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पुटूस यादव-राजदेव रंजन यादव और अब गोपालगंज में तिहरे हत्याकांड से लालू परिवार के राजनीतिक मिजाज को समझिए,हत्याकांडों की सेलेक्टेड सियासत के मायने क्या हैं?

पुटूस यादव-राजदेव रंजन यादव और अब गोपालगंज में तिहरे हत्याकांड से लालू परिवार के राजनीतिक मिजाज को समझिए,हत्याकांडों की सेलेक्टेड सियासत के मायने क्या हैं?

PATNA: बिहार की राजनीति में हत्याकांडों पर राजनीतिक रोटी सेंकने का प्रचलन काफी पुराना रहा है।गोपालगंज में हुई तिहरे हत्याकांड के बाद से राजद नेतृत्व काफी आक्रामक हो चुका है।वाकई विपक्ष का काम है कि सरकार की निष्क्रियता पर चोट कर उसे सजग करना।लेकिन विडंबना देखिए कि,इसमें सकारात्मक सक्रियकता कम राजनीतिक रोटी सेंकने की जल्दीबाजी कुछ ज्यादा हीं दिखाई देती है.सबको पता है कि आने वाले कुछ महीनों में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और जनता राजनीतिक पार्टियों के मुकद्दर का फैसला लिखने वाली है.बिहारी सियासत के शतरंज पर जातिय मोहरों की चाल और ताल के सहारे राजनीतिक पार्टियां चुनावी वैतरणी पार करने में कोई कोताही बरतना नहीं चाहती।ऐसा पहले भी देखा गया है।लेकिन अफसोस कि हत्याकांडों पर भी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए राजनीतिक पार्टियां व्यक्ति और जाति का शर्मनाक चुनाव करने से बाज नहीं आती।

पुटूस-राजदेव रंजन-गोपालगंज तिहरा हत्याकांड से राजनीति के मिजाज को समझिए

अब समय की सूई को करीब पांच साल पहले यानि जून 2015 पर ले जाकर टिका देते हैं.याद कीजिए इसी महीने में बाढ़ में हुए एक हत्याकांड ने सत्ता के गलियारे में भूचाल मचा दिया था।जी हां उस हत्याकांड का नाम है पुटूस यादव हत्याकांड.बताया जाता है कि बाढ़ का रहने वाला पुटूस यादव पर आरोप था कि वह सरे बाजार लड़कियों को छेड़ता है।यह बात मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह के दरबार में पहुंची तो विधायक ने पुटूस यादव को अपने दरबार में पेश करने का फरमान जारी कर दिया.फिर बाहुबली विधायक के गुर्गों ने पुटूस यादव को बाढ़ से उठाकर अनंत के दरबार में पेश कर दिया.सजा मुकर्रर हुई और फिर विधायक के पैतृक घर में हीं पुटूस यादव और उसके दोस्त की जमकर पिटाई की गई।

इसके बाद पुटूस यादव का शव बाढ़ के टाल इलाके में बरामद हुआ।पुटूस यादव की हत्या की खबर जैसे हीं सामने निकल कर सामने आई तो बिहार की सियासत में सनसनी मच गई।इस हत्याकांड में जेडीयू के बाहुबली विधायक अनंत सिंह का नाम सामने आते हीं राजद सुप्रीमो लालू यादव आगबबूला हो गए और फिर पुटूस यादव हत्याकांड एक ऐसी राजनीतिक रोटी बन गई जिसे हर कीमत पर राजद अपने चूल्हे पर पकाना चाहती थी .राजद उसमें सफल भी रही. लालू यादव मीडिया में आकर लगातार कहते रहे कि विधायक अनंत सिंह ने पुटूस की हत्या कराई है।हमारी बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हो गई है।बिहार की पुलिस सुशासन के प्रति संकल्पित है।इसके बाद विधायक अनंत सिंह को उनके आवास से भारी ड्रामे के बाद गिरफ्तार कर लिया गया. लालू प्रसाद जिस मकसद से इस मुद्दे को उठाया था उसमें वो कामयाब हो गए।वे यह बताने में सफल रहे कि यादवों का असली नेता व संरक्षक वही हैं।

