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संपूर्ण प्रदेश में साक्षरता के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है : पीयूष कुमार झा

संपूर्ण प्रदेश में साक्षरता के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है : पीयूष कुमार झा

LAKHISARAI : प्रशासनिक सिस्टम की नाकामी एवं बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा केवल कागजों पर वयस्कों के साक्षर करने के अव्यवहारिक आंकड़ों के खेल से जिले सहित संपूर्ण प्रदेश में साक्षरता के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है। जबकि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के सामाजिक विज्ञान विषय की प्रायोगिक परीक्षा के नियम के तहत विगत आठ वर्षों में लगभग आठ करोड़ वयस्कों को कार्यात्मक साक्षरता देने का काम किया जा चुका है। जबकि उतनी वयस्कों की आबादी भी बिहार में नहीं है। उक्त बातें मंगलवार को विश्व साक्षरता दिवस की पूर्व संध्या पर प्रतिभा चयन एकता मंच के सचिव पीयूष कुमार झा ने कही। झा ने आगे कहा कि विगत आठ वर्षों से बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा मैट्रिक के छात्रों को सामाजिक विज्ञान की प्रायोगिक परीक्षा के तहत दस निरक्षर वयस्कों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने पर दस अंक देने की व्यवस्था समिति के विज्ञप्ति 33/2011 के तहत की गई। 

जिसके तहत 2013 की मैट्रिक परीक्षा से छात्रों को दस अंक साक्षरता के लिए दिए जाने लगे। प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख परीक्षार्थी मैट्रिक परीक्षा में शामिल होते हैं और उनमें से सभी सफल छात्रों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए सात से दस अंक विद्यालय द्वारा प्रायोगिक परीक्षा में दिए जाते हैं। आठ वर्षों के आंकड़ों को देखें तो मैट्रिक परीक्षा के लगभग एक करोड़ सफल छात्रों के द्वारा लगभग आठ करोड़ निरक्षर वयस्कों को कार्यात्मक रूप से साक्षर बनाने का काम छात्रों के द्वारा किया गया। जबकि बिहार में कुल वयस्कों की संख्या भी पांच करोड़ नहीं है। इस संबंध में पीयूष कुमार झा के द्वारा बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के सूचना के अधिकार के तहत तीन बार जानकारी मांगी गई तो तीनों बार समिति के द्वारा अलग अलग व जबाब देकर केवल खानापूर्ति की गई। 

2016 में समिति के पत्रांक 8702 दिनांक 12-9-2016 के तहत आधी अधूरी जानकारी दी गई। पत्रांक 6281 दिनांक 24-04-2019 के तहत यह बताया गया कि कितने निरक्षरों को साक्षर किया गया। इसकी जानकारी देना समिति का काम नहीं है। यह काम शिक्षा विभाग का है। तीसरी बार में समिति द्वारा कहा गया कि कितने निरक्षरों को साक्षर किया गया। इसकी जानकारी आप जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी व उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक से मांग सकते हैं। आखिर प्रश्न यह उठता है कि आखिर आंकड़ों की बाजीगरी कब तक, सामाजिक विज्ञान की प्रायोगिक परीक्षा के लिए अन्य तरीकों पर विचार करना चाहिए। 

यह साक्षरता के आंकड़ों के लिए यह खेल क्यों। वास्तविकता यह है कि कार्यात्मक साक्षरता के नाम पर लखीसराय जिले के 93 उच्च व उच्च माध्यमिक विद्यालयों सहित संपूर्ण बिहार में केवल खानापूर्ति का काम विद्यालयों में हो रहा है। केवल छात्रों को अंक दिए जा रहे हैं। जबकि किसी भी निरक्षर को साक्षर नहीं किया जा रहा है। इस मामले में उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक से लेकर शिक्षा पदाधिकारी सभी चुप्पी साध लेते हैं।  झा ने इस संबंध में कहा कि अगर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति जल्द ही इस नियम को खत्म नहीं करेगी तो उच्च न्यायालय में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के खिलाफ जनहित  याचिका दायर की जाएगी।

लखीसराय से कमलेश की रिपोर्ट 

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