राष्ट्रकवि दिनकर की 114वीं जयंती पर अरवल में प्रगतिशील लेखक संघ का कार्यक्रम, कहा- सामासिकता की इज्जत करना सिखाते हैं रामधारी सिंह दिनकर

पटना. अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की अरवल जिला इकाई अरवल द्वारा 23 सितंबर को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 114 वीं जयंती के मौके पर जगदीश ब्रजकिशोर उच्च माध्यमिक विद्यालय (कामता, अरवल) के परिसर में ‛दिनकर हमें क्या सिखाते हैं ?’ विषय पर एक विमर्श का आयोजन किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता सेवानिवृत प्राचार्य नवल किशोर शर्मा और संचालन कुंदन कुमार ने किया।

प्रगतिशील लेखक संघ के अरवल जिला सचिव गजेंद्र कांत शर्मा ने स्वागत और विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि दिनकर स्वतंत्रता अंदोलन के धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक व समाजवादी मूल्यों के लेखक थे। उनकी लेखकीय दृष्टि का आधार गांधीवाद और मार्क्सवाद है। आज भारतीय समाज में इन दोनों विचारों पर खतरा है। पंडित जवाहरलाल नेहरू दिनकर के प्रिय व्यक्तित्व हैं। वे बुद्ध, महावीर, मार्क्स, गांधी, नेहरू, भगत सिंह के विचारों के कायल थे। दिनकर अंधराष्ट्रवाद के प्रबल विरोधी थे।

प्रगतिशील लेखक संघ के गौरव कुमार ने कहा कि दिनकर की लेखनी से ब्रिटश सत्ता भय खाती थी। हुकूमत के ख़िलाफ़ वे बेबाक लिखते थे। आज के लेखक उतना ही लिखते हैं, जिससे सत्ता को परेशानी न हो। प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य कार्यसमिति सदस्य राजकुमार शाही ने कहा कि रामधारी सिंह दिनकर भारतीय साहित्य में लोकप्रिय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी रचनाएं ओजस्वी और क्रांतिकारी चेतना से लैश होकर आम आवाम को झकझोरने का काम करती है। समाज में व्याप्त कुव्यवस्थाओं एवं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्याप्त विषमताओं पर कड़ा प्रहार किया है।

रामचंद्र पाठक ने कहा कि दिनकर सत्ता से सदैव कटु प्रश्न पूछा करते थे। आज मौजूदा सत्ता से कटु प्रश्न पूछने पर लेखकों को डर लगता है। क्योंकि मौजूदा सत्ता लेखकों को मार डालती है। मोइन अंसारी ने कहा कि दिनकर भारतीय समाज के धर्मिक विभाजन के खिलाफ थे। वे भारत की मजबूती में सभी धर्मों की भूमिका को रेखांकित करते हैं। धीरेंद्र कुमार ने कहा कि दिनकर जातिवाद के बिल्कुल खिलाफ थे। रश्मिरथी में जातिवाद की कटु आलोचना मिलती है।

पूर्व छात्र नेता और अधिवक्ता अरुण कुमार ने कहा कि दिनकर की कविता राष्ट्र को रचने की कविता है। आज राष्ट्र को जाति और धर्म के विचारों से तोड़ने की कोशिशें चल रही है। विमर्श में भीखर रविदास, धर्मेंद्र दास, सुमन कुमार, संजीश कुमार, अखिलेश कुमार, आदि ने अपना विचार व्यक्त किया। इस विमर्श कार्यक्रम में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष अम्बुज कुमार, सचिव अखिलेश कुमार, प्रमोद कुमार, रजनीश शंकर, लक्ष्मण सिंह, सुनील कुमार, धर्मेंद्र कुमार, मदन शर्मा, आदि के साथ अनेक बुद्धिजीवी, सामाजिक- सांस्कृतिक कार्यकर्ता, शिक्षक सहित भारी संख्या में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति थी।