी चाहिए ।सरकार संकट के बाद देखेगी। विडंबना है कि सरकार ने 2015 से प्राथमिक और माध्यमिक नियोजित शिक्षकों को नियत वेतन से एक वेतनमान जो चपरासी से भी कम था देना स्वीकार किया। बयानवीर शिक्षा मंत्री से मेरा आग्रह है कि वह इस बात पर ध्यान देते कि 2015 में जब सरकार ने कबूल किया कि 3 महीने के अंदर नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त नियमावली बनाकर लागू कर देंगे तो आज 5 वर्षों के बाद भी सेवा शर्त नियमावली क्यों नहीं बन पाया ।मैं समझता हूं कि यदि सेवा शर्त नियमावली लागू होगी रही लागू हो रही लागू हो गई रहती तो नियोजित शिक्षकों का अपना भविष्य दिखाई पड़ता कि वह कहां खड़े हैं ।
14 वर्षों में बहुत सारे नियोजित शिक्षक सेवानिवृत्त हो चुके हैं। और लगातार सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं लेकिन यह उन्हें यह पता नहीं कि उनकी सेवा निरंतरता कब लागू होगी। उनकी प्रोन्नति के मामले कब तक लागू होंगे। राज्य में 6 हजार विद्यालय है और करीब 90 विद्यालयों में प्रधानाध्यापक नहीं हैं।नीति आयोग ने भी इसकी चर्चा की है। प्रधानाध्यापक की नियुक्ति कब होगी ?सरकार ने 35 महिलाओं को नियुक्त कर एक बड़ा काम किया है ,महिलाएं नियुक्त होकर अलग-अलग जगहों में हैं और उनके लिए सेवा नियमावली में जो सरकार ने प्रावधान किए हैं वह काफी नहीं है ।उन्होंने बताया था कि उनके सेवा शर्त स्थानांतरण का प्रावधान लागू करेंगे तो आखिर कब लागू होगा। 14 वर्ष कम नहीं होता है ।कोई काम और वादा दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। ना तो सदन के अंदर माननीय शिक्षा मंत्री जी ने सेवा शर्त नियमावली के बारे में कोई स्पष्ट आश्वासन दिया है और ना ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बयानों में उनका कोई उल्लेख है। सेवा नियमावली बनाने और उसे लागू करने में सरकार पर कोई वित्तीय भार नहीं है।
इसी तरीके से शिक्षा विभाग ने 2017 में कबूल किया था कि स्कूलों को अलग करेंगे उस पर भी सरकार ने कोई काम नहीं किया लॉन्ग टर्म प्लान जैसे-तैसे पड़ा है । सरकार ने शिक्षक जैसे प्रतिष्ठित शब्द के आगे नियोजित लगाकर उन्हें हीन भावना से ग्रसित होने को मजबूर कर दिया। शिक्षक के पद प्रतिष्ठा को कलंकित करने का काम भी हुआ।इन शब्दों को हटा देने से भी अब कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
माननीय उच्चतम न्यायालय में नियोजित शिक्षकों के समान वेतन समान काम के बदले समान वेतन को लागू करने की बात सरकार ने कही थी कि यदि शिक्षक जीत जाएंगे तो हम लागू करेंगे सरकार ने खुद याचिका दाखिल कर 20% वेतन बढ़ोतरी की बात भी कही थी। हम मानते हैं कि शिक्षक मुकदमा हार चुके हैं हम समान काम के बदले समान वेतन की मांग नहीं करते। बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ सिर्फ इतना ही कहता है कि वेतनमान में जो विसंगतियां हैं। उसे दूर किया जाए और लेवल 7 लेवल 8 का जो इनिशियल स्टेज है उसे लागू किया जाए। नियोजित शिक्षकों का एक भविष्य निधि दिखाई पड़े। माननीय उच्च न्यायालय भविष्य निधि लागू करने की बात कही है। इस संबंध में सरकार स्पष्ट उल्लेख नहीं कर रही ।बस सिर्फ यह कह रही है कि क्या लेकर जाएंगे खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे।
सरकार मीडिया के माध्यम से बयान दे रही है कि हड़ताल से वापस आ जाएं
माननीय शिक्षा मंत्री शिक्षकों को सम्मान देना नहीं चाहते हैं। नियोजिय शब्द भी हटाना नहीं चाहते हैं। दंडात्मक कार्रवाई भी वापस लेना नहीं चाहते हैं। सेवा शर्त भी लागू करना नहीं चाहते हैं । वेतन विसंगति भी दूर करना नहीं चाहते हैं ।भविष्य निधि भी देना नहीं चाहते हैं?आखिर शिक्षक जाएं तो कहां जाएं। शिक्षा मंत्री से आग्रह करना चाहता हूं इन सवालों पर गंभीरता पूर्वक विचार करें। मैं समझता