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बहन को पिता के श्राप से मुक्ति दिलाने की अद्भूत कहानी का प्रतीक है "सामा चकेवा उत्सव", युवतियों में दिखता है उत्साह

बहन को पिता के श्राप से मुक्ति दिलाने की अद्भूत कहानी का प्रतीक है "सामा चकेवा उत्सव", युवतियों में दिखता है उत्साह

SAMASTIPUR : जिले के हसनपुर में शिल्पकार के दरवाजे बहनों की जुटी भीड़: मिथिला के में भाई-बहन के अमर गाथा का पर्व सामा चकेवा अपना अलग महत्व रखता है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी से पूर्णिमा तक कन्याओं के द्वारा इसे खेला जाता है। 

सामा - चकेवा को लेकर यहां पौराणिक मान्यता भी है। मान्यताओं के अनुसार सामा चकेवा के उत्सव का संबंध सामा की दु:ख भरी कहानी से है। कहानी के अनुसार सामा कृष्ण की पुत्री थी।   एक दिन एक दुष्ट चरित्र वाले व्यक्ति ने षडयंत्र के तहत उसने सामा पर गलत आरोप लगाया। उसने कृष्ण से यह बात कह दी कृष्ण को अपनी पुत्री सामा के प्रति बहुत ही गुस्सा आया। क्रोध में आकर कृष्ण ने सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। जब सामा के भाई चकेवा को इस प्रकरण की पूरी जानकारी हुई तो उसे अपनी बहन सामा के प्रति सहानुभूति हुई। अपनी बहन को पक्षी से मनुष्य रूप में लाने के लिए चकेवा ने तपस्या करके सामा को पक्षी रूप से पुन: मनुष्य रूप में लाया। अपने भाई के समर्पण व त्याग देखकर सामा द्रवित हो गई। मान्यता के अनुसार उसी की याद में तब से बहनें अपनी भाइयों के लिए यह पर्व मनाती आ रही हैं। 

आठ दिन तक मनता है यह उत्सव

8 दिनों तक मनता है यह उत्सव: दीपावली के समय से ही सामा चकेवा के तैयारी शुरू हो जाती है कार्तिक माह के पंचम शुक्ल पक्ष तिथि से सामा चकेवा के मूर्ति की खरीदारी होती है। यह त्यौहार पंचमी से पूर्णिमा तक आयोजित होता है। गीत गाकर बनाई गई मूर्तियों को महिलाएं उठाती हैं। कार्तिक पूर्णिमा की रात भाई सामा को फोड़ता है। उस समय उसे चुड़ा व गुड़ दिया जाता है। मिट्टी के बने पेटार में संदेश,दही-चुडा भर सभी बहने सामा चकेवा को अपने भाई के ठेहुना से फोरवा कर श्रद्धा पूर्वक अपने खोंईंछा में लेती है। बेटी की विदाई की तरह महिलाएं समदाउन गाते हुए विसर्जन के लिए घर से निकलती हैं। विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिछावन और दूसरी आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं. लोक आस्था और भाई-बहन के अटूट रिश्ते को इस दौर में इस पर्व के माध्यम से मजबूती से दिखाया जाता है।


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