PATNA : मुजफ्फरपुर स्थित ललित नारायण मिश्र काॅलेज आॅफ बिजनेस मैनेजमेंट में पूर्व रेल मंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र के बलिदान दिवस के अवसर पर उनके प्रतिमा पर माल्यार्पण कर महाविद्यालय के शिक्षकों एवं कर्मचारियों द्वारा श्रद्धांजली अर्पित की गई।
इस अवसर पर पूर्व मंत्री सह विधायक नीतीश मिश्रा जी ने कहा कि 3 जनवरी हमें याद दिला जाती है बिहार के गौरवमय सपूत और भारतीय राजनीति के प्रकाशवान नक्षत्र श्रद्धेय ललित बाबू की, जिनका व्यक्तित्व समन्वयवादी विचारों की प्रतिमूर्ति था। उन्हें अध्यात्म के सूक्ष्म स्वरुप में गहरी निष्ठा थी। उनकी वाणी एवं चिंतनधारा में मानवीय मूल्यों पर आधारित आध्यात्मिक परम्परा का आभास मिलता था। अपने मृदुल स्वभाव और मधुर वाणी द्वारा उन्होंने हिमालय से कन्याकुमारी तक विशाल भू-भाग में व्यापक मित्रमंडली बना ली थी। स्वभाव में तो नम्रता थी पर कर्तव्य समक्ष होने पर उनके निर्णय बज्र सदृश कठोर होते थे जिसका आभास उनके निकटतम व्यक्तियों को भी पहले नहीं हो पाता था और वे चकित-विस्मित हो उठते थे। लोकहित में कठोर से कठोर निर्णय लेने में उन्हें हिचक नहीं होती थी। अविचल भाव से देश की सेवा करते हुए उन्होंने कर्तव्य की बलिवेदी पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। कोई भी बाधा उन्हें अपने कर्तव्य-पथ से विमुख नहीं कर सकी।
कोसी को नियंत्रित करने का है श्रेय
उन्होंने कहा कि ललित बाबू ने अपने कर्मभूमि मिथिला को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में काफी प्रयास किया। मिथिला की शोक कही जाने वाली कोसी नदी को नियंत्रित कर कई नहर प्रणाली बनवाई। उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोशी योजना में पश्चिमी कोसी नहर के निर्माण के लिए भारत-नेपाल समझौता करवाया। विदेश व्यापार मंत्री के रूप में ललित बाबू ने देश के लगभग 150 बीमार सूती मिलों का अधिग्रहण कर लाखों मजदूरों का जीवन सुरक्षित किया। ललित बाबू ने लखनउ से असम तक लेटरल रोड की मंजूरी दिलायी जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक के लिए स्वीकृत हुई।
ललित बाबू जनसहयोग द्वारा योजनाओं के कार्य संपादन के हिमायती थे। अपनी कल्पनाशीलता और पीड़ित मानव के दुखदर्द के प्रति संवेदनशीलता के प्रभाव में उन्होंने कोशी क्षेत्र के लोगों की वेदना को पहचाना और भारत सेवक समाज के माध्यम से उस विनाशकारी कोशी नदी के नियंत्रण के लिए जो प्रयास आरंभ किए उनसे जन जागरण तो हुआ ही और त्राण हुआ प्रति वर्ष मलेरिया, कालाजार एवं अन्य महामारी से काल कलवित होने वाले अनगिनत लोगों का।
बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए रहे प्रयासरत
इस अवसर पर कुलसचिव डा. कुमार शरतेंदु शेखर ने कहा कि बिहार के पिछड़ापन के लिए उनके मन में आकुलता थी और सत्ता के उच्च शिखरों पर आसीन रहकर उन्होंने इसके निवारण के लिए भरसक प्रयत्न किए। बिहार के सुदूरवत्र्ती क्षेत्रों में रेलगाड़ी चलाकर वहाँ के निवासियों को देश के कोने-कोने तक पहुँचने की सुविधा सुलभ कराने की जितनी योजनाएँ उन्होंने बनायी थीं उनमें से कुछ तो साकार हुई पर अधिकांश का साकार होना उनकी दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के कारण संभव नहीं हो पाया। मिथिला की चित्रकला को मधुबनी पेंटिंग का जामा पहनाकर देश-विदेश में उसके लिए धूम मचा देना और सिकी की बनी वस्तुओं को गरिमामय सजावट-सामग्री जताकर प्रशस्त्र व्यापारियों द्वारा खोलना उनकी प्रशासनिक दूरदर्शिता का परिचायक है। इससे बिहार वासियों को अपनी स्थिति संभालने का सुनहरा अवसर मिला।
दूरदर्शिता वाले थे ललित बाबू
महाविद्यालय के प्रभारी प्राध्यापक डा. श्याम आनन्द झा ने कहा कि स्व. ललित बाबू के दूरदर्शिता का ही परिणाम यह महाविद्यालय है। वर्ष 1973 में उन्हीं की प्रेरणा से डा. जगन्नाथ मिश्र, पूर्व मुख्यमंत्री जी के द्वारा इस महाविद्यालय की स्थापना की गई। वह ऐसा समय था जब बिहार में कम ही लोग प्रबंधन की शिक्षा के बारे में जानते थे। आज इस महाविद्यालय के हजारों छात्र सरकारी एवं गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में उच्च पदों पर आसीन हैं।
इस अवसर पर महाविद्यालय के बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के शिक्षा संकाय के डीन एवं ललित नारायण मिश्र काॅलेज ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट (शिक्षा संकाय) के प्राचार्य डा. एआर खान ने कहा कि मैथिली को साहित्य आकादमी में स्थान दिलाना, मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना कराना और मैथिली को लोक सेवा आयोग के चयनित विषयों की सूची में जुड़वाना आदि कार्य सदा स्मरणीय रहेंगे। रेल मंत्री के रूप में झंझारपुर-लौकहा रेल लाइन, भपटियाही-फारबिसगंज रेल लाइन तथा कटिहार से बरौनी, समस्तीपुर से दरभंगा बड़ी लाइन का निर्माण कराना, मानसी से फारबिसगंज बड़ी लाइन, कटिहार से जोगबनी, सकरी से हसनपुर रेल लाइन और जयनगर-सीतामढ़ी रेल लाइन जैसी 36 योजनाओं की स्वीकृति देना उनकी दूरदर्शिता का उदाहरण है।
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक डा. विभवेन्द्र पाठक, डा. शंकर सिंह झा, अन्य शिक्षक एवं कर्मचारीगण उपस्थित थे।