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सुरक्षा के सवाल पर संसद ठप्प, सांसदों के हंगामे पर कार्रवाई पर उठ रहे सवाल, संसद का ऐसा सिक्यॉरिटी सिस्टम! 45 मिनट का पास लेकिन दो घंटे गैलरी में रहे सागर और मनोरंजन

सुरक्षा के सवाल पर संसद ठप्प, सांसदों के हंगामे पर कार्रवाई पर उठ रहे सवाल, संसद का ऐसा सिक्यॉरिटी सिस्टम! 45 मिनट का पास लेकिन दो घंटे गैलरी में रहे सागर और मनोरंजन

DELHI- संसद की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर लगातार दूसरे दिन संसद में हंगामा और विरोध प्रदर्शन जारी रहा. विपक्षी पार्टियों के हंगामे की वजह से सत्र के 10वें दिन यानी शुक्रवार को कामकाज नहीं हो सका और दोनों सदन ठप्प रहे. संसद में चूक और 14 विपक्षी सांसदों को सत्र की बची हुई अवधि के लिए निलंबित किए जाने के खिलाफ शुक्रवार को विपक्षी सांसदों ने संसद के अंदर और बाहर प्रदर्शन किया. विपक्ष ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सदन में बयान देने और इस्तीफा देने की मांग की. संसद पर दो दशक पहले हुए हमले वाले ही दिन दुबारा सूरक्षा चूक का मामले में सांसदों की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आ रही है लेकिन राजनीतिक जानकारों के अनुसार  घटना के विरोध में भारी हंगामा भी टाला जाना चाहिए था.वहीं दूसरी ओर 15 विपक्षी सांसदों का शीतकालीन सत्र के लिये निलंबन भी लोकतंत्र के लिए स्वस्थ्य प्रक्रिया कहना सही नहीं होगा. हकीकत है कि विपक्ष ने भी सूरक्षा चूक मामले को सरकार को घेरने के एक अवसर के रूप में देखा.  विडंबना है कि  संसद के दोनों सदनों में जहां विपक्षी सांसदों में खासी तल्खी देखी जाती है, वहीं सत्तापक्ष द्वारा भी उसी अंदाज में प्रतिकार होता है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दोनों ही जनहित के सरोकारों को लेकर प्रतिबद्ध होते हैं. सत्ता पक्ष का दायित्व जहां आर्थिक विकास और नियोजन का क्रियान्वयन करना होता है, वहीं विपक्ष का दायित्व सत्ता पक्ष के निरंकुश व्यवहार पर अंकुश लगाना होता है.ऐसे में तल्खी, अप्रिय वाद-विवाद तथा निलंबन आदि का औचित्य क्या है? दोनों पक्षों को दुराग्रह से मुक्त होकर सुचारु रूप से सदन चलाना चाहिए.लोकसभा में विपक्ष के चौदह और राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन के निलंबन को टालने का प्रयास करना चाहिए था.माननीयों के व्यवहार में शालीनता, गरिमा और  धैर्य जैसे मानवीय भाव  दिखेगा तो देश की जनता और विदेश में भारत की स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं का संदेश अच्छा जाएगा.

सूरक्षा चूक के मामले में विपक्ष गृहमंत्री के बयान देने की मांग पर अड़ा था.साथ ही मांग थी कि भाजपा के उस सांसद पर भी कार्रवाई हो, जिसकी अनुशंसा पर आरोपियों को संसद की दर्शक दीर्घा में प्रवेश मिला. सरकार के किसी जिम्मेदार मंत्री द्वारा विपक्ष की मांग पर बयान दिया जाता. उत्तेजित हुए विपक्षी सांसदों को जरूरी संयम का परिचय देना चाहिए था लेकिन आम चुनाव की ओर बढ़ते देश में लोकसभा के आखिरी सत्र में राजनीतिक प्रतिक्रिया के निहितार्थ समझना भी कठिन नहीं है.सवाल है कि क्या जांच प्रक्रिया इतनी कमजोर है कि दो लोग जूतों में कलर स्मोक स्टिक छिपाकर लोकसभा पहुंच गए? इन सवालों के बीच एक और चौंकाने वाली बात सामने आई जिससे पता चलता है कि संसद की सुरक्षा व्यवस्था कितनी लचर है. जांच में पता चला है कि सागर और मनोरंजन के पास 45 मिनट तक ठहरने का ही विजिटर पास था, लेकिन वो दोनों 2 घंटे तक लोकसभा की दर्शक दीर्घा में ठहरे और आखिर में वहां अफरा-तफरी मचा दी. विपक्ष भी इन्हीं सवालों को लेकर सरकार को संसद में घेर रहा है. 

 संसद की सुरक्षा एक संवेदनशील मुद्दा है और 22 साल पहले हुए हमले में हमने बड़ी कीमत चुकायी थी. उम्मीद थी कि उस घटना से सबक लेकर हमने सुरक्षा की चाकचौबंद व्यवस्था की होगी लेकिन येन-केन-प्रकारेण दो युवक संसद की सुरक्षा व्यवस्था को भेदने में कामयाब हुए. देश की सबसे बड़ी पंचायत की सुरक्षा में कमि  रहने से उपजे घटनाक्रम का देश के जनमानस के मनोबल पर प्रतिकूल पड़ा यह कहने से गुरेज नहीं होना चाहिे.  ऐसे में विपक्ष का सुरक्षा चूक मामले में जवाब मांगना तो बनता ही था लेकिन इस मामले में सुरक्षा व जांच एजेंसियों की पड़ताल के लिये भी समय दिया जाना चाहिए.

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ल ने गुरुवार को कहा- संसद सदस्यों को निलंबित किया जा रहा है और सदन छोड़ने के लिए कहा जा रहा है अब विपक्ष के पास क्या बचा है? लोग सदन में बोलने के लिए विपक्ष को चुनते हैं. दूसरी ओर विपक्ष के हंगामे पर संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा- स्पीकर ने जो भी निर्देश दिए हैं, सरकार उनका अक्षरश: पालन कर रही है. मामला कोर्ट में भी है, हाईलेवल जांच चल रही है. विपक्ष को जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करना चाहिए.

 बहरहाल सूरक्षा चूक का मामला कई सबक देकर गया है. सांसदों को दर्शक दीर्घा जाने वाले लोगों को पर्याप्त जांच-पड़ताल के बाद पास देना होगा. इस घटनाक्रम ने उन आम लोगों के लिये मुश्किल खड़ी कर दी है जो लोकतंत्र के इस सबसे बड़े मंदिर में कार्यवाही देखने की आकांक्षा रखते हैं. अब उन्हें बेहद कड़ी, जटिल और कई परतों वाली जांच व सुरक्षा से गुजरते हुए दर्शक दीर्घा तक पहुंचने का अवसर मुश्किल से मिल पाएगा.

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