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शम्मी कपूर को अपने पिता के थिएटर में काम करने की एवज में मिलते थे 150 रुपये

शम्मी कपूर को अपने पिता के थिएटर में काम करने की एवज में मिलते थे 150 रुपये

N4N desk: शम्मी कपूर का जन्म बतौर स्टार किड हुई थी, लेकिन उनके पिता और परिवार ने कभी भी स्टार किड वाली फीलिंग नहीं होने दी और बाकि स्टार की तरह ही मेहनत करवाया। शम्मी कपूर का जन्म  जन्म 13 अक्टूबर 1931 और मृत्यु 14 अगस्त 2011 को हुई थी. शम्मी की परवरिश राजकुमार की तरह हुई थी, अपने परिवार के वे एकलौते बच्चे थे जिनका जन्म हॉस्पिटल में हुआ था.


शम्मी कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर फिल्म इंडस्ट्री के महान अभिनेता थे। घर में फ़िल्मी माहौल पहले से ही था। शम्मी कपूर ने फ़िल्म 'जीवन ज्योति' से बॉलीवुड में कदम रखा। उनका अंदाज़ तब के तमाम अभिनेताओं से अलग था! हंसमुख, ज़िंदादिल और मस्ती से भरा। जिसे आज की पीढ़ी सुपरकूल कहती है! शम्मी कपूर अपने पीठि के वो शख्स है जिन्होंने इंटरनेट का इस्तेमाल किया था.

अभिनेत्री मुमताज जब 18 साल की थीं तभी शम्मी कपूर ने उन्हें शादी के लिए प्रपोज कर दिया था. शम्मी चाहते थे कि वो अपना फ़िल्मी करियर छोड़कर उनसे शादी कर लें, लेकिन मुमताज ने इनकार कर दिया। तब कपूर खानदान की बहुएं फ़िल्मों में काम नहीं कर सकती थीं. शम्मी ने फिर  गीता बाली से शादी की जो उनसे उम्र में भी बड़ी थी. गीता बाली ने शम्मी के सामने शर्त रखी कि वह आज ही शादी करेंगी. इसके बाद दोनों पास के ही एक मंदिर गए और मांग में लिपस्टिक लगाकर पूरे फिल्मी अंदाज़ में विवाह बंधन में बंध गए. बाद में 1965 में चेचक की वजह से गीता बाली की मृत्यु हो गई.

परिवार के दबाव में शम्मी ने दूसरी शादी की नीला जोकि से. शम्मी ने नीला जोकि एक राजशाही परिवार से थीं उनके सामने यह शर्त रखी कि वह मां नहीं बनेंगी, उन्हें गीता के बच्चों को ही पालना होगा। नीला जोकि शम्मी के इस शर्त को मान लीं। वे ताउम्र मां नहीं बनी और गीता के बच्चों को ही अपना माना।

सम्मान और पुरस्कार 

1968 में फि़ल्म ब्रह्मचारी के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था. चरित्र अभिनेता के रूप में शम्मी कपूर को 1982 में विधाता फिल्म के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला. 1995 में फि़ल्म फेयर लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला. 1999 में ज़ी सिने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किए गए. 2001में स्टार स्क्रीन लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजे गए.

फैमिली बैकग्राउंड के बावजूद शम्मी का फिल्म जगत में प्रवेश 'रेल का डिब्बा' में मधुबाला, 'शमा परवाना' में सुरैया और 'हम सब चोर हैं' में नलिनी जयवंत के साथ ऐक्टिंग करने के बावजूद शुरुआत में सफल नहीं रहा.उनकी शुरुआती फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रहीं. 

डक टेल शैली के बाल ने दिलाई सफलता 

उन्होंने पचास के दशक में 'डक-टेल' शैली में अपने बाल कटवाकर 'तुमसा नहीं देखा' के साथ खुद को नए लुक में पेश किया.उसके बाद उन्हें सफलता मिलती गई.1961 में फिल्म 'जंगली' की सफलता के साथ ही पूरा दशक उनकी फिल्मों के नाम रहा.


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