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एक मामला यह भीः प्रधानमंत्री के नाम एक माओवादी नेता के बेटे की चिट्ठी, लिखा- उनके कर्मों की सजा हमें ना दी जाए...

एक मामला यह भीः प्रधानमंत्री के नाम एक माओवादी नेता के बेटे की चिट्ठी, लिखा- उनके कर्मों की सजा हमें ना दी जाए...

AURANGABAD: भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य पूर्व केंद्रीय मंत्री व एमएलसी डॉ. संजय पासवान द्वारा माओवादियों को भारत के संविधान में विश्वास और आस्था रखते हुए सरकार से संवाद करने की पेशकश के बाद शीर्षस्थ नक्सली नेता और भाकपा माओवादी के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा के परिजनों ने नक्सलियों के नाम पर उनके परिवारों को सता प्रतिष्ठान द्वारा तंग नही किये जाने की गुहार लगाई है। इस संबंध में माओवादी नेता के पुत्र औरंगाबाद जिले के रफीगंज के कासमा निवासी सुचित मिश्रा ने अपने ‘मन की बात’ शीर्षक से सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुला पत्र लिखा है। 

जन्म से ही झेला असंख्य दमन और झूठा आरोप

पत्र की प्रति उन्होने पूर्व केंद्रीय मंत्री और एमएलसी को भी दी है। पत्र में उन्होनें अपने परिवार पर सत्ता पक्ष और पुलिस पर दमन चक्र चलाने की विस्तार से चर्चा की है। उनका कहा है कि पिता के अलावा मेरा समस्त परिवार सामान्य भारतीय नागरिक है। हमारे परिवार के सदस्य उनकी संस्था से जुड़े नहीं हैं। सुचित मिश्रा ने पत्र में कहा है कि हमारा यह अनुभव है कि चाहे आपकी सरकार हो या आपके पूर्व बनी अन्य राजनीतिक पार्टियों की सरकारें रही हो, सब समय हम और हमारा परिवार राजकीय दमन का शिकार होता रहा है। बिना किसी तथ्यात्मक सच्चाई के सरकार के कानून के रखवाले अधिकारीगण झूठे अभियोग लगाकर हमारे उपर मुकदमें लादते रहे हैं। हमनें अपने जन्मकाल से ही असंख्य दमन झेला है-झूठे मुकदमों का बोझ ढोया है। फिर भी हम अपने रास्ते पर खड़े हैं और हमारे पिता अपने रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। हमारी वजह से उन्होंने कभी सत्ता के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया और जहां तक मैं अपने पिता को समझा हूं, उस आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि आज भी वे दमन के सामने झुकने को तैयार नहीं होंगे। 

पिता पर कभी सिद्ध नहीं हुए मुकदमे

साल 2008 में सुचित के पिता गिरफ्तार हुए थे और 9 साल दो महीना सात दिन बाद छूटकर जेल से वे बाहर आये। उनपर लादे गये एक भी मुकदमें सिद्ध नहीं हुए, पर्याप्त अवसर के बावजूद कोर्ट उनके कुछ केस को तो निष्पादित किया, लेकिन कुछ को निष्पादित नहीं की और वे जमानत पर बाहर आने को मजबूर हुए, जबकि वे अपने सारे केस का त्वरित निष्पादन चाहते थे। बाहर आकर भी कोर्ट में यथाशीघ्र अपने अनिष्पादित मामलों का निष्पादन यथाशीघ्र करने के लिए आग्रह किया। किंतु, ऐसा न हो सका। मेरे पिता पुनः एक दिन कोर्ट जाने के लिए कहकर घर से निकले और अपने परिवार से जुदा होकर पुनः न जाने कहां चले गये। जहां तक उनके राजनीतिक जीवन के आरंभ से ही वे ऐसा तरीका अपनाते रहे हैं कि वे जब चाहेंगे, जहां चाहेंगे, जिस समय चाहेंगे, जिससे मिलना चाहेंगे वे अपनी इच्छा व योजनानुसार उनसे मिल लेंगे। परिवार से मिलने के मामले में भी उनका यही रवैया रहा है। लेकिन परिवार हो या अन्य लोग चाहकर भी अपनी जरूरत और अपने समय के अनुसार उनसे कभी नहीं मिले, यह उनकी एक खासियत है। 

संपत्ति को लेकर ED लाद रही झूठा मुकदमा

सुचित का कहान है कि एक बार फिर नक्सल उन्मूलन अभियान के तहत माओवादियों के परिवार तथा उनके दोस्तों और रिश्तेदारों को हैरान-परेशान करने के लिए, उनकी सम्पत्ति पर ‘प्रवर्तन निदेशालय’ के तहत झूठे मुकदमें लादने और व्यापक रूप से हैरान-परेशान करने का रास्ता अपनाया है। इससे धुन के पक्के हमारे पिता और उनके जैसे हीं दृढ़चित उनके अन्य मित्र क्रांतिकारी, झुकने को विवश नहीं होंगे। हम अपनी सम्पत्ति का यथासंभव ब्यौरा और उसे प्राप्ति के स्रोत सूचीबद्ध कर ईडी अधिकारियों के पास भेज रहे हैं तथा उसका अनुलग्नक आपके पास इस पत्र में संलग्न कर भेज रहा हूं। हमारी यह हैसियत नहीं है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य हजार-हजार रूपया खर्च कर बारी-बारी से कुछ दिन बाद-बाद ईडी कार्यालय में जा सके और उनके द्वारा दी जा रही प्रताड़नाओं को झेल सके। मैं और मेरा परिवार किसी भी हालत में इसमें सक्षम नहीं हैं कि मेरे पिता का आत्मसमर्पण कराने के उद्देश्य से हम पर की जा रही कार्रवाई के बावजूद आपकी कोई मदद दे सके।

गौरतलब है कि हाल में ही भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य पूर्व केंद्रीय मंत्री और विधान पार्षद डॉ. संजय पासवान ने शीर्षस्थ माओवादी, भाकपा माओवादी की पोलित ब्यूरो तथा मिलिट्री कमीशन के सदस्य जगदीश मास्टर से मुलाकात कर उनसे भारतीय संविधान में आस्था और विश्वास रखते हुए सरकार से वार्ता करने की पेशकश की थी। माओवादी नेता के प्रधानमंत्री को लिखे पत्र को इसी पेशकश से जोड़कर देखा जा रहा है।


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