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नीतीश सरकार ने निकम्मा बना रखा है सोशल ऑडिट निदेशालय को, क्यों नहीं करायी मुजफ्फरपुर मामले की जांच ?

नीतीश सरकार ने निकम्मा बना रखा है सोशल ऑडिट निदेशालय को, क्यों नहीं करायी मुजफ्फरपुर मामले की जांच ?

PATNA : किसी भी संस्था या विभाग में ईमानदारी और जवाबदेही तय करने के लिए सोशल ऑडिट एक बड़ा हथियार है। मुजफफरपुर की घटना के बाद इसकी उपयोगिता साबित हो गयी है। बिहार में एक स्वतंत्र सोशल ऑडिट निदेशालय है लेकिन नीतीश सरकार ने उसको एक साल से निकम्मा बना कर छोड़ दिया है।

कल्याण विभाग के प्रधान सचिव सवालों के घेरे में

अगर मुजफ्फरपुर बालिका गृह का सोशल ऑडिट नहीं होता तो इस घिनौने कांड से पर्दा नहीं हटता। बिहार में एक स्वतंत्र सोशल ऑडिट निदेशालय है इसके बाद भी टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से ये काम कराया गया। हैरानी की बात ये है समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव सोशल ऑडिट निदेशालय एग्जीक्यूटिव कमिटी के मेंबर हैं, फिर भी मुजफ्फरपुर बालिका गृह का ऑडिट नहीं कराया। 

2015 में ही बनी थी सामाजिक अंकेक्षण सोसाइटी

सामाजिक अंकेक्षण सोसाइटी का गठन 2015 में ही हुआ था । सरकार इस सोसाइटी द्वारा किसी भी विभाग से जुड़ी, किसी भी योजना का सामाजिक अंकेक्षण करा सकती है। फिलहाल यह ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण कर रही है। लेकिन सवाल उठता है कि सरकार ने 2015 से शेल्टर होम संस्थानों का सोशल ऑडिट क्यों नहीं कराया ?

RTI से मामला आया सामने

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) के सक्रिय सदस्य उज्ज्वल कुमार ने आरटीआई के जरिये सोशल ऑडिट पर जानकारी मांगी थी। इसके जवाब में ग्रामीण विकास विभाग ने कहा कि सामाजिक अंकेक्षण सोसाइटी द्वारा वित्तीय वर्ष 2017-18 में कोई सामाजिक अंकेक्षण नहीं कराया गया। 

अंकेक्षण सोसाइटी से जुड़े हैं 15 विभागों के प्रधान सचिव

सामाजिक अंकेक्षण सोसाइटी की एग्जीक्यूटिव कमिटी में 15 विभागों के प्रधान सचिव हैं। समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव भी इस निदेशालय के एक सदस्य हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि बिहार सरकार ने अल्पावास गृहों के सामाजिक अंकेक्षण का काम इस निदेशालय के जरिये क्यों नहीं कराया ?  जब कि 2015 से ही यह वजूद में । 

सामाजिक अंकेक्षण सोसाइटी निष्क्रिय क्यों

सरकारी फंड से चलने वाली संस्थाओं की अगर समय-समय पर जांच न हो तो मुजफ्फरपुर कांड जैसे दरिंदे पनपते हैं। यदि समय से सोशल ऑडिट होता तो  मुजफ्फरपुर में लड़कियां का शारीरिक और मानसिक शोषण नहीं होता। आरटीआई से यह बात भी सामने आई है कि बिहार सरकार ने निदेशालय को अबतक एक भी रुपया नहीं दिया है और न ही पूर्णकालिक निदेशक चयन किया गया है। तब इसके गठन का क्या मतलब है।  


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