बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

'नीतीश' ने 'कुशवाहा' को एक हाथ में झुनझुना तो दूसरे में लॉलीपॉप थमाया, उपेन्द्र का मुख्यमंत्री पर बड़ा प्रहार

'नीतीश' ने 'कुशवाहा' को एक हाथ में झुनझुना तो दूसरे में लॉलीपॉप थमाया, उपेन्द्र का मुख्यमंत्री पर बड़ा प्रहार

PATNA:  उपेन्द्र कुशवाहा ने एक बार फिर से नीतीश कुमार पर बड़ा हमला बोला है। कुशवाहा ने इस बार जेडीयू में हिस्सेदारी से लेकर संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष व एमएलसी पर खुलकर अपनी बात रखी. पटना में प्रेस कांफ्रेंस कर उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू नेतृत्व को लपेट लिया. कहा कि संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष का पद देकर एक झुनझुना थमा दिया गया। एमएलसी बनाकर नीतीश कुमार ने हमें लॉलीपॉप थमा दिया. उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि हमने तो राज्यसभा सदस्यता व केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ते हुए क्षण भर की देरी नहीं की तो एमएलसी या संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष कौन सी बड़ी चीज है. मुख्यमंत्री हमसे वापस ले लें. 

उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि जब हमें जेडीयू संसदीय बोर्ड का जब अध्यक्ष बनाया गया था तो हमको भी लगता था कि पार्लियामेंट्री बोर्ड का जो दायित्व होता है उन दायित्वों को निर्वहन करने का अवसर मिलेगा. हम पार्टी के कार्यकर्ताओं के हितों की रक्षा कर पाएंगे. बाद में पता चला कि बोर्ड का जो अध्यक्ष मुझे बनाया गया यह सीधे तौर पर मेरे हाथ में एक झुनझुना थमा दिया गया . पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष जिस दिन मुझे बनाया गया, उस दिन पार्टी के संविधान में कुछ नहीं लिखा हुआ था. बाद में पार्टी के संविधान में संशोधन हुआ और लिखा गया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष व सदस्यों को मनोनीत करेंगे. पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्यों के मनोनयन का भी अधिकार राष्ट्रीय अध्यक्ष को है. पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष को नहीं. संशोधन के बाद भी यही स्थिति है. हम तो पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष बन गए उसके बाद सदस्यों के मनोनयन भी हम नहीं कर सकते थे. ऐसे में झुनझुना नहीं तो और क्या मिला ? संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष से आज तक कोई राय नहीं मांगी गई. टिकट बंटवारे में बोर्ड अद्यक्ष की बड़ी भूमिका होती है. लेकिन किसी भी समय हमशे राय नहीं ली गई। यह अलग बात है कि हमने ही कई दफे मुख्यमंत्री को राय दिया. लेकिन हमारी राय को खारिज कर दिया गया। हमारे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। 

उपेन्द्र कुशवाहा ने आगे कहा कि हमारी बात अगर गलत होगी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष या मुख्यमंत्री खंडन कर सकते हैं. हमने एक बात सुझाव के रूप में दिया की राज्य स्तर पर एक्टिव नेता जोअति पिछड़ा समाज का हो उसे पार्टी में डिसीजन मेकिंग जगह पर रखी जाय. मंत्री एमएलए या सांसद हैं वह अपने क्षेत्र तक सीमित रहते हैं . कोई ऐसा व्यक्ति हो जो अति पिछड़ा समाज का है वह उस जगह पर नहीं है . हमने कहा एक अति पिछड़ा समाज के व्यक्ति को राज्य स्तर पर रखिए ,राज्यसभा में भेजिए या एमएलसी बना दीजिए, ताकि अति पिछड़ा समाज से लीडरशिप उभर सके ,

कुशवाहा ने आगे कहा कि बिहार में मंत्रियों की क्या हैसियत है. मंत्रियों का अधिकार क्या है आप लोग जान ही रहे हैं. मंत्री जी का कितनी चलती है ? अधिकारी लोग ही  विभाग चलाते हैं. अभी कुछ समय पहले अति पिछड़ा समाज के एक मंत्री ने इस्तीफा देने तक की बात कर दी थी. तबादला का मामला था. उनकी बात नहीं सुनी गई थी. विवश होकर उन्होंने इस्तीफे का ऐलान कर दिया था. मंत्री के रूप में लीडरशिप नहीं ऊभर रहा या उभरने नहीं दिया जा रहा है. लगता है कि अति पिछड़ा समाज के जो मंत्री हैं उन पर मुख्यमंत्री जी को भरोसा नहीं है. ऐसे में जिसके ऊपर भरोसा हो उसी में से किसी एक व्यक्ति को राज्यसभा की सदस्यता या विधान परिषद की सदस्यता दे दें. और पार्टी के मुख्य रोल में रखें. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. 

उन्होंने कहा कि हमको लगा कि अति पिछड़ा समाज के लोगों में पार्टी के प्रति आकर्षण घट रहा है. स्थिति आपके सामने है. जो लोग हाल में राज्यसभा या विधान परिषद में भेजे गए, उनमें एक भी अति पिछड़ा समाज का व्यक्ति नहीं जा पाया. ऐसी स्थिति में यह कहना कि उपेन्द्र कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर बहुत इज्जत दे दी. जब हम किसी की इज्जत प्रतिष्ठा की रक्षा नहीं कर सकते ,हक लेने की बात ही नहीं की जा सकती है तो पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष बना झुनझुना नहीं तो और क्या है. दूसरी बात जो कही जाती है कि एमएलसी बनाया.  उपेंद्र कुशवाहा तो सरकारी नौकरी नहीं कर रहा है. उपेंद्र कुशवाहा राजनीति कर रहा है. एमएलए- एमएलसी राजनीतिक कार्यकर्ता के लिए सरकारी नौकरी नहीं होती है .यह पॉलिटिक्स होती है.

Suggested News