पटना टू शाहाबाद भाया औरंगाबाद, तेजस्वी एक्सप्रेस की रफ्तार के सामने नहीं बचा NDA का अवशेष

PATNA: बिहार विधानसभा चुनाव में मगध-शाहाबाद की धऱती पर महागठबंधन ने एनडीए को धऱती पकड़ होने पर मजबूर कर दिया। तेजस्वी के रफ्तार के सामने पाटलिपुत्रा औरंगाबाद और शाहाबाद के इलाके में एनडीए की सांस बंद हो गई। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में तेजस्वी के द्वारा दी गई टिस का असर अगले पांच सालों तक भाजपा और जेडीयू को गहराई से महसूस होते रहेगा। 

पटना से निकलते ही तेजस्वी की रफ्तार के मझधार में एनडीए बुरी तरह फंसते नजर आती है। पटना से निकलते ही फुलवारी में हीं एनडीए की नाव डूब गई। फुलवारी में जहां तीर सिर के बल खड़ा हो गया वहीं दानापुर में कमल की पंखुडी खिलने से पहले ही बिखर गई।बिक्रम में विवशता ऐसी कि बीजेपी कैंडिडेट किसी तरह से जमानत बचाने में सफल रहा। स्थिति का आकलन ऐसे कर सकते हैं कि बीजेपी प्रत्याशी वहां सीधी लड़ाई में भी नहीं रह पाए। 

अब बात पालीगंज की,बीजेपी की परंपरागत सीट पालीगंज को जब भूमिहारों के खाते से छीन कर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने जेडीयू के हवाले किया तब ही यह तय हो गया था कि यहां एनडीए की करारी हार होने वाली है। हुआ भी यही वहां से महागठबंधन के भाकपा माले उम्मीदवार सौऱभ ने जेडीयू उम्मीदवार को भारी मतों के अंतर से हरा दिया। इसी तरह मसौढ़ी में जेडीयू ने हार का सिलसिला कायम रखा.यहां भी भारी मतों के अंतर से राजद ने जेडीयू उम्मीदवार को चारो खाने चित्त कर दिया।

अब बात कर लेते हैं अरवल की, जहां बीजेपी ने अंतिम समय में टिकट में फेरबदल करते हुए फ्रॉड केस के आरोपी को उम्मीदवार बना दिया। यहां भी आकलन के मुताबिक बीजेपी उम्मीदवार भाकपा माले के आगे चारो खाने चित्त हो गया। अगर बीजेपी इस सीट पर बुद्धिमानी से काम लेती तो सीट बच सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं कर सकी लिहाजा यह सीट एनडीए के खाते से निकल गई।इसी तरह जहानाबाद में भी एनडीए अपनी करनी की वजह से आबाद नहीं हो पाया। जहानाबाद लोकसभा की पांच सीटों पर एनडीए को पानी देने वाला भी कोई नहीं मिला। पांचों की पांच सीटें जेडीयू-बीजेपी ने गवां दिये। 

औरंगाबाद की भी वही स्थिति रही। इस जिले की सभी सीटों पर एनडीए पूरी तरह से साफ हो गया। यहां भी महागठबंधन 6-0 से जीत दर्ज करने में कामयाब रहा। अब बात शाहाबाद की कर लेते हैं....। एनडीए के लिए उर्वर शाहाबाद के कैमूर और सासाराम में भी एनडीए की हवा निकल गई।कैमूर में 2015 में जहां भाजपा ने चारों सीटें जीती थीं, वहीं इस बार वहां एनडीए का खाता तक नहीं खुल सका. उधर, रोहतास में भी ऐसा ही परिणाम मिला. इन दोनों जिलों में भी एनडीए एक भी सीट हासिल नहीं कर पायी