बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

दिल्ली में मकर संक्रांति की तैयारियां शुरू; गया के तिलकुट व भागलपुर की कतरनी चूड़ा की है विशेष मांग

दिल्ली में मकर संक्रांति की तैयारियां शुरू; गया के तिलकुट व भागलपुर की कतरनी चूड़ा की है विशेष मांग

नई दिल्ली. चाणक्यपुरी स्थित ‘बिहारिका’ में आगामी मकर संक्रांति को लेकर तैयारियाँ शुरू हो गईं है। बिहार की कला देहरी, बिहारिका, में बिहार के अलग-अलग ज़िलों के हस्तशिल्प और हथकरघा निर्मित उत्पादों के अलावा खाने-पीने की चीज़ों को भी शामिल किया गया है। इनमें गया का तिलकुट, भागलपुरी कतरनी चूड़ा, गुड़, मटकी दही, धनरुआ की लाई, मिथिला का मखाना और अन्य खाद्य पदार्थों को शामिल किया गया है। 11 जनवरी मंगलवार से 14 जनवरी तक ये सामान उपलब्ध होंगे।

स्थानिक आयुक्त, पलका साहनी (भाप्रसे) ने बताया, "राजधानी दिल्ली में रहने वाले बिहार के वे लोग जो खास तौर पर वहां त्योहारों पर बिहार के पकवान को मिस करते हैं, उनके लिए हमने इस पहल की शुरुआत की है। बाजार में उपलब्ध कतरनी चूड़ा की गुणवत्ता उत्तम मानी जाती है। यह बेहद नरम और सुगंधित होता है। चावल की इस किस्म की न केवल भागलपुर जिले में बल्कि पूरे देश में भारी मांग है। ऐसा माना जाता है कि कतरनी चावल की सुगंध और स्वाद, इस जिले में प्राकृतिक रूप से बनने वाले पर्यावरण का एक उपहार है। बिहारिका में गया का तिलकुट भी उपलब्ध है। हमने अक्सर ये महसूस किया है कि बिहार के पकवानों की दिल्ली में बहुत मांग है। देश-विदेशों तक तिलकुट, लाई और खाजा को पसंद किया जाता है। हमें विश्वास है कि आने वाले समय में राजधानी दिल्ली और बिहार की दूरी बिहार राज्य के व्यंजन और कला से पाट दी जाएगी।"

ज्ञात हो कि बिहार से 300 किलो उच्च क्वालिटी का कतरनी चूड़ा, 100 किलो चावल, 50 किलो गुड़ और गया का खास्ता तिलकुट बिहार भवन भेजा गया है। पवित्र पिंड दान और गौतम बुद्ध के अलावा, तिलकुट गया जी की संस्कृति है. माना जाता गया के रमना मोहल्ले में तिलकुट की शुरू हुआ। टेकरी रोड, कोइरीबाड़ी, स्टेशन रोड समेत कई इलाकों में तिलकुट के कारीगर रहते हैं। रमना रोड और टेकरी के कारीगरों द्वारा बनाया गया तिलकुट आज भी बहुत स्वादिष्ट होता है। वे बताते हैं कि कुछ ऐसे परिवार भी गया में हैं, जिनका पारिवारिक पेशा यह हो गया है। खस्ता तिलकुट के लिए मशहूर गया का तिलकुट झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में भेजा जाता है।

भगवान बुद्ध और 'तिल' का संबंध

ऐसा माना जाता है कि बुद्ध तिल (तिल) खाने पर जीवित रहे जब उन्होंने बोधगया में वर्तमान महाबोधि मंदिर के पास उरुवेला में कठोर तपस्या का अभ्यास करना शुरू किया। पाली सूत्रों का उल्लेख है कि उन्होंने कम से कम भोजन और पानी लेना शुरू कर दिया, ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने शायद ही कभी खाया। वह केवल उबलते चावल (अकामा) (मांड), या तिल के बीज (पिनाका) से तेल निकाले जाने के बाद बचे हुए ठोस पदार्थों से जीवित रहना शुरू कर दिया। वह आगे प्रतिदिन केवल चावल या तिल के एक दाने पर जीवित रहने लगे। वह कमजोर और पतला हो गया और इस अवस्था के बाद ही उसने मध्य मार्ग का अनुसरण करने का फैसला किया और अंत में आत्मज्ञान प्राप्त किया।

साहनी ने आगे बताया, "बिहार में मकर संक्रांति को सकरात या खिचड़ी भी बोला जाता है। देश के किसानों के प्रति आभार प्रकट करते हुए ताजे खेती वाले चावल का उपयोग 'खिचड़ी' बनाने के लिए किया जाता है, जिसे सकरात की शाम घी, पापड़, दही और अचार के साथ परोसा जाता है। बिहारिका में नये चावल की खेप भी आई है, जिसे आम लोग 14 तारीख़ से पहले आसानी से ख़रीद सकते हैं। इसके अलावा मटकी वाली ताजे दूध की दही, गुड़ और बिहार के धनरुआ में निर्मित खोये और रामदाने की लाई भी उपलब्ध है। बिहारिका न सिर्फ़ दिल्ली में स्थित बिहार के निवासियों के लिए बिहार से जुड़ने का एक मौक़ा है, बल्कि वहाँ के कारीगरों, बुनकरों और किसानों को दूर रहते हुए भी आर्थिक रूप से सहयोग करने का एक रास्ता भी है। बिहार की संस्कृति को सहज तरीक़े से प्रसारित करने का बिहारिका एक सुलभ माध्यम बनकर उभरा है।“

Suggested News