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पिता की कहानी दोहरा रहे चिराग ,15 साल पहले भी लिखी जा चुकी है ऐसी ही राजनीतिक पठकथा

पिता की कहानी दोहरा रहे चिराग ,15 साल पहले भी लिखी जा चुकी है ऐसी ही राजनीतिक पठकथा

DESK : बिहार में चुनाव की  तारीख जितनी नजदीक आ रही है उतनी ही तेजी से  यहां की सियासत भी गर्मा  रही है . बिहार का चुनाव अब एक  दिलचस्प  मोड़ पर पहुंच गया .है  ऐन वक्त पर जनता दल यूनाइटेड से लोक जनशक्ति पार्टी ने साथ छुड़ा लिया लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है अगर अतीत मे झांक कर देखें तो लोजपा 15 साल बाद आज फिर उसी जगह पर खड़ी है .ऐसा हम इसलिए कह रहें क्योंकि 2005 में रामविलास पासवान केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य थे उस वक्त UPA की सरकार थी .उसमें राजद और कांग्रेस पार्टी शामिल थी .सालभर  पहले 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में राजद ,कांग्रेस और लोजपा साथ लड़े थे. विधानसभा चुनाव में अचानक लोजपा ने अलग रास्ता अपना लिया .

इस बार भी पासवान केंद्र सरकार में मंत्री है . साल भर पहले वे नीतीश कुमार के साथ साझे में लोकसभा का चुनाव लड़े थे .उनकी पार्टी लोजपा से NDA से अलग होकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. उनकी पार्टी लोजपा एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. उस समय भी  लोजपा यूपीए सरकार में शामिल थी और बिहार विधानसभा चुनाव यूपीए से अलग हकर लड़ी. हालांकि उस चुनाव परिणाम ने लोजपा सुप्रीमो को देर तक परेशान किया.

 यहां तक कि 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार   में 2005 के विधानसभा चुनाव की  अहम भूमिका थी. हां एक समानता और है 2005 में कांग्रेस तटस्थ भूमिका में रहकर लोजपा के बहाने राज्य को सबक सिखाना चाहती थी आज आम लोग भाजपा को इसी भूमिका में देख रही हैं और लोजपा के जरिए जदयू की सीमाओं का एहसास कराना चाह रही है.

15 साल बाद सिर्फ मुख्य पात्र बदला है ,पटकथा हू ब हू वही है . रामविलास पासवान की जगह मुख्य भूमिका में पुत्र चिराग पासवान आ गए हैं पार्टी अध्यक्ष के बाद चिराग  को उत्तराधिकार के रूप में केंद्रीय कैबिनेट में भी जगह मिल सकती है .रामविलास ने सोनिया के नेतृत्व में आस्था व्यक्त की थी और चिराग की आस्था नरेंद्र मोदी में है .हां एक और समानता है पिता की तरह पुत्र को भी राज्य सरकार से नाराजगी है .2005 में लोजपा ने यूपीए के घटक राजद को तबाह करने के लिए उसकी ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े थे यही काम चिराग जदयू के लिए कर रहे हैं बेशक अकेले लेने के बावजूद 2005 के फरवरी का विधानसभा चुनाव लोजपा के लिए स्वर्ण काल था. 178 उम्मीदवार 29 सीटों पर जीत और 12% वोटों की हिस्सेदारी लोजपा सुप्रीमो उठे थे सत्ता की चाबी हमारे पास नहीं रह पाई .और  मुख्य दरवाजे पर ताला लगा रहा. 

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