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संघ प्रमुख समेत लाखों परिवारों ने लिया प्रकृति संरक्षण का संकल्प , कहा प्रकृति सिर्फ मनुष्य के उपभोग के लिए नहीं है

संघ प्रमुख समेत लाखों परिवारों ने लिया प्रकृति संरक्षण का संकल्प , कहा प्रकृति सिर्फ मनुष्य के उपभोग के लिए नहीं है

पटना: हिन्दू स्प्रिचुअल सर्विस फाउंडेशन द्वारा रविवार को आयोजित ‘प्रकृति वंदन’ ऑनलाइन कार्यक्रम कई अर्थों में वैश्विक और सर्वसमावेशी रहा। संभवत: यह यूएन के सतत विकास मॉडल के मूल अवधारणा का व्यवहारिक व विराट प्रकटीकरण है। एक संस्था के आयोजन से स्वयं को जोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इस आयोजन को व्यापक सांगठनिक आधार व समर्थन दे दिया। इसके परिणाम स्वरूप एक समय में भारत के लाखों परिवार व कम से कम पंद्रह देशों के नागरिकों ने इस अभियान में शामिल होकर प्रकृति के प्रति चेतना व मानव के दायित्वबोध के लिए सामाजिक पर्यावरण का निर्माण किया।

‘प्रकृति वंदन’ ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि पर्यावरण दिवस के विशिष्ट कार्यक्रम में हम सब लोग सहभागी हो रहे हैं। अस्तित्व के सत्य को हमारे पूर्वजों ने उसकी पूर्णता में समझ लिया और तब से उन्होंने ये समझा कि हम भी पूरे प्रकृति के एक अंग हैं।

प्रकृति के महत्व को सरल रूप में समझाते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि शरीर अंगों के कार्य पर निर्भर है, अंग शरीर से मिलने वाली प्राणिक ऊर्जा पर निर्भर है। यह परस्पर संबंध सृष्टि का हमसे है, हम उसके अंग हैं, सृष्टि का पोषण हमारा कर्तव्य है। अपनी प्राण धारणा के लिए हम सृष्टि से कुछ लेते हैं, शोषण नहीं करते, सृष्टि का दोहन करते हैं। यह जीने का तरीका हमारे पूर्वजों ने समझा और केवल एक दिन के नाते नहीं, एक देह के नाते नहीं तो पूरे जीवन में उसको रचा बसा लिया। हमारे यहां, यह स्वाभाविक कहा जाता है कि शाम को पेड़ों को मत छेड़ो, पेड़ सो जाते हैं। पेड़ों में भी जीव है, इस सृष्टि का वो हिस्सा है। जैसे एनीमल किंगडम है, वैसे प्लांट किंगडम है। ये आधुनिक विज्ञान का ज्ञान हमारे पास आने के हजारों वर्ष पहले से, हमारे देश का सामान्य अनपढ़ आदमी भी जानता है पेड़ को शाम को छेड़ना नहीं चाहिए।

उन्होंने कहा कि आजकल पर्यावरण शब्द बहुत सुनने को मिलता है और बोला भी जाता है। और उसका एक दिन मनाने का भी यह तो कार्यक्रम है, वह भी अर्वाचीन है। उसका कारण है कि अभी तक दुनिया में जो जीवन जीने का तरीका था या है अभी भी, बहुत मात्रा में है, प्रचलित है। वो तरीका पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, वो तरीका प्रकृति को जीतकर मनुष्यों को जीना है, ऐसा मानता है। वो तरीका प्रकृति मनुष्य के उपभोग के लिए है, प्रकृति का कोई दायित्व मनुष्य पर नहीं है। मनुष्य का पूरा अधिकार प्रकृति पर है, ऐसा मानकर जीवन को चलाने वाला वो तरीका है। और ऐसा हम गत 200-250 साल से जी रहे हैं। उसके दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं, उसकी भयावहता अब दिख रही है। ऐसे ही चला तो इस सृष्टि में जीवन जीने के लिए हम लोग नहीं रहेंगे। अथवा ये भी हो सकता है कि ये सृष्टि ही नहीं रहेंगी। और इसलिए मनुष्य अब विचार करने लगा, तो उसको लगा कि पर्यवारण का संरक्षण होना चाहिए। इसलिए पर्यावरण दिवस मना रहे हैं। परंतु यह हो गई, आजकल विशेषकर 2000 वर्ष पुराने समय से प्रचलित और विशेषकर पिछले 300 वर्षों में अधिक भटका हुआ ऐसा जो तरीका हमने अपनाया, उसकी बात हुई।

