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विजयादशमी के दिन ही साईं बाबा ने किया था शरीर का परित्याग

 विजयादशमी के दिन ही साईं बाबा ने किया था शरीर का परित्याग

N4N DESK :  दशहरा के दिन ही सिरडी के साईं बाबा ने समाधि ली थी। इस समाधि के 100 साल पूरे हो गये। साईं बाबा ने 1918 में विजयादशमी के दिन समाधि ली थी। उस साल 15 अक्टूबर को विजयादशमी थी। साईं बाबा के प्रति दुनिया भर के लोगों में आस्था है। करोड़ों लोग उनकी पूजा करते हैं। शिरडी स्थित उनकी समाधि, आज करोड़ों भक्तों के लिए एक पुण्यदायी तीर्थ स्थान है। साईं मंदिर में रोजाना करीब डेढ़ करोड़ रुपये का चढ़ावा चढ़ता है। यह भारत के सबसे धनी मंदिरों में एक है। 2016 में साईं मंदिर को 400 करोड़ रुपये दान में मिले थे।

साईं बाबा का विजयादशमी से संबंध

साईं बाबा ने विजयादशमी के दिन समाधि लेने से पहले रामविजय की कथा सुनी थी। रामायण के मुताबिक भगवान राम ने रावण से 10 दिनों तक युद्ध लड़ा था और दशमी के दिन रावण मारा गया था। आखिर साईं बाबा ने विजयादशमी के दिन ही क्यों समाधि ली थी ?  मान्यता है कि साईं बाबा 18 साल की उम्र में ही महाराष्ट्र के शिरडी में आ गये थे। एक दिन उन्होंने अपने एक भक्त के पुत्र तात्या के बारे में कहा था कि उसकी मौत विजयादशमी के दिन हो जाएगी। तात्या, बैजाबाई के पुत्र थे। बैजाबाई, साईं बाबा के परम भक्त थीं। तात्या साईं बाबा को मामा कह कर बुलाते थे। इस स्थिति में साईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का फैसला किया।

साईं बाबा ने त्याग दिया था अन्न-जल

27 अक्टूबर 1918 को साईं बाबा ने अन्न-जल त्याग दिया था। बाबा  के सामधि लेने के पहले तात्या की तबीयत इतनी खराब हो गयी कि उसका बचना मुश्किल लग रहा था। लेकिन तात्या की जगह साईं बाबा अपने शरीर को त्याग कर ब्रह्मलीन हो गये। जिस दिन उन्होंने शरीर त्यागने की समाधि ली उस दिन विजयादशमी थी और तारीख थी 15 अक्टूबर 1918 ।

 

समाधि के दो दिन पहले बाबा ने क्या किया था ?

मान्यता के मुताबिक साईं बाबा ने समाधि लेने के दो दिन पहले भीक्षाटन बंद कर दिया था। बाबा को जब लगा कि उनका अंतिम समय नजदीक आ गया है तो उन्होंने अपने एक भक्त से श्रीरामविजय की कथा सुनाने के लिए कहा। उन्हें एक सप्ताह तक प्रतिदिन रामविजय की कथा सुनायी गयी। इसके बाद विजयादशमी के दिन साईं बाबा समाधिस्थ हो गये थे।

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