KATIHAR : इरादे हो जिनके पक्के.. वह आगे बढ़ जाते हैं टकराते हैं जो तूफानों से मंजिल भी वह पाते है'.... कटिहार के दिव्यांग यशोदा की संघर्ष की कहानी कुछ इसी बात को साबित कर रहा है, जांबाज यशोदा की कहानी खासकर उन लोगों के लिए भी प्रेरणा जो छोटे-छोटे बातों में अपने जिंदगी को ही समाप्त करने की बात सोच लेते हैं और दिव्यांग यशोदा की वह बहन भी एक नजीर उस समाज के लिए है जहां छोटी सी छोटी परेशानी में अपने ही लोग अपनों का साथ छोड़ कर उसे बदहाली और बेबसी में जीने को मजबूर कर देते हैं।
तस्वीर कटिहार नगर क्षेत्र के बगवाबारी मोहल्ले की है जहां अपने दो पैर और एक हाथ ट्रेन की चपेट में आकर गंवा चुकी यशोदा अपने हौसले की उड़ान के बल पर कॉलेज की राह के लिए निकल चुकी है और यह संघर्ष कोई 1 दिन के लिए नहीं है बल्कि हर रोज वह इस शारीरिक दिव्यांगता के बावजूद अपने दैनिक कार्य पूरा करने के साथ-साथ पढ़ाई-लिखाई भी जारी रखा है,यशोदा के दुर्घटना कब हुआ था जब वह कक्षा छह की छात्रा थी।
2013 में हुआ हादसा, मां के बाद पिता भी चल बसे
साल 2013 में उस घटना के बारे में यशोदा कहती है कोचिंग जाने के दौरान गौशाला के पास ट्रेन की चपेट में आने से वह अपनी दो पैर एक हाथ गवा दिया था,जिसके बाद तीन महीने से भी अधिक लंबे इलाज के बाद उन्हें जिंदगी तो मिला है मगर जीवन का एक बड़ा हिस्सा अंधेरे में डूब गया था, इस बीच पहले से ही मां के स्वर्गवास के बाद अब पिता भी गुजर गए।
बहन बनी सहारा
ऐसे में शादीशुदा बहन रसोईया के काम कर यशोदा की पढ़ाई लिखाई जारी रखते हुये बागवाबाड़ी मोहल्ला में अपने घर में बहन को रखकर उससे बेहतर ज़िंदगी देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, आज यशोदा बगैर किसी सरकारी मदत के बीए पार्ट वन तक पहुंच चुकी है।
सरकार से यह उम्मीद
जिंदगी के इतने उतार-चढ़ाव के बावजूद यशोदा को न तो अपनी किस्मत से और न ही सरकार से कोई शिकायत है, यशोदा कहती है जिंदगी में संघर्ष जारी रखना चाहिए कामयाबी तो कभी भी मिल सकता है, हां वह सरकार से गुहार लगाते हुए इतना जरूर कहती है कि अगर थोड़ी सी सहयोग मिल जाए तो जिंदगी और खूबसूरत हो सकता है।
STORY WRITTEN BY SHAYAM