बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

चाईनीज सामानों की बिक्री से भुखमरी के कगार पर पहुंचे कुम्हार, चाक की गति हुई धीमी

चाईनीज सामानों की बिक्री से भुखमरी के कगार पर पहुंचे कुम्हार, चाक की गति हुई धीमी

MADHEPURA : मिट्टी की महंगाई और चाइनाके दीये का बढ़ता बाजार कहीं अगले साल से मधेपुरा जिले के कुम्हारों के चाक की रफ्तार को थाम न दे. यह दर्द उन सभी कुम्हारों का है, जो दीवाली के मौके पर दीये के साथ मिट्टी के बरतन का निर्माण करते हैं. अब इनके चेहरे पर एक अनजाना सा खौफ है. दीपावली घर को रौशनी से रोशन करने का पर्व है. सबके घरों में दीये के प्रकाश से उल्लास और उमंग के साथ लक्ष्मी का प्रवेश होता है. लेकिन दीया और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बनाकर दूसरों के घरों में खुशियों की सौगात देने वाले अपने घरों के बंद हो रहे चूल्हों से परेशान हैं. 

इसे भी पढ़े : पुलिस ने मनरेगा भवन में की छापेमारी, भारी मात्रा में शराब के साथ एक को किया गिरफ्तार

अब चाइना के मूर्तियों के बाजार ने उनके हाथों के हुनर को नजर लगा दी है.अब कुम्हारों के वह दिन नहीं रहे, जब महीने भर पहले सेआर्डर आने लगते थे. अब तो स्थिति यह है कि पेट चलाना मुश्किल है. लक्ष्मी संपन्नता की देवी होती है, लेकिन जो उन्हीं के निर्माणकर्ता हैं, वह चिंतित नजर आते हैं. मिट्टी के दिये की जगह अब प्लास्टिक के दीये बाजार में हैं. मिट्टी का चूल्हा अब सपना हो गया. लोग गैस चूल्हे पर पूजा का प्रसाद बना लेते हैं. लेकिन इस परंपरागत कुटीर उद्योग पर किसी का ध्यान नहीं है. 

आने वाले एक दो सालों में कई और परिवार भी इस धंधे से किनारा कर लेंगे. पहले मिट्टी मुफ्त में मिलती थी. अब उसकी भी कीमत चुकानी पड़ती है. मिट्टी की कीमत भी बाजार से वापस नहीं आती, क्योंकि दीपावली के सत्तर फीसदी बाजार पर चाइनानिर्मित सामानों का कब्जा हो गया है.महीनोंमेहनत और घंटों मशक्कत के बाद लागत मूल्य भी वापस आना पूरी तरह सपना है. आधुनिकता के दौर में अब अधिकतर घरों में कुछ ऐसी ही स्थिति है कि स्टील के बर्तनों से लेकर मिट्टी के दिये-मोमबत्ती तक, झालरों से लेकर मिठाई और कपड़े समेत तमाम ऐसी पुरानी वस्तुएं जो हमारी परंपराओं में शामिल रही हैं. बदलते परिवेश ने इन परंपरागत रिवाजों पर आधुनिकता की चादर डाल दी है. अब दीवाली पर चाइना मेड झालर आदि से घरों में रोशनी हो रही है. 

इसे भी पढ़े : दर्जनों लूटकांड के आरोपी को पुलिस ने किया गिरफ्तार, दो पिस्टल और कारतूस बरामद

समय ने त्योहारों के मनाने की स्टाइल को भी बदल दिया है. पहले मिट्टी के दिये प्रदूषण नहीं करते थे और इन्हें शुद्ध माना जाता था. एक दौर था जब दीपावली आने की सबसे अधिक खुशी कुम्हारों की चाक पर दिखायी देती थी. कई महीने पहले से चाक की गति बढ़ जाती थी.इसकुटीर कला सेजुड़े लोग मानते थे कि दीपावली उन्हें इतना दे जायेगी कि वह पूरी साल परिवार का पालन कर सकेंगे. होता भी यही था. समय बदला तो इन चाकों की रौनक गायब होती गयी.  आधुनिकता की दौड़ नेइस धंधे पर ग्रहण लगा दिया है.

मधेपुरा से मो. मेराज आलम की रिपोर्ट 


Suggested News