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अब मनचाहे दामों पर नहीं बिकेंगी दवाएं, मोदी सरकार लगाएगी लगाम

अब मनचाहे दामों पर नहीं बिकेंगी दवाएं,  मोदी सरकार लगाएगी लगाम

NEW DELHI :  महंगाई से परेशान आम आदमी को केन्द्र सरकार ने राहत देने का फैसला किया है। इसी कड़ी में मोदी सरकार जरुरी दवाओँ के दाम को नही बढ़ने देने की योजना पर काम कर रही है। इस महीने के अंत तक देश में दवाओं की कीमतें तय करने की प्रक्रिया में व्यापक बदलाव देखने को मिल सकता है। इस बदलाव के लिए सरकार द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में एक नए प्राइस इंडेक्स  को इंट्रोड्यूस करने की बात भी शामिल है। यह प्राइस इंडेक्स फार्मास्युटिकल प्रॉडक्ट्स के लिए होगा, जो देश में बिकने वाली सारी दवाओं के कीमत निर्धारण का बेंचमार्क बनेगा। इनमें वे दवाएं भी शामिल होंगी जो फिलहाल ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर में नहीं आती हैं।   सरकार जनहित की करीब-करीब सारी दवाओं की कीमतों को अस्पष्ट रूप से नियंत्रित करती  है। 850 जरूरी दवाओं की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण है। दवाओं की कीमतों का नियामक नैशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी  इन दवाओं को कीमतों को थोक मूल्य सूचकांक  के आधार पर सालाना के हिसाब से तय करता है। कंपनियों को अन्य दवाओं की कीमत बढ़ाने का अधिकार है लेकिन यह बढ़ोतरी सालाना 10 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए। MODI-GOV-WIIL-CONTROL-INCREASING-PRICE-OF-MEDICINES2.jpg

कीमत निर्धारण के नए प्रस्तावित मैकनिज्म में सरकार ने सारी दवाओं की कीमतों को नए फार्मास्युटिकल इंडेक्स से लिंक करने की योजना बनाई है। सूत्रों के मुताबिक दवा निर्माताओं को इस इंडेक्स के मुताबिक ही वार्षिक तौर पर कीमतों को रिवाइज करने की अनुमति रहेगी। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि प्रस्ताव फाइनल स्टेज में है और जून में फार्मास्युटिकल्स डिपार्टमेंट इसे नोटिफाई भी कर देगा। प्रस्तावित इंडेक्स न केवल थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर कीमत निर्धारण में बदलाव लाएगा बल्कि नॉनशेड्यूल्ड दवाओं की कीमत भी इसी हिसाब से तय की जाएंगी 


केवल 24 फीसदी दवाओं की कीमतों का ही नियंत्रण करती है सरकार

यह प्रस्ताव नीति आयोग की अनुशंसाओं का ही हिस्सा है जिसके तहत ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 में बदलाव की बात कही गई है। एक बार लागू हो जाने के बाद यह नई व्यवस्था सारी दवाओं की कीमतों का निर्धारण करने लगेगी। वर्तमान प्राइस मैकनिज्म के अनुसार एक लाख करोड़ रुपये के घरेलू फार्मास्युटिकल मार्केट में से केवल 17 फीसदी ही सीधे तौर पर सरकारी प्राइस कंट्रोल के अधीन है। वॉल्यूम के हिसाब से देखें तो सरकार बिकने वाली सारी दवाओं में से केवल 24 फीसदी दवाओं की कीमतों का ही नियंत्रण करती है। 

एक तरफ तो फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री दवाओं की कीमतों को थोक मूल्य सूचकांक से जोड़ने का विरोध कर रही है, दूसरी तरफ सरकार यह नया प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। ऐसे में इस बात के संकेत भी मिलने लगे हैं कि सरकार के इस नए प्रस्ताव का भी स्वागत नहीं ही होगा।

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