सियासत का हरफनमौला खिलाड़ी "मुन्ना" राजनीति के हर खेल में है माहिर! यानी "नीतीश इज नॉट आउट" आखिर क्यों और कैसे? पढ़िए इनसाइड स्टोरी

सियासत का हरफनमौला खिलाड़ी "मुन्ना" राजनीति के हर खेल में है

PATNA: मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन भाजपा में नहीं जाएंगे... ये कहना था बिहार के सीएम नीतीश कुमार का। लेकिन राजनीति में कोई न तो अपना होता है ना ही पराया। जब जहां जिसके साथ फायदा हो उसके साथ हो जाना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके जीते जागते उदाहरण भी हैं। सीएम नीतीश 10 साल में रिकार्ड नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। दो बार वे राजद के साथ गठबंधन कर सरकार चला चुके हैं। सीएम नीतीश जब राजद के साथ महागठबंधन की सरकार में थे तब उनका कहना था कि वो मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन भाजपा में नहीं जाएंगे। अपने बयान के कुछ ही महीने के बाद सीएम एक बाऱ फिर एनडीए का दामन थाम लिए। वहीं अब एनडीए के साथ सीएम नीतीश कब तक रहेंगे ये तो सीएम ही बता सकते हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव प्रचार के क्रम में सीएम नीतीश कई बार कह चुके हैं कि वो अब बीजेपी के साथ हैं और यहीं रहेंगे। 

इंडिया के साथ जाएंगे नीतीश ?

सीएम नीतीश के पलट जाने की चर्चा एक बाऱ फिर तेज है। आखिरी हो भी क्यों ना इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी पूर्ण बहुमत पाने से चूक गई है। बीजेपी को केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जदयू की जरुरत पड़ी। नीतीश और नायडू ने बीजेपी का साथ दिया और तीसरी बार नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें। पीएम अपने तीसरे कार्यकाल की शुरूआत कर चुके हैं, उनके कैबिनेट का भी विस्तार हो गया है। इसके बावजूद अब भी सियासी गलियारों में चर्चाएं थमने का नाम नहीं ले रही है। सीएम नीतीश के एक बार फिर एनडीए छोड़ महागठबंधन में शामिल होने का कयास लगाए जा रहे हैं। 

चर्चाओं को मिली हवा

इन चर्चाओं के दो अहम कारण भी हैं। पहला लोकसभा चुनाव के रिजल्ट आने के बाद सीएम नीतीश और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दिल्ली के लिए एक ही साथ एक ही फ्लाइट में रवाना हुए। नीतीश तेजस्वी की पहली तस्वीर सामने आई जिसमे दोनों आगे पीछे बैठे दिखें और दूसरी तस्वीर में सीएम नीतीश और तेजस्वी एक साथ बैठे दिखे। दोनों दिल्ली में एनडीए और इंडिया गठबंधन की बैठक में शामिल होने पहुंचे थे। तब इस चर्चा को हवा मिली। वहीं दूसरा और अहम कारण, जब जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने पीएम पद का ऑफर वाला बयान दिया। इस बयान ने सीएम नीतीश के इंडिया गठबंधन में जाने के कयासों के बीच आग में घी के रुप में काम किया। वहीं नीतीश कुमार दो ध्रुवी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। काफी संयमित होकर हर छोर की राजनीति के साथ समन्वय बना कर चलते हैं। फ्लाइट में तेजस्वी यादव को पीछे से अपने साथ बिठाने का दो मकसद था। एक तो भाजपा का कान खड़खड़ाए और दूसरा ये कि धुर विरोधी तेजस्वी यादव से संवादहीनता न आए। नीतीश कुमार की राजनीति का एक पहलू ये भी है कि संख्या बल का दबाव सहयोगी दल पर बना रहे।     

एनडीए के नो बॉल के इंतजार में सीएम 

नीतीश कुमार टेस्ट मैच के खिलाड़ी रहे हैं। बल्लेबाजी धीमी करते हैं। ट्वेंटी-ट्वेंटी की तरह हर बॉल पर छक्का मारने की फिराक में नहीं रहते। ये नीतीश कुमार की डिफेंसिव तकनीक है। इन्हें नो बॉल का इंतजार रहता है, जहां गलत शॉर्ट पर आउट होने का खतरा भी नहीं और तुक्का लगा तो छक्का। कहीं ना कहीं सीएम नीतीश एनडीए के नो बॉल का इंतजार कर रहे हैं। सीएम नीतीश कुमार की राजनीति में परिवर्तन के संकेत अक्सर संभावनाओं से परे रहे हैं। बिहार के संदर्भ में गठबंधन का टूटना और नया एलायंस बना लेने में नीतीश कुमार को 'एक्सपर्ट' के तौर पर ट्रीट किया जाता है।

