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कभी लालू के मोहताज नहीं रहे पप्पू यादव, अपने दम पर जीतते रहे हैं चुनाव

कभी लालू के मोहताज नहीं रहे पप्पू यादव, अपने दम पर जीतते रहे हैं चुनाव

PATNA : मधेपुरा के सांसद और जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव ने तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है। वे राजद के निलंबित सांसद हैं। तेजस्वी यादव ने पहले ही दो टूक कह दिया है कि किसी कीमत पर पप्पू यादव की राजद में वापसी नहीं होगी। इसका मतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कि पप्पू यादव को अपने दम पर मधेपुरा से चुनाव तो लड़ना होगा। पप्पू यादव पहले आरोप लगा चुके हैं कि लालू प्रसाद ने अपने फायदे के लिए अब तक उनका राजनीति में इस्तेमाल किया है। लेकिन हर बार उन्होंने लालू प्रसाद को इसका मुंहतोड़ जवाब दिया है।

 

1988 में लालू प्रसाद को पहुंचाया था फायदा

1988 में पप्पू यादव कोशी क्षेत्र के उभरते दबंग छात्र नेता थे। वे उस समय पटना में विधायक अनूप लाल यादव के आवास में रहते थे। 1988 में जब कर्पूरी ठाकुर की मौत हो गयी तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के चुनाव का सवाल आया। इस पद के लिए अनूप लाल यादव, लालू प्रसाद समेत कुछ और नेता होड़ कर रहे थे। पप्पू यादव ने एक साक्षात्कार में बताया था कि कैसे लालू प्रसाद ने इनका राजनीति में इस्तेमाल किया था। उस समय लालू प्रसाद पिछड़ों के सर्वमान्य नेता नहीं थे। लालू यादव के समर्थन के लिए अन्य नेताओं के साथ ने भी विधायकों के घर- घर जाते थे। लालू प्रसाद नेता विरोधी दल चुन लिये गये। लेकिन उसके अगले ही दिन पटना के अखबारों में एक खबर प्रकाशित हुई कि कांग्रेस नेता और स्पीकर शिवचंद्र झा की हत्या करने के लिए पूर्णिया से एक कुख्यात अपराधी पप्पू यादव पटना आया हुआ है। पप्पू यादव इस खबर से अंजान थे। जब उनके एक मित्र ने ये बात बतायी तो भाग कर वे पटना यूनीवर्सिटी के पीजी हॉस्टल में चले गये। वहां दो तीन दिन रहे फिर कोलकाता चले गये। लालू प्रसाद के लिए पप्पू यादव ने बहुत भाग दौड़ की थी लेकिन जब वे संकट में फंसे तो लालू ने उनकी कोई मदद नहीं की। पप्पू यादव पर मीसा का केस कर दिया गया। घर की कुर्की भी हो गयी। बाद में पकड़े गये।

1990 में टिकट नहीं दिया था लालू ने

नौ महीने के बाद पप्पू यादव रिहा हुए। तब तक 1990 का विधानसभा चुनाव आ गया। पप्पू यादव पुरानी बातों को भुला कर लालू प्रसाद के पास पहुंचे और अपने लिए टिकट मांगा। लालू ने टिकट से इंकार कर दिया। इससे नाराज पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। वे मधेपुरा के सिंहेश्वर से चुनावी अखाड़े में उतरे और जीत हासिल की। पप्पू यादव केवल 25 साल में ही विधायक बन गये थे। 1990 में लालू प्रसाद मुख्यमंत्री तो बने थे लेकिन उनके दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं था। अब लालू को पप्पू यादव जैसे नेताओं की जरूरत थी। उनके कहने पर पप्पू यादव ने खुद तो समर्थन दिया ही, चार अन्य निर्दलीय विधायकों को समर्थन देने के लिए तैयार कर लिया। इससे दोनों एक दूसरे के नजदीक हुए।

1991 के लोकसभा चुनाव में लालू ने फिर निराश किया था पप्पू यादव को

1991 के लोकसभा चुनाव का समय आया तो पप्पू यादव ने लालू प्रसाद से फिर टिकट मांगा। लालू ने  इस बार भी टिकट देने से इंकार कर दिया। पप्पू यादव ने फिर लालू प्रसाद के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। 1991 का लोकसभा चुनाव पप्पू यादव ने निर्दलीय ही पूर्णिया से लड़ा। उस समय लालू प्रसाद की बिहार में तूती बोलती थी। लालू के विरोध के बाद भी पप्पू यादव चुनाव जीत गये। वे सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद बन गये। पप्पू यादव के मुताबिक, मेरी यह जीत लालू प्रसाद को बहुत अखरी थी। 1996 में भी पप्पू यादव ने लालू प्रसाद को चुनौती दे कर पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ा। इस बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़े और जीत हासिल की। 1999 के लोकसभा चुनाव में वे फिर निर्दलीय जीते। उन्हें कभी इस बात का फर्क नहीं पड़ा कि लालू प्रसाद उनके साथ हैं या विरोध में हैं।

दोनों के रिश्ते कभी प्रगाढ़ नहीं रहे

2014 के लोकसभा चुनाव के समय लालू प्रसाद राजनीति के हाशिये पर थे। सजायाफ्ता होने की वजह से वे खुद चुनाव नहीं लड़ सकते थे। तब तक पप्पू यादव भी हत्या के मामले से बरी हो चुके थे। लालू को जीतने वाले उम्मीदवार चाहिए थे। उन्होंने पप्पू यादव को राजद में बुलाया और मधेपुरा से टिकट दिया।  फिर जीत मिली। लेकिन दोनों के बीच अधिक दिनों तक निभी नहीं। पप्पू यादव चाहते थे कि लालू प्रसाद उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाएं। उन्होंने उदाहरण दे कर कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर ने अपने पुत्र रामनाथ ठाकुर को कभी अपना राजनीतिक वारिस नहीं बनाया था। लेकिन ये विवाद बढ़ते गया।  2015 में राजद ने पप्पू यादव को पार्टी से निलंबित कर दिया था।

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