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"विश्वविद्यालय परिसर में बम और हथियार मिलते हैं और पीयू के सर्वोच्च अधिकारी इसे हल्के से कैसे लेते हैं "?

"विश्वविद्यालय परिसर में बम और हथियार मिलते हैं और पीयू के सर्वोच्च अधिकारी इसे हल्के से कैसे लेते हैं "?

PATNA : "आखिर पीयू को पुलिस व प्रशासन के मदद की ज़रूरत क्यों पड़ती है ?" पीयू के अधिकारी इस बात पर क्यों नही गौर फरमाते कि जिन्हें लाइब्रेरी व स्पोर्ट्स ग्राउंड में होना चाहिए वे हथियारों से कैसे खेल रहे हैं ?.." पीयू हॉस्टल में बम की खबर पर स्वतः दायर हुई जनहित याचिका को सुनते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने पीयू प्रशासन को फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि पटना विश्विद्यालय के कॉलेजों में दाखिले व उसके उपरांत हॉस्टल के आवंटन से सम्बन्धित सभी नियम व प्रक्रिया को हाईकोर्ट के सामने दो हफ्ते में पेश करे। 

विदित हो कि 1 अगस्त 2016 को एक अखबार में प्रकाशित सैदपुर हॉस्टल में बम मिलने की खबर पर पटना हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पूरे मामले की मॉनिटरिंग खुद कर रही है। उक्त मॉनिटरिंग के जरिए ही पटना पुलिस की मदद से पीयू के हॉस्टलों को अवैध कब्ज़े से मुक्ति मिली और सैदपुर हॉस्टल की चहारदीवारी से घेराबंदी भी करवाई जा चुकी है। 

मंगलवार को सुनवाई के दौरान विकास चन्द्र उर्फ गुड्डू बाबा ने कोर्ट को दर्शाया कि हाई कोर्ट को आश्वासन दिए जाने के बावजूद पीयू प्रशासन का उसके हॉस्टलों पर नियंत्रण नहीं है। हाल-फिलहाल जुलाई महीने में फिर बम फटा। 

हाई कोर्ट ने इस खबर को गम्भीर करार देते हुए उपरोक्त टिपण्णी कर पीयू प्रशासन की कार्यशैली को फटकारा। कोर्ट ने पीयू प्रशासन से पूछा कि हॉस्टलों में 24 घण्टे सीसीटीवी लगाने और बायोमेट्रिक मशीन लगवाने के लिए क्या उपाय किया ? इस बात की सुध  पीयू प्रशासन अब तक क्यों नहीं ले रही कि बायोमेट्रिक सिस्टम से अनधिकार प्रवेश को रोका जा सकता है  ? 

न्यायमूर्ति डॉ रवि रंजन ने पीयू प्रशासन के इस कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लगाया जिसके तहत बिना मेरिट लिस्ट के आधार पर हॉस्टलों को छात्रों के बीच मनमाने तरीके से आवंटित किया जाता है। मुख्य न्यायाधीश ने  टिप्पणी कि की छात्रों के लिए लाइब्रेरी या स्पोर्ट्स की सुविधा में कितना इजाफा किया पीयू प्रशासन ने ताकि छात्रों का ध्यान असामाजिक गतिविधियों पर न जाए। मामले की अगली सुनवाई 2 हफ्ते बाद होगी।


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