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रंगदारी से 100 करोड़ कमाने वाला संतोष झा सांसद चिराग पासवान को अपना दोस्त बताता था

रंगदारी से 100 करोड़ कमाने वाला संतोष झा सांसद चिराग पासवान को अपना दोस्त बताता था

PATNA: सीतामढ़ी कोर्ट परिसर में आज मारे गये उत्तर बिहार के सबसे बड़े डॉन संतोष झा ने रंगदारी से 100 करोड़ से ज्यादा की कमाई की थी. नक्सली का लबादा ओढ़ कर अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले संतोष ने कभी लोजपा नेता चिराग पासवान को अपना मित्र करार दिया था. वो 2015 में लोजपा के टिकट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुका था. मंहगे जूतों से लेकर कपड़ों का शौक रखने वाला ये गैंगस्टर आज अपने उन्हीं सहयोगियों और AK-47 की गोलियों का शिकार बन गया, जिनके दम पर वो एक दशक तक आतंक का पर्याय बना रहा.

आतंक का पर्याय था संतोष झा

29 संगीन मामलों का आरोपी संतोष झा का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में आया था जब उसके गुर्गों ने 2015 की 26 दिसंबर को दरभंगा के बहेड़ी थाना क्षेत्र के शिवराम चौक पर सड़क बना रही कंपनी सीएंडसी के इंजीनियरों मुकेश कुमार और ब्रजेश कुमार को दिन दहाड़े AK-47 रायफल से भून दिया था. SH-88 सड़क का निर्माण कर रही सी एंड सी कंपनी से 75 करोड़ रूपये की रंगदारी मांगी गयी थी. संतोष झा जेल में बंद था, वहीं से उसने रंगदारी मांगी थी. कंपनी ने पैसे नहीं दिये तो उसके गुर्गों ने बीच चौराहे पर दो इंजीनियरों को भून दिया था. इस घटना को संतोष के खास गुर्गे मुकेश पाठक ने अंजाम दिया था. ये दीगर बात है कि बाद में संतोष और मुकेश पाठक के बीच खूनी अदावत हो गयी और मुकेश पाठक पर ही संतोष की हत्या की साजिश रचने का आरोप लग रहा है.

नक्सली का लबादा ओढ़कर अपराधी बना था संतोष

शिवहर जिले के पुरनहिया थाने के दोस्तियां गांव का रहने वाला संतोष झा नक्सली का लबादा ओढ़कर अपराध की दुनिया में आया था. उसके पिता चंद्रशेखर झा गांव के ही दबंग नवल किशोर यादव के ड्राइवर थे. कहा जाता है कि नवल किशोर यादव ने एक बार नाराज होकर अपने ड्राइवर चंद्रशेखर झा को जमकर पीटा था. उसी समय संतोष झा ने इसका बदला लेने की कसम खायी और 2001 में वो नक्सलियों के गिरोह में शामिल हो गया था. 2003 में संतोष झा के ग्रुप ने दबंग नवल किशोर यादव के घर पर हमला बोला था. लेकिन नवल किशोर यादव बच निकले. इसी दौरान उसने अदौड़ी बाजार और तरियानी के नरवारा में बैंक लूट की घटनाओं को अंजाम दिया. देकुली पुलिस पोस्ट से पुलिस हथियार लूटने की घटना में भी उसका नाम आया.

संतोष झा ने बनाया था अपना नक्सली संगठन

हालांकि इसी दौरान 2005 में वो पटना के एक होटल से गिरफ्तार हो गया. बाद के तकरीबन पांच साल उसने जेल में काटे. जेल में रहने के दौरान ही उसने अपने गिरोह में कई नौजवानों को जोड़ लिया था. संतोष झा को जेल में ही अंदाजा हुआ कि नक्सली संगठन में रहने के कारण रंगदारी और लूट की कमाई बंट जाती है. ज्यादातर हिस्सा दूसरों के पास चला जाता है. लिहाजा जेल से बाहर निकलते ही उसने अपना नक्सली संगठन बना लिया और नाम रखा-बिहार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी.  15 जनवरी, 2010 को उसकी आर्मी ने पहली घटना को अंजाम दिया और संतोष के पुराने दुश्मन दबंग नवल किशोर यादव को घर के बाहर ही गोलियों से भून डाला. संतोष ने अपने राह में रोड़ा बन रहे नक्सली गौरी शंकर झा को 2011 में सरेआम गोलियों से भून डाला. ऐसी कई घटनाओं को अंजाम देने के कारण शिवहर से लेकर सीतामढ़ी, दरभंगा, पूर्वी चंपारण जैसे जिलों में उसका आतंक का कायम हो गया था. लेकिन 2012 में वो फिर से रांची के बूटी मोड़ पर अपने चेले मुकेश पाठक के साथ गिरफ्तार हो गया.

बड़े लोगों से सांठगांठ कर पुलिस की गिरफ्त से निकल गया था संतोष झा

2012 में रांची में गिरफ्तारी के बाद मोतिहारी पुलिस उसे अपने साथ ले आयी थी लेकिन तब तक संतोष झा का रसूख कानून से बड़ा हो चुका था. पुलिस उसके खिलाफ दर्ज संगीन मामलों को अदालत में पेश नहीं कर पायी और चंद घंटों में अदालत से रिहा होकर संतोष झा और मुकेश पाठक फरार हो गया. मोतिहारी से भाग कर वो सीधे नेपाल गया और वहां से उत्तर बिहार के आधा दर्जन जिलों में अपना आतंक कायम कर लिया. पुलिस सूत्र बताते हैं कि अपहरण, रंगदारी और लूट से संतोष झा ने 100 करोड़ रूपये से ज्यादा कमाये. काठमांडू से लेकर जमशेदपुर, रांची, कोलकाता और गुवहाटी में उसने अकूत संपत्ति अर्जित की. उसके खिलाफ नेपाल में भी कई मुकदमें दर्ज हो गये तो उसने कोलकाता को अपना ठिकाना बना लिया था.

जेल में रहकर भी ताबड़तोड़ घटनाओं को अंजाम दिया

2014 में जेल जाने के बाद संतोष झा ने अपने आतंक को और ज्यादा फैलाया. जेल में वो धड़ल्ले से मोबाइल फोन का उपयोग कर रंगदारी मांग रहा था. जेल  ही उसने 2015 में सीएंडसी कंपनी से 75 करोड की रंगदारी मांगी थी और कंपनी के दो इंजीनियरों की हत्या कर दी थी. उस घटना के बाद पूरे मिथिलांचल में ऐसा कोई ठेकेदार नहीं था जिसने संतोष झा को रंगदारी नहीं दी. लेकिन इसी पैसे ने उसके शूटरों को उसका दुश्मन बना दिया और आखिरकार उनके हाथों ही संतोष झा खुद मारा गया.

खुद को चिराग पासवान का दोस्त बताता था संतोष झा

2016 में दरभंगा में जेल से कोर्ट में पेशी के दौरान मीडिया से बात की थी. पत्रकारों से बात करते हुए संतोष झा ने दावा किया था कि चिराग पासवान से उसकी प्रगाढ़ता है. 2015 में उसने लोजपा के टिकट पर सीतामढ़ी से चुनाव लड़ने की तैयारी भी की थी. हालांकि उसे टिकट ही नहीं मिला.

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