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Pitru Paksha 2024: कितने प्रकार के पितृपक्ष में होते हैं श्राद्ध, पढिए पितृदोष से मुक्ति के लिए सरल उपाय

Pitru Paksha 2024: कितने प्रकार के पितृपक्ष में  होते हैं श्राद्ध, पढिए पितृदोष से मुक्ति के लिए सरल उपाय

Pitru Paksha 2024: रामायण और महाभारत काल में भी श्राद्ध का वर्णन  है. ऐसी मान्यता है कि हमारे पूर्वज इस काल में पिंडदान किया करते थे.  रामायण और महाभारत काल से कहा जाता रहा है कि  स्वर्ग से पूर्वज हमारे  पृथ्वी पर आते हैं और अपने सम्बन्धियों से पिण्डदान प्राप्त करके आशीर्वाद देकर वापस लौट जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में  3 तरह के ऋण बताए गए हैं. इसपर चर्चा करने से पहले  आइए, जानते हैं पितृपक्ष की पौराणिक मान्यताएं. पितृपक्ष में हर घरों के छत पर कौए के लिए खाना रखने की प्रथा को  आप जानते होंगे. इसके पीछे  ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से  सभी प्रकार के दोष और ऋण से मुक्ति मिलती है.   हमारे ऋषियों ने कौवों को पितरों के रूप में माना जाता है. 


भगवान राम भी अपने पिता को कर चुके हैं पिंडदान

नारद पुराण, वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गयाजी में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है. साथ ही पितरों की मुक्ति के लिए मोक्ष धाम में पिंडदान करना सबसे उत्तम कहा गया है. संभवत: यही कारण है कि यहां पिंडदान की परंपरा आदि काल से चली आ रही है. प्रत्येक वर्ष के आश्विन मास में यहां 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले का आयोजन होते आ रहा है. त्रेता युग से लेकर द्वापर युग से जुड़े देवी-देवताओं के अलावा ऋषि-मुनि व राजा-महाराजाओं ने भी अपने पितरों के उद्धार व मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान श्राद्ध कर्म व तर्पण का कर्मकांड किये हैं. इन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम, भरत कुमार, ऋषि भारद्वाज, पितामह भीष्म, राजा युधिष्ठिर, भीम सहित कई देवी-देवताओं व राजाओं ने यहां अपने पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान श्राद्धकर्म व तर्पण किये हैं.


कन्या राशि में केतु के साथ सूर्य  रहेंगे और मीन राशि में राहु की दृष्टि भी सूर्य पर रहेगी। ऐसे में ग्रहों की शांति के लिए खीर में केसर मिला कर बनाएं और दान करें. अगर आपकी कुंडली में पितृदोष है, तो आपको यह विशेष उपाय जरूर करना चाहिए. इसके अलावा काले तिल वाला पानी दक्षिण दिशा में रखें, इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है.


पितृपक्ष में श्राद्ध के कुछ प्रकार

पंचमी श्राद्ध- जिन पितरों की मृत्यु पंचमी तिथि को हुई हो या अविवाहित स्थिति में हुई है, तो उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है।


नवमी श्राद्ध - नवमी तिथि को मातृनवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।


चतुर्दशी श्राद्ध- इस तिथि उन परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।


सर्वपितृ अमावस्या- जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है। 

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