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नए संसद भवन बनाने का रास्ता साफ, सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के विस्टा प्रोजेक्ट को दी मंजूरी

नए संसद भवन बनाने का रास्ता साफ, सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के विस्टा प्रोजेक्ट को दी मंजूरी


नई दिल्ली। पिछले एक माह के किसान आंदोलन के कारण परेशान चल रही मोदी सरकार के लिए नए साल का पहला मंगलवार बेहद शुभ रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बनाए जा रहे विस्टा प्रोजेक्ट को सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल गई है। इसके साथ ही नए संसद भवन के साथ पीएम कार्यालय, आवास और दूसरे पावर हाउस बनाने का रास्ता साफ हो गया है। 

मंगलवार को मामले में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि उनकी पीठ सरकार को इस योजना के लिए मंजूरी दे रही है। जबकि कोर्ट ने पिछले साल पांच नवंबर को ही सुरक्षित रख लिया था। हालांकि पिछले साल सात दिसंबर को केंद्र सरकार की अपील पर कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के भूमि पूजन की इजाजत दे दी थी। कोर्ट ने उन दावों को खारिज कर दिया है कि जिसमें कहा गया था कि विस्टा प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण मंजूरी के लिए गलत तरीकों को प्रयोग किया गया है। कोर्ट ने कहा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की पर्यावरण मंजूरी सही तरीके से दी गई थी। साथ ही कहा कि कंस्ट्रक्शन शुरू करने के लिए हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी की मंजूरी भी ली जाए। सेंट्रल विस्टा राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को कहते हैं. राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के करीब प्रिंसेस पार्क का इलाका इसके अंतर्गत आता है.

नई दिल्ली का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट

सेंट्रल विस्टा को नई दिल्ली का सबसे बड़ा प्रोजक्ट कहा जा रहा है। जिसमें नए संसद भवन सहित केंद्रीय मंत्रालयों के लिए सरकारी इमारतों, उपराष्ट्रपति के लिए नए इनक्लेव, प्रधानमंत्री के कार्यालय और आवास समेत अन्य निर्माण किए जाने हैं। सेंट्रल विस्टा के तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर आता है. इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA), उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं. सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के इस पूरे इलाके को रेनोवेट करने की योजना को कहा जाता है.

सुप्रीम कोर्ट में इन बातों पर जताई गई थी आपत्ती

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि इससे करीब 80 एकड़ जमीन 'प्रतिबंधित' हो जाएगी और सिर्फ सरकारी अधिकारी उसे एक्सेस कर सकेंगे. अभी ये जमीन पब्लिक के लिए भी खुली है. नए प्रोजेक्ट के बाद यह जगहें पब्लिक के लिए खुली नहीं रहेंगी, उनकी भरपाई करने का कोई प्रावधान नहीं है. इस में कम से कम 1000 पेड़ काटे जाएंगे. 80 एकड़ जमीन के ग्रीन कवर की भरपाई करने की कोई योजना नहीं है. साथ ही प्रोजेक्ट का कोई ऐतिहासिक या हेरिटेज ऑडिट भी नहीं हुआ है. यहां तक कि नेशनल म्यूजियम जैसी ग्रेड 1 हेरिटेज इमारत को भी तोड़ा या उसमें बदलाव किया जाएगा.




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