लेकिन, भारत का हमारा तरीका एकदम भिन्न है। अपने जीवन के तरीके में क्या करना, क्या रहना, सारा अनुस्यूत है. हमारे यहां रोज चीटियों को आटा डाला जाता था, हमारे यहां घर में गाय को गौ ग्रास, कुत्ते को श्वान बलि, पक्षियों को काकबलि, कृमि कीटों के लिये बलि, और गांव में कोई अतिथि भूखा है तो उसके लिए, ऐसे पांच बलि चढ़ाने के बाद गृहस्थ भोजन करता था. ये बलि यानि प्राणी हिंसा नहीं थी, ये बलि यानी अपने घर में पका हुआ अन्न इन सबको देना पड़ता है. इन सबका पोषण करना मनुष्य की जिम्मेदारी है क्योंकि इन सबसे पोषण मनुष्य को मिलता है. इस बात को समझकर हम जीते थे। इसलिए हमारे यहां नदियों की भी पूजा होती है, पेड़-पौधों, तुलसी की पूजा होती है. हमारे यहां पर्वतों की पूजा-प्रदक्षिणा प्रदर्शणा होती है, हमारे यहां गाय की भी पूजा होती है, सांप की भी पूजा होती है। संपूर्ण विश्व, जिस एक चराचर चैतन्य से व्याप्त है, उस चैतन्य को सृष्टि के हर वस्तु में देखना, उसको श्रद्धा से देखना, आत्मीयता से देखना, उसके साथ मित्रता का व्यवहार करना और परस्पर सहयोग से सबका जीवन चले, ऐसा करना। ये जीवन का तरीका था।

भगवत गीता में कहा है, परस्परं भावयंतम, देवों को अच्छा व्यवहार दो, देव भी आपको अच्छा व्यवहार देंगे। परस्पर अच्छे व्यवहार के कारण सृष्टि चलती है, इस प्रकार का अपना जीवन था. लेकिन इस भटके हुए तरीके के प्रभाव में आकर हम उसको भूल गए। इसलिए, आज हमको भी पर्यावरण दिन के रूप में इसको मनाकर स्मरण करना पड़ रहा है। वो करना चाहिए, अच्छी बात है। ऐसा स्मरण हर घर में होना चाहिए। ऐसे स्मरण का हमने प्रवर्तित किया हुआ इस साल का 30 अगस्त होगा। लेकिन हमारे यहां नागपंचमी है, हमारे यहां गोवर्धन पूजा है। हमारे यहां तुलसी विवाह है, इन सारे दिनों को मनाते हुए आज के संदर्भ में उचित ढंग से मनाते हुए, हम सब लोगों को इस संस्कार को अपने पूरे जीवन में पुनर्जीवित और पुनर्संचरित करना है। जिससे नई पीढ़ी भी उसको सीखेगी, उस भाव को सीखेगी। हम भी इस प्रकृति के घटक हैं। हमको प्रकृति से पोषण पाना है, प्रकृति को जीतना नहीं। हमको स्वयं प्रकृति से पोषण पाकर प्रकृति को जिलाते रहना है. इस प्रकार का विचार करके आगे पीढ़ी चलेगी, तब यह, विशेष कर पिछले 300-350 वर्षों में जो खराबी हुई है, उसको आने वाले 100-200 वर्षों में हम पाट जाएंगे। सृष्टि सुरक्षित होगी, मानव जाति सुरक्षित होगी, जीवन सुंदर होगा।

प्रकृति वंदन कार्यक्रम के बारे में बिहार प्रभारी कुमोद कुमार ने बताया कि संघ प्रमुख के राष्टव्यापी संबोधन के अतिरिक्त भारत के हर नगर में स्थानीय स्तर पर लोगों ने प्रकृति पूजन किया और प्रकृति संरक्षण का संकल्प लिया। कुमोद कुमार ने बताया कि इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक लोगों की सहभागिता के लिए विगत दो सप्ताह से विधिवत जागरुकता अभियान चलाया गया, जिसमें समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों ने सहर्ष योगदान दिया। बिहार के हर शहर में स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं ने प्रकृति वंदन में सहभागिता दिखायी। इसके अतिरिक्त संघ प्रमुख के प्रबोधन की अधिकतम पहुंच के लिए विश्व संवाद केंद्र, पटना से भी लाइव कार्यक्रम को लिंक किया गया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस प्रकार के कार्यक्रम से भारत के नागरिकों में प्रकृति संरक्षण को लेकर जागरुकता आएगी। कुमोद कुमार ने बताया कि दूसरों को प्रकृति संरक्षण का संदेश देने के लिए उन्होंने स्वयं अपने घर पर विभिन्न प्रकार के फल, फूल और औषधीय पौधों को लगाया है और इसकी नियमित सेवा करते हैं।

कार्यक्रम के बाद प्रकृति वंदन के दक्षिण बिहार संयोजक अभिषेक ओझा ने बताया कि फेसबुक लाइव के अलावा आयोजन टोली द्वारा यह प्रयास किया गया कि लोग अपने घरों में कम से कम एक पौधा लगाएं व उसकी देखभाल करें, ताकि यह कार्यक्रम महज कागजी न रह जाए। उन्होंने बताया कि पटना में भी लोगों ने अपने घर के आसपास लगे पौधे को जल अर्पित कर पूजन किया। राजधानी के बाजार समिति क्षेत्र का स्कूली छात्र अपूर्व ओझा ने प्रकृति वंदन में सहभागी होते हुए फेसबुक लाइव के माध्यम से प्रकृति संरक्षण के महत्व को बताया। इस दौरान उसने अपने घर की छत पर लगे तुलसी वाटिका को दिखाया, जिसमें उसने तुलसी के 35 पौधे लगाएं है। इस कार्य में अपूर्व के अभिभावक उसकी सहायता करते हैं।

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