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बदहाली! खंडहर में बदला भवन, चारों तरफ जंगल जैसा नजारा, यह है बिहार के उप स्वास्थ्य केंद्र की असली सच्चाई

बदहाली! खंडहर में बदला भवन, चारों तरफ जंगल जैसा नजारा, यह है बिहार के उप स्वास्थ्य केंद्र की असली सच्चाई

SUPOUL : कल तक जहां थे हम आज भी वहीं है, कुछ तो नही बदला पर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने 20 वर्ष होने जा रहा है, लेकिन आज भी विकास की सपना अधूरे हैं, ताजा मामला जिले के पिपरा प्रखण्ड क्षेत्र के सखुआ स्वास्थ्य उप केन्द्र इस कोराना महामारी मे भी अपने बदहाली पर रोने को विवश है । यहाँ बताते चले कि गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते बच्चे से लेकर बूढ़ों तक को स्वास्थ्य सेवा को ले जाना पड़ता है कोसों दूर, समस्या कितनी गंभीर है। इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज़ादी के बाद लगभग 1985 में ग्रामीणों के  पहल पर एवं बिहार सरकार के सहयोग से पिपरा प्रखंड के सखुआ गांव में प्राथमिक उप स्वास्थ्य केन्द्र का निर्माण हुआ था l आज यह उप स्वास्थ्य केंद्र एक जर्जर इमारत बन कर रह गई है जहां चारों ओर पेड़-पौधा , जंगली घास उग आये हैं। कुछ दिनों तक तो स्वास्थ्य उपकेन्द्र सेवा चालू रहा लेकिन लगभग 15 वर्षों से विभागीय उपेक्षा के उदासीनता के कारण अब यह केन्द्र खंडहर और भूत बंगला के रूप में तब्दील हो गया है ।स्वास्थ्य महकमा रास्ते को लेकर ठोस योजना तैयार करने में विफल साबित रही है । आये दिन - प्रतिदिन स्थिति विस्फोटक होती जा रही है । 

वहीं दिनापट्टी पंचायत अन्तर्गत स्वास्थ्य उपकेन्द्र का आलम यह है कि न तो डॉक्टर आते है और न ही कोई विभागीय कर्मचारी ? हाँ पंचायत में एएनएम बहाल जरूर है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर यहां अब तक कुछ भी उपलब्ध नहीं है। अगर कुछ है भी तो वह सिर्फ जीर्ण-शीर्ण भवन , पेड़ पौधे और झाडी़ झुरमुट , जंगली घास जिसके कारण भवन कभी भी धराशायी हो सकती है । एक अदद रास्ते के अभाव में उक्त उप स्वास्थ्य केन्द्र अब पूरी तरह से ठप पड़ गया । सखुआ स्वास्थ्य उपकेन्द्र मे समुचित स्वास्थ्य सेवा नहीं होने से कई नवजात बच्चों की मौत भी इस इलाके के लोंगो ने देखी है।

 डिलिवरी तथा ग्रामीणों को इलाज के लिए लगभग 6-7 किलोमीटर दूर प्रखंड मुख्यालय पिपरा स्थित स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाना पड़ता है। स्वास्थ्य केंद्र में एक अदद स्वास्थ्य सेवा बहाल नहीं होने से ग्रामीण बीमारियों के साथ जीने को विवश हैं। कभी भी साधन विहीन हाशिए पर खडे़ बेबस और लाचार लोग जिंदगी से हाथ धोते रहते हैं। गांव के लोगों खासकर महिलाओं और बच्चों पर स्वास्थ्य केंद्र के बंद रहने का सबसे ज़्यादा असर पड़ता है। कुपोषण, प्रसव और मौसमी बिमारियों के लिए प्राइवेट डॉक्टर ही एकमात्र सहारा होते हैं । गांव के लोग जिनमें ज्यादातर किसान और मज़दूर  शामिल हैं। गरीब लोग अपनी कमाई का अच्छा खासा हिस्सा इलाज के नाम पर प्राइवेट चिकित्सकों के यहां लूटा देते हैं। बहुत से ग्रामीणों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वो शहर तक का सफर कर सकें या प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवा सकें। 

सरकार के सात निश्चय योजना का यह अहम हिस्सा है फिर भी उप स्वास्थ्य केन्द्र सखुआ अपनी बदहाली पर आसूं बहा रही है। आखिर अभी तक स्वास्थ्य सेवा जैसे ज्वलंत समस्याओं की तरफ प्रशासनिक पदाधिकारी, स्थानीय जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं जाना बहुत कुछ सखुआ स्वास्थ्य उपकेन्द्र के बदहाल व्यवस्था को लेकर प्रश्न खड़ा हो रहा है ?  स्थानीय लोगों ने इस मामले को लेकर पिपरा पीएचसी  moic से कई बार मांग किया है कि समय रहते सखुआ स्वास्थ्य उपकेन्द्र की व्यवस्था को दुरुस्त किया जाय ताकि स्थानीय ग्रामीण क्षेत्रों के लोग स्वास्थय सेवा को कोसो दूर इलाज के लिए नहीं जाना पड़े, और स्वास्थ्य सम्बन्धित लाभ ले सकें l

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