PATNA : भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और पूर्व विधायक मनोज शर्मा सेनारी नरसंहार के सभी आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में पटना उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जाने पर इसे तत्कालीन सरकार की साजिश बताया है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन सरकार द्वारा उस समय ही इस मामले को कमजोर बना दिया था। उन्होंने कहा कि इस मामले में थाना में टीआईपी ही नहीं करवाया गया, जिसका लाभ आरोपियों को अदालत में मिला। पूर्व विधायक ने कहा कि 18 मार्च 1999 में सेनारी गांव को घेर कर निर्मम तरीके से 34 लोगों की हत्या कर दी गई थी, इसके एक दिन बाद 19 मार्च को प्राथमिकी दर्ज की गईं ।
उन्होंने कहा कि पहले दर्ज प्राथमिकी में 16 आरोपी बनाए गए थे इसके बाद उसी साल फर्स्ट रिपोर्ट 16 जून को दिया गया जिसमें 56 आरोपी और 82 गवाह के नाम दर्ज किए गए। इसके बाद सप्लीमेंटरी चार्जशीट 27 अक्टूबर 1999 को जमा किया गया जिसमें 1 आरोपी बनाया गया। इसके बाद दूसरा चार्जशीट 20 फरवरी 2000 में जमा किया गया जिसमें 19 एडिशनल को जोड दिया गया। तीसरे चार्जशीट में फिर एक आरोपी बनाया गया। तीसरा चार्जशीट 5 मई 2000 को दिया गया ! कुल मिलाकर इस मामले में 77 आरोपी बनाए गए ।
पूर्व विधायक ने कहा कि इनमें से 45 आरोपियों पर चार्ज फ्रेंम किया गया और 38 आरोपियों के खिलाफ ट्रायल प्रारंभ हुआ। उन्होने कहा कि इस मामले में तत्कालीन सरकार के निर्देश पर पुलिस ने टीआईपी नहीं करवाई जिसका लाभ आरोपियों को मिला। उनहोंने कहा कि टीआईपी कोर्ट में की गई। उन्होंने कहा कि यह सरकार की सोची समझाी साजिश थी कि अदालत ने साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों को बरी करना पड़ा। उन्होंने बिहार सरकार से इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाने की मांग की है।
बता दें कि मार्च 1999 में जहानबाद के सेनारी में हुए नरसंहार में एक साथ 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। बिहार में उस समय राबड़ी देवी की सरकार थी। मामले में जहानाबाद की नीचली अदालत ने 2016 में 13 लोगों को सजा सुनाई थी, जिस पर शुक्रवार को पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी और सभी आरोपियों को बरी करते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से रिहा करने का आदेश दिया था।