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वकीलों के अभाव में कोर्ट में सात लाख केसों की सालों से नहीं हुई सुनवाई, एक केस 1965 से लंबित

वकीलों के अभाव में कोर्ट में सात लाख केसों की सालों से नहीं हुई सुनवाई, एक केस 1965 से लंबित

PATNA : कोर्ट में केस जाने के बाद न्याय पाने के लिए कितने साल लड़ाई लड़नी पड़ती है। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। पटना हाईकोर्ट ने राज्य के निचली अदालतों में ऐसे ही सालों और दशकों ने लंबित आपराधिक मुकदमों के मामलें पर सुनवाई की। इस सुनवाई के दौरान जो रिकार्ड कोर्ट के सामने प्रस्तुत किए गए, वह बेहद ही चौंकानेवाले थे। बताया गया कई लाख केस सिर्फ इसलिए सुनवाई के लिए पेंडिंग हैं, क्योंकि किसी अधिवक्ता ने उसकी पैरवी नहीं की। सुनवाई के दौरान एसीजे जस्टिस सी एस सिंह की खंडपीठ ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार(बालसा)के सचिव को  नेशनल जुडिशल ग्रिड और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के उपलब्ध आंकड़े को मूल रिकॉर्ड से जांच करने का निर्देश दिया। 

67 हजार केस में पार्टियों की दिलचस्पी नहीं

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता कौशिक रंजन की अधिवक्ता शमा सिन्हा ने  कोर्ट को बताया कि बड़ी तादाद में आपराधिक मामलें लंबित पड़े है।उन्होंने बताया कि लगभग 67 हज़ार मामलें ऐसे है,जिनमें पार्टियां कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। कोर्ट ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार व विभिन्न ज़िला विधिक सेवा प्राधिकार को ऐसे मामलों को चिन्हित कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

सात लाख केस में नही मिले वकील

अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि  वकीलों सहायता के अभाव में लगभग सात लाख आपराधिक मामलें लंबित है। कोर्ट ने इस सम्बन्ध में बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार को आंकड़े की जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया।कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में वकीलों की सहायता दिए जाने को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए।

52 साल बाद भी फैसला नहीं

अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि बहुत सारे मामलें काफी पुराने है,जिनमें अधिकांश सन्दर्भहीन हो चुके है। रिपोर्ट में बताया गया कि  बिहार की एक अदालत में 1965 का एक अपराधिक मामला लंबित है , कोर्ट को यह भी बताया गया इतने पुराने लंबित मामले में आरोपी और परिवादी दोनों की जीवित रहने पर संदेह है। ऐसी स्थिति में या नहीं तो बेकार और कानूनी तौर पर औचित्य पड़े अपराधिक मामले को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए ।  तीस चालीस साल पुराने मामलों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।

सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि ये आंकड़े  नेशनल जुडिशल ग्रिड और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से मिले है।इन्ही आंकड़ों को कोर्ट के सामने पेश किया गया। जनहित याचिका दंड प्रक्रिया कानून के तहत प्ली- बारगेनिंग के कानून को लागू करने के लिए की गई है।

 वहीं  महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार की ओर से ऐसे कार्रवाई की जाएगी।साथ ही इस मामले में हाईकोर्ट प्रशासन को भी जवाब देने का आदेश दिया गया था। 

 

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