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109 साल का इंतजार ! PM मोदी की विदेशी कुटनीति को मिली बड़ी कामयाबी, अमेरिका ने दी चीन-अरुणाचल प्रदेश के बीच बने मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय मान्यता

109 साल का इंतजार ! PM मोदी की विदेशी कुटनीति को मिली बड़ी कामयाबी, अमेरिका ने दी चीन-अरुणाचल प्रदेश के बीच बने मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय मान्यता

DESK : भारत को विदेशी कुटनीति में बड़ी सफलता मिली है। लंबे समय से चीन और अरुणाचल प्रदेश के बीच मैकमोहन लाइन को अब अंतराष्ट्रीय सीमा के तौर पर अमेरिका ने मान्यता दे दी है। सीनेट में पेश प्रस्ताव में अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग दिखाया गया है। खास बात है कि यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है, जब भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास पूर्वी सेक्टर में तनाव जारी है।

सीनेटर जेफ मर्कले के साथ सीनेट में प्रस्ताव पेश करने वाले सीनेटर बिल हैगर्टी ने कहा, ‘‘ऐसे समय में जब चीन मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए लगातार गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है, अमेरिका के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस क्षेत्र में अपने रणनीतिक भागीदारों, खासकर भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे।’’   यह प्रस्ताव पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के इस दावे को भी खारिज करता है कि अरुणाचल प्रदेश पीआरसी का क्षेत्र है।

सीनेटर जेफ मर्कले ने कहा, ‘‘स्वतंत्रता और एक नियम-आधारित शासन का समर्थन करने वाले अमेरिकी मूल्यों को हमारे सभी कार्यों और संबंधों के केंद्र में होना चाहिए, खासकर जब पीआरसी सरकार एक अलग सोच के साथ आगे बढ़ रही है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्रस्ताव स्पष्ट करता है कि अमेरिका अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा मानता है, न कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का… और क्षेत्र में समान विचारधारा वाले अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ-साथ वहां समर्थन और सहायता को गहरा करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता को दोहराता है।’

क्या है सीमा विवाद?

भारत और चीन, 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. ये तीन सेक्टरों में बंटी हुई है - पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.

चीन पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना दावा करता है. चीन, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को ये कहते हुए मानने से इनकार करता है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने समझौता किया था, तब वो वहां मौजूद नहीं था। जबकि गुलाम भारत के ब्रिटिश शासकों ने तवांग और दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा माना और जिसे तिब्बतियों ने भी सहमति दी। चीनी प्रतिनिधियों ने इसे मानने से इनकार कर दिया। चीन के मुताबिक तिब्बत पर उनका हिस्सा है इसलिए वो बिना उनकी सहमति के कोई फैसला नहीं ले सकते.


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