कब कब मारे पलटी

नीतीश कुमार के नेतृत्व में 22 फरवरी 2015 को सरकार बनी। 10 महीने बाद 20 नवंबर 2015 में नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने। परंतु, इस बार जदयू अकेली नहीं थी। यहां लालू यादव की पार्टी राजद के साथ उन्होंने महागठबंधन की सरकार बनाकर सीएम पद की शपथ ली थी। ये पहली बार था, जब जदयू और राजद सत्ता में साथ आई थी। राजद का साथ छोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बनाने में लगभग 20 महीने का अंतराल आया। यानी 26 जुलाई 2017 को एक बार फिर राजद को छोड़कर भाजपा के साथ राजग की सरकार बनाई। राजग की ये सरकार ढाई साल चली थी। इसके बाद 16 नवंबर 2020 को विधानसभा चुनावों के बाद नीतीश कुमार ने फिर से जदयू-भाजपा (एनडीए) की सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने। इसके दो साल बाद जदयू-भाजपा के रिश्तों में खटास आ गई। नीतीश ने 10 अगस्त 2022 को फिर से लालू यादव की पार्टी का दामन थाम लिया। उन्होंने जदयू-राजद के गठजोड़ से महागठबंधन की सरकार बना ली। बिहार में 2022 के बाद महागठबंधन की सरकार करीब 17 महीनें चली। नीतीश कुमार ने एक बार फिर बाजी पलटते हुए 28 जनवरी 2024 को जदयू-भाजपा की नई सरकार बना ली है।

इन कारणों से थाम सकते हैं इंडिया का दामन

सीएम नीतीश के इंडिया गठबंधन की ओर जाने के मुख्य वजह के रुप में इन्हें देखा जा सकता है। मोदी कैबिनेट में जदयू को मन मुताबिक विभाग नहीं मिला। रेल, वित्त, कृषि, स्वास्थ्य जैसे बड़े बजट वाले विभाग की इच्छा पूरी नहीं। सांसदों की संख्या और राजनीतिक जरूरत के आधार पर मंत्री पद की संख्या और विभाग जदयू के भीतरी दबाव को बढ़ा रहा। विभाग के बने मंत्री में उत्साह नहीं दिखता। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह का ये कहना विभाग कोई खराब और अच्छा नहीं होता। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का कहना विभाग का नाम सुनकर दिमाग खराब हो गया। कार्यकर्ताओं में भी विभागों को लेकर उत्साह नहीं। ऐसे में अगर इंडिया गठबंधन के लोग सीएम नीतीश को लुभाने में कामयाब हो गए तो यह एनडीए के लिए मुश्किल हो सकता है।

किसका साथ देंगे नीतीश 

बहरहाल, सीएम नीतीश भले गठबंधन बदलते हो लेकिन मुख्यमंत्री के रुप में हर बार वहीं शपथ लेते हैं। केवल डिप्टी सीएम बदलते हैं। जदयू एमएलसी नीरज कुमार ने भी कहा है कि सीएम नीतीश का मतलब है, मैं हूं.. यानी नीतीश कुमार का मतलब है "मैं हूं" और जब तक "मैं हूं तब तक सत्ता मेरे हाथ में रहेगा"। वहीं बीजेपी के दोनों उप मुख्यमंत्रियों ने भी माना है कि 2025 में वे नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे। दरअसल, 2025 का बिहार विधानसभा अगले साल होने वाला है। ऐसे में अगर सीएम नीतीश एनडीए का साथ छोड़ते हैं तो एनडीए को ना सिर्फ बिहार में नुकसान सहना पड़ सकता है। बल्कि केंद्र में भी नुकसान झेलना पड़ सकता है। ऐसे में इंडिया गठबंधन की ओर से सीएम नीतीश को अपने साथ लाने की कोशिश की जाएगी। अब देखना होगा कि सीएम नीतीश एनडीए के साथ अपनी वफादारी निभाते हैं या फिर एक बार फिर महागठबंधन के साथ हो जाएंगे।