राजदेव रंजन हत्याकांड और राजद की राजनीति

पुटूस यादव हत्याकांड के बाद लालू यादव की सत्ता आबाद हो चुकी थी।तभी ठीक एक साल बाद सिवान में एक दैनिक अखबार के एक पत्रकार को सरेआम गोलियों से भून दिया गया। जी हां बता दें कि उस पत्रकार का नाम था –राजदेव रंजन यादव ।सिवान एक बार फिर से सुर्खियों में था और इस हत्याकांड में जेल के अंदर बैठे राजद के कद्दावर नेता पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन का नाम सामने आ चुका था।विपक्षी पार्टियां उबल रही थीं।बुद्धिजीवी, पत्रकार,कलमकार आक्रामक विचार रख रहे थे।लेकिन यादवों के संरक्षक लालू प्रसाद और उनका कुनबा मौन साधे बैठा था।अपने दामन पर दो दर्जन से भी ज्यादा हत्याकांडों का दाग लिए बैठे शहाबुद्दीन राजद के लिए किसी देवता से कम नहीं थे।सत्ता में बैठी राजद को कुछ सूझ नहीं रहा था।कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं,यहां तक कि मातमपूर्सी के नाम पर राजद का कोई बड़ा नेता यादव कुल में जन्मे राजदेव रंजन के परिवार से मिलने तक नहीं गया. पुटूस यादव हत्याकांड पर आक्रामक लालू यादव और उनकी पार्टी के पैर सिवान जाने के नाम पर भारी हो चुके थे।

गौरतलब है कि राजदेव रंजन यादव हत्याकांड पर बोलने से राजद का परंपरागत मुस्लिम का वोट बिगड़ने का डर था।क्यों कि इसमें सीधे-सीधे राजद के कद्दावर नेता और बाहुबली पूर्व सांसद शहाबुद्दीन का नाम सामने आ चुका था। यही वजह रही कि एक पत्रकार जो यादव कुल से था उसकी हत्या पर बात-बात पर उबलने वाली पार्टी कुंडली मार कर बैठ गई।

गोपालगंज का तिहरा हत्याकांड और राजनीति

वाकई,यह हत्याकांड सुशासन के गिरते इकबाल का परिचायक है।इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में अपराध की बाढ़ आ गई है।हत्या,लुट,बलात्कार जैसे अपराध की रफ्तार कानून के मुंह पर तमाचे से कम नहीं।एक विपक्षी पार्टी और प्रतिपक्ष के नेता होने के नाते तेजस्वी यादव का आक्रामक होना जायज है।होना भी चाहिए... गोपालगंज के तिहरे हत्याकांड के सिलसिले में सोशल मीडिया का सहारा लेना और लॉकडाउन में घायल से मुलाकात करने जाना,इसके बाद प्रेस कांफ्रेंस करना और अब राजभवन जाकर राज्यपाल से मुलाकात करना अच्छी बात है।लेकिन क्या ठीक इसी तरीके से कुछ हीं दिन पहले गया के सिंदूआरी में दबंगों ने जब चार लोगों को गोलियों से भून दिया था तब यह सक्रियता नहीं दिखानी चाहिए थी?बात-बात ट्वीट करने वाले तेजस्वी यादव सिंदूआरी कांड में घायल या मृतक के परिजनों से मुलाकात करने या मीडिया मेंआकर बात करने और राजभवन मुलाकात करने की बात छोड़िए एक ट्वीट करना भी मुनासिब नहीं समझा था।

आखिर गोपालगंज के तिहरे हत्याकांड में इतनी अकबकाहट क्यों?

बता दें कि पुटूस यादव हत्याकांड में जिस तरह से एक बाहुबली विधायक का नाम सामने आया था जो अगड़ी जाति से थे।ठीक उसी तरीके से चुनाव से कुछ महीने पहले गोपालगंज में जेपी यादव के परिवार के तिहरे हत्याकांड में भी एक बाहुबली विधायक का नाम सामने आ रहा है।यह विधायक भी अगड़ी जाति से हैं .अब मौका है राजनीतिक रोटी सेंकने का.एक बार फिर से संभवतः राजद इसमें चूकना नहीं चाहता। बेशक गोपालगंज हत्य़ाकांड के दोषिय़ों को अविलंब सजा मिलनी चाहिए।लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सिंदूआरी घटनाक्रम पर चुप्पी साधने वाली राजद और उसके नेता की आक्रमकता घटना क्रम के अनुसार बदल क्यों जाती है?क्या यह वोटों के समीकरण को चुनावी माहौल से ठीक पहले साधने का घिनौना सच नहीं...?कभी राजदेव रंजन यादव के यहां जाने की भी सोंच लेते,लेकिन ऐसा दिखता नहीं है।इस पर हर पार्टी को विचार करनी चाहिए कि आजादी के इतने साल बाद भी सियासत में सिर्फ जाति के नाम पर राजनीति कब तक होते रहेगी?संभव तो यह भी था कि हत्याकांडों पर सलेक्टेड राजनीति की बजाए अपराध को अपराध की नजर से देख कर सामाजिक न्याय और विकास की सियासत करते।


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