पटना हाईकोर्ट ने स्वैच्छिक सेवानिवृत अधिकारी के रिट याचिका पर सुनाया फैसला, कहा कोर्ट में केवल निर्णय लेने की प्रक्रिया की जांच, निर्णय की नहीं...

पटना हाईकोर्ट ने स्वैच्छिक सेवानिवृत अधिकारी के रिट याचिका प

PATNA : पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति अधिकारी के रिट याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि हाईकोर्ट केवल निर्णय लेने की प्रक्रिया की जांच करता है, निर्णय की नहीं। विभागीय दंड आदेश के खिलाफ डॉ. सुनील कुमार सिन्हा की रिट याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस अंजनी कुमार शरण ने कहा कि "कर्मचारी पर किस तरह की सजा दी जा सकती है, यह पूरी तरह से नियुक्ति प्राधिकारी का विशेषाधिकार है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कोर्ट आमतौर पर ऐसे मामलों में राय नहीं देता है।

अरवल अंबेडकर आवासीय बालिका उच्च विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के दंड आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाकर्ता की वकील महाश्वेता चटर्जी ने कहा कि याचिकाकर्ता के पक्ष में कई गवाहों ने सबूत दिए हैं। उन्हें सतर्कता मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि सजा इतनी कठोर है कि इसे रद्द किया जाना चाहिए। 

इस याचिका का विरोध करते हुए राज्य के वकील प्रशांत प्रताप ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप 31.03.2016 को सतर्कता दल द्वारा रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने के बारे में, जिसकी सूचना सतर्कता जांच ब्यूरो के पुलिस अधीक्षक द्वारा विभाग को दी गई। 

प्रताप ने सुप्रीम कोर्ट  के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि यह कोई साक्ष्य नहीं होने का मामला नहीं है और याचिकाकर्ता निर्णय लेने की प्रक्रिया में किसी भी प्रक्रियागत अनियमितता को स्थापित करने में बुरी तरह विफल रहा है। पूर्वाधिकार के सिद्धांत और दंड आदेश के सिद्धांत पर आधारित विभागीय कार्यवाही में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।