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अब जब ये मांग सिन्दूरी है ..हाथ नहीं, पैरों से दुल्हन की मांग में भरा सिंदूर, आठ साल का प्यार परिवार को नहीं था मंजूर; मंदिर में रचाई शादी

अब जब ये मांग सिन्दूरी है ..हाथ नहीं, पैरों से दुल्हन की मांग में भरा सिंदूर, आठ साल का प्यार परिवार को नहीं था मंजूर; मंदिर में रचाई शादी

दरभंगा - गहनों-जेवरातो का तनिक मोल नहीं मुझे,सोलह श्रंगार का भी रत्ती भर मोल नहीं मुझे,बस इतनी सी आस है मेरे प्रिये,तुम्हारे हाथो से समर्पित हो,वो सुर्ख लाल सिन्दूर मुझे ..तेरे नाम का सिंदूर मेरी मांग में सजे,
बस इतना ही काफी है मेरे लिए.. जी हां ऐसा हीं हुआ है दरभंगा में. प्रसिद्ध श्यामा माई मंदिर में अक्सर शादियां हुआ करती हैं, लेकिन बीते दिन यहां हुई एक शादी काफी चर्चा में है. इस शादी में सबसे बड़ा कौतूहल का विषय बना वरमाला. दरअसल, आम शादियों में आपने जहां वर-वधु को अपने हाथों से एक दूसरे को वरमाला पहनाते देखा होगा, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ. यहां प्रेमिका को प्रेमी ने अपने पैरों से वरमाला पहनाई और अपने पैरों से ही मांग में सिंदूर भी डाला. श्यामा मंदिर में उस वक्त मौजूद लोगों ने वर-वधु को आशीर्वाद दिए.

तू बन जाना मेरी मांग का सिन्दूर,में तेरे हाथो की अंगूठी बन जाउंगी,तेरे गम बहेंगे मेरी आँखों से,में तेरे होठो की हंसी बन मुस्कुराऊगी.. शादी से खुश दंपत्ति ने कहा कि उन्हें एक दूसरे की फिक्र है. दो का साथ रहेगा तो जी लेंगे, घर वालों  के विरोध के बावजूद वे अपना आशियाना बसाएंगे.

वहीं शादी के बाद वर-वधु ने बताया कि वे अपनी मर्जी से शादी कर रहे हैं. दूल्हा प्रदीप मंडल ने बताया कि उसकी नई नवेली पत्नी कोई और नहीं, उसके बड़े भाई की साली है. वह रीता से पिछले आठ वर्षों से एक दूसरे से प्यार किया करते थे. लेकिन, प्रेम को शादी तक अंजाम देने के लिए न हमारे परिवार वाले तैयार थे और न ही रीता के परिवार वाले. इस कारण हम दोनों ने अपने अपने घरों से भागकर अपनी मर्जी से श्यामा माई मंदिर में शादी रचाई है. अगर अब भी हमारे घर वाले नहीं मानेंगे तो हम दोनों दरभंगा में रहकर ही जीवन यापन करेंगे.

दूल्हा प्रदीप मंडल ने बताया कि उसकी नई-नवेली पत्नी कोई और नहीं बल्कि उसके बड़े भाई की साली है. वो रीता से पिछले आठ वर्षों से प्यार किया करते थे. लेकिन प्रेम को शादी तक अंजाम देने के लिए न हमारे परिवार वाले तैयार थे और न ही रीता के घर वाले, इस कारण हम दोनों ने अपने-अपने घरों निकलकर अपनी मर्जी से श्यामा माई मंदिर में शादी रचाई है.प्रदीप दोनों हाथों से दिव्यांग होने के बावजूद ग्रैजुएशन तक की शिक्षा ले रखी है। वो दोनों हाथ नहीं होने बाद भी अपने पैरों से कम्प्यूटर चलाना जानते हैं.

प्रदीप अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटे है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2008 में उनके गांव देयूरी में बिजली आई थी. उस समय वो अपने घर के बाहर खेल रहे थे, इस दौरान 33000 वोल्ट के बिजली की तार टूट कर गिरने के दौरान दोनों हाथ झुलस गए। काफी इलाज कराया गया लेकिन आखिर में दोनों हाथ काटने पड़े थे.


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