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रिगिंग-लीकिंग: पूर्व DGP का दावा- पैसे का सही बंटवारा न होना 'पेपर लीक' की हो सकती है बड़ी वजह, पुलिस की 37 साल की जिंदगी में यही समझा

रिगिंग-लीकिंग: पूर्व DGP का दावा- पैसे का सही बंटवारा न होना 'पेपर लीक' की हो सकती है बड़ी वजह, पुलिस की 37 साल की जिंदगी में यही समझा

PATNA: बिहार में इन दिनों पेपर लीक की खूब चर्चा हो रही है। पहली दफे बीपीएसपी परीक्षा का प्रश्न पत्र आउट हुआ तो नीतीश सरकार की भारी फजीहत हुई। इसके बाद आनन-फानन जांच के आदेश दिये गये। आर्थिक अपराध इकाई केस की जांच कर रही है। इस मामले में कई लोग पकड़े भी गये हैं। जांच आगे भी जारी है। इस बीच बिहार के तेजतर्रार पूर्व डीजीपी  ने कहा है कि पहले बैलेट बॉक्स में स्याही डाला जाता था अब पेपर लीक हो रहा है। दोनों में काफी हद तक समानता है। पूर्व डीजीपी कहते हैं कि सेटिंग-गेटिंग का फार्मूला न्यायपूर्ण हो गया तो प्रश्न पत्र आउट नहीं होगा, वरना यह विकल्प बैलेट बॉक्स में स्याही डालने की तरह मौजूद रहता है।

पहले रिगिंग अब लीकिंग

तेजतर्रार आईपीएस व राज्य के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने पेपर लीक को लेकर अपना अनुभव साझा किया है। उन्होंने रिगिंग और लीकिंग शीर्षक से अपने अनुभव बताये हैं। वे कहते हैं कि नौकरी के शुरुआती दौर में जब SP के रूप में, चुनाव संपन्न कराने का दायित्व मिलता था तो रिगिंग की शिकायतें आती थीं। कोई भी संवेदनशील पदाधिकारी इन शिकायतों को सुनकर परेशान हो जाता। मैंने पाया कि अगर तुरंत कार्यवाही नहीं की जाती तो चुनाव संपन्न होने से पहले बैलेट बॉक्स में स्याही डाल दी जाती थी जिससे कि उस बूथ का चुनाव रद्द कर दिया जाए और पुनः उस बूथ पर पूरी तैयारी के साथ चुनाव हो। स्याही डालने वाला पक्ष स्वाभाविक रूप से वह होता था जो उस बूथ पर कब्ज़ा नहीं कर पाया हो। 


नये जमाने में नई बीमारी प्रश्न पत्र लीक 

अभयानंद आगे लिखते हैं कि समय के साथ इस प्रकार की एक और बीमारी ने समाज में जन्म लिया।  सार्वजनिक परीक्षाओं में प्रश्न-पत्र लीक। साधारण तौर पर प्रश्न-पत्र लीक की शिकायतें यदा-कदा सुनने को मिलती थीं। हमलोग जिले के स्तर पर अनुसंधान कर, गिरोह को पकड़ कर आरोप पत्र दाखिल कर देते थे। समस्या कभी राज्य व्यापी और विकराल नहीं बन पाती थी। अचानक स्कौलर गैंग, सॉल्वर गैंग जैसे शब्दों का प्रचलन हुआ। अलग-अलग अपराधियों के नाम से गैंग बनने लगे। चुनाव में जैसे प्रतिस्पर्धा होती है, वैसा ही दंगल परीक्षाओं की सेटिंग-गेटिंग में भी हो गया। अगर सेटिंग-गेटिंग के पैसे का वितरण न्यायपूर्ण हो गया तो हल्ला-हंगामा नहीं होगा, अन्यथा "बैलेट बॉक्स में स्याही" का विकल्प अर्थात पेपर के व्यापक लीक का रास्ता तो हमेशा है। परीक्षा रद्द कर दी जाएगी। अगली परीक्षा में जो गिरोह सर्वाधिक ताकतवर होगा, उसके नियंत्रण में पेपर लीक होगा और पैसे में केवल एक ही गिरोह का भाग होगा। 

काले धन का बंटवारा स्वाभाविक तौर होता तो नहीं मचती हाय-तौबा 

पूर्व डीजीपी ने अपना अनुभव साझा करते हुए लिखा कि मैंने जो पुलिस की 37 वर्षों की जिंदगी में समझा, वह यह कि पैसे का वितरण जब तक स्वाभाविक तौर पर समाज में होता रहता है, तब तक "हाय-तौबा" नहीं मचती। छोटे-मोटे अपराध होते हैं। लेकिन अगर "बवाल" मच जाए तो समझना चाहिए कि काले धन का वितरण "स्वाभाविक" तौर पर नहीं हुआ है। कई बार इस आधार पर अनुसंधान करने से सफलता मिली है। 

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