बिहार की मोक्ष नगरी गया जी धाम में हर साल लाखों तीर्थयात्री पितरों के निमित्त पिंडदान करने आते हैं। लेकिन इस धार्मिक नगरी के बीच एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर भी है, जो लोगों को अपने पितरों का नहीं, बल्कि खुद का पिंडदान करने के लिए बुलाता है। इस मंदिर का नाम है जनार्दन मंदिर, जो एक खास वेदी के रूप में जाना जाता है। यहां साधु-संन्यासी और निसंतान लोग खुद का श्राद्ध कर मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि इस मंदिर की महिमा दुनिया में किसी और जगह देखने को नहीं मिलती। यहां भगवान विष्णु जनार्दन स्वरूप में काले पत्थर की चमत्कारी प्रतिमा के रूप में विराजमान हैं, और इस मंदिर की वेदी पर खुद का पिंडदान करने वाले लोग उनके हाथों में पिंड अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु खुद इन पिंडों को स्वीकार करते हैं और मृत्यु के बाद व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करते हैं।
इस पवित्र स्थल पर खासकर साधु-संन्यासी पहुंचते हैं, जो जीवन के मोह-माया से मुक्त हो चुके होते हैं। लेकिन इनके अलावा ऐसे लोग भी आते हैं, जिनकी कोई संतान नहीं होती या जिन्हें यह लगता है कि उनके बाद उनका कोई पिंडदान करने वाला नहीं होगा। इस मंदिर की अद्वितीयता इसे दुनिया के बाकी धार्मिक स्थलों से अलग बनाती है। यहां आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए लोग खुद का श्राद्ध करते हैं, जो कहीं और देखने को नहीं मिलता।
मंदिर का इतिहास भी उतना ही प्राचीन और समृद्ध है जितनी इसकी महिमा। पुराणों में इस मंदिर का वर्णन मिलता है और कहा जाता है कि इसका जीर्णोद्धार राजा मानसिंह ने करवाया था। हालांकि, अब यह मंदिर समय के साथ थोड़ा जर्जर हो चुका है और इसे फिर से संवारने की ज़रूरत है।
जनार्दन मंदिर सिर्फ मोक्ष का केंद्र नहीं, बल्कि इच्छापूर्ति के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कई भक्त अपनी मुरादें पूरी होने का अनुभव कर चुके हैं। पिंडवेदी के इस अद्वितीय मंदिर की महत्ता पौराणिक कथाओं में भी दर्ज है और इसे विश्वभर में अद्वितीय माना जाता है। ऐसे अद्वितीय मंदिर का अस्तित्व, जो आत्म पिंडदान के लिए प्रसिद्ध हो, इसे और भी रहस्यमयी और आस्था से भरा बना देता है।