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हिन्दी पर सवाल उठानेवालों को मिल गया जवाब, बुकर अवार्ड ने हिन्दी उपन्यास को किया सम्मानित

हिन्दी पर सवाल उठानेवालों को मिल गया जवाब,  बुकर अवार्ड ने हिन्दी उपन्यास को किया सम्मानित

DESK : पिछले दिनों हिन्दी भाषा को लेकर कई बातें कहीं गई। जिनमें तमिलनाडू के शिक्षा मंत्री ने यहां तक कह दिया कि उनके राज्य में हिन्दी बोलनेवाले गोलगप्पे बेचते हैं। इसी हिन्दी भाषा को अब साहित्य के क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े अवार्ड बुकर पुरस्कार के लिए लिए चुना गया है। 

दिल्ली की लेखिका गीतांजलि श्री अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखिका बन गई हैं। उनके उपन्यास 'Tomb of Sand' के लिए उन्हें प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज से सम्मानित किया गया है। इसके साथ ही यह हिंदी का पहला उपन्यास है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय बुकर प्राइज मिला है।

गीतांजलि का यह उपन्यास मूल रूप से हिंदी शीर्षक 'रेत समाधि' के नाम से प्रकाशित हुआ था, जिसे डेजी रॉकवेल द्वारा अग्रेजी में ''टूमऑफ सैंड' के रूप में अनुवाद किया गया है। यह 50,000 पाउंड के पुरस्कार के लिए चुने जाने वाली पहली हिंदी भाषा की किताब है। जूरी के सदस्यों ने इसे ‘शानदार और अकाट्य’ बताया।

भारत के विभाजन के दर्द को दिखाती है रेत समाधि

यह उपन्यास भारत के विभाजन की छाया में स्थापित एक कहानी है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद एक बुजुर्ग महिला की कहानी को दर्शाता है। गीतांजलि श्री कई लघु कथाओं और उपन्यासों की लेखिका हैं। उनके 2000 के उपन्यास माई को 2001 में क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड के लिए चुना गया था।

बुकर प्राइज एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है। यह पुस्कार अंग्रेजी में ट्रांसलेट और ब्रिटेन या आयरलैंड में प्रकाशित किसी एक पुस्तक को हर साल दिया जाता है। 2022 के पुरस्कार के लिए चयनित पुस्तक की घोषणा सात अप्रैल को लंदन बुक फेयर में की गई थी।

हिन्दी को सम्मान मिलने की ज्यादा खुशी

मैंने यह नहीं सोचा था कि मेरी किताब 'रेत समाधि' यहां तक पहुंचेगी और मुझे इसके अंग्रेजी संस्करण 'टूंब आफ सैंड' के लिए मेरी अनुवादक डेजी राकवेल के साथ बुकर सम्मान मिलेगा। किताब लिखने के पीछे कभी ऐसी सोच भी नहीं रही कि जवाब में पाठकों के भरोसे के अलावा कुछ मिले। वह बेशक मुझे पर्याप्त मिला। पहली बार हंस में प्रकाशित कहानी से लेकर अब तक। बुकर पुरस्कार बेशक मेरे लिए एक बड़ी खुशी है, लेकिन उससे भी अधिक ख़ुशी इस बात की है कि इस बार यह एक हिंदी किताब को मिला है।

यहां बारिश भी सकती है, बुकर भी मिल सकता है

गीतांजली ने बताया कि ‘मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं ये कर सकती हूं। मुझे कहा गया था कि यह लंदन है, आप हर तरह से तैयार होकर आइएगा। यहां बारिश भी हो सकती है, बर्फ भी गिर सकती है, धूप भी खिल सकती है और बुकर भी मिल सकता है। लोगों के फोन आने लगे, तब समझ में आया कि कोई बड़ी बात हो गई है।'

हिन्दी पर सवाल उठानेवालों को मिला जवाब

गीतांजली श्री के उपन्यास को बुकर पुरस्कार मिलने के बाद अब उन लोगों को जवाब मिल गया है, जो हिन्दी भाषा को लेकर सवाल उठाते हैं। 

बता दें कि हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा मानने को लेकर आज भी देश में अलग अलग राज्यों में मान्यता नहीं है। खास तौर पर दक्षिण के राज्यों में हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा मानने पर ऐतराज जाहिर किया जाता है

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