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शारदीय नवरात्रः यूपी-बिहार की सीमा स्थित जगंलो के बीच विराजती हैं मां मदनपुर देवी, यहां से खाली हाथ नहीं लौटते भक्त

शारदीय नवरात्रः यूपी-बिहार की सीमा स्थित जगंलो के बीच विराजती हैं मां मदनपुर देवी, यहां से खाली हाथ नहीं लौटते भक्त

BETTIAH: नवरात्रि का मौका हो और देशभर के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित दुर्गा मंदिरों की चर्चा ना की जाए, ऐसा तो संभव ही नहीं है। इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे दुर्गम क्षेत्र में स्थित मां के मंदिर की, जहां सालोंभर भक्तों का तांता लगा ही रहता है। इसे मात की कृपा ही कहेंगे कि ऐसी जगह, जो चारों तरफ जंगलों से घिरी हो और दूर-दूर तक पक्की सड़क ना हो, वहां भक्त मां का स्मरण करते आसानी से पहुंच जाते हैं और उनकी आराधना कर शांत चित्त हो जाते हैं।

यह मंदिर है मां मदनपुर देवी का, जो उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित बिहार के पश्चिम चम्पारण में मदनपुर जंगल के बीच स्थित है। नवरात्र में यूपी बिहार सहित नेपाल से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर कर देवी माता का दर्शन कर मन्नते मांगते हैं। मान्यता है कि मां के दरबार से आज तक कोई भक्त निराश नहीं लौटा है। यही कारण है कि नवरात्र ही नहीं बल्कि सालों भर यहां मां के दरबार में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। मां मदनपुर देवी के दरबार में  दर्शन करने आये भक्त ने बताया की यहां नवरात्र ही नही हमेशा भक्त सालों भर आते रहते हैं। यही वह स्थान है जहां रहसू गुरु से राजा मदन ने माता की दर्शन की जिद की थी। बताया जाता है कि मदनपुर देवी स्थान पर पहले घना जंगल हुआ करता था, यह राजा मदन सिंह नाम के राज्याधीन था। एक बार जंगल में शिकार करने राजा पहुंचे तो उनको पता चला कि एक रहसू गुरू साधु उनके इन जंगलों के बीच बाघों के गले में सांप बांधकर पतहर (खर पतवार) की मड़ाई (दंवरी) करता है और उसमें से कनकजीर (सुगंधित धान की प्रजाति) निकलता है। राजा को घोर आश्चर्य हुआ, सच्चाई जानने के लिए राजा सैनिकों के साथ मौके पर पहुंचे तो नजारा देख हैरान रह गए। राजा ने हठ करते हुए साधु से देवी जी को बुलाकर दिखाने का आदेश सुनाया। 

साधु ने राजा को समझाते हुए कहा कि ऐसी जिद न करें बेवजह देवी मां को बुलाना संकट को मोल लेना होगा, देवी कुपित हुई तो आपके राजपाट का सर्वनाश हो जाएगा। समझाने के बाद भी राजा मदन जिद्द पर अड़े रहे, जब साधु के जान पर बन आई तो भारी मन से देवी का आह्वान किया। कहा जाता है जगदंबा असम के कामख्या से चली और खंहवार नामक स्थान पर पहुंची, वहां से थावें पहुंची (दोनों जगह मंदिर स्थापित है)। देवी के आने से पहले साधु ने राजा को फिर चेताया लेकिन राजा नहीं माने इसके बाद अचानक भक्त रहसू का सिर फटा और देवी मां का हाथ उसके बाहर दिखाई दिया। देवी के तेज को सहन नहीं कर पाए राजा और जमीन पर गिर पड़े फिर कभी नहीं उठे। बाद में राजा का परिवार व सारा साम्राज्य ही तहस नहस हो गया। देवी मां जमीन में समां गईं और यहां पिंडी के रूप में स्थापित हो गई। धीरे-धीरे यह स्थान घनघोर जंगल से घिर गया। 

कालांतर में हरिचरण नामक व्यक्ति की नजर पिंडी पर पड़ी। उसने देखा कि एक गाय पिंडी पर अपना दूध गिरा रही है उन्होंने पिंडी के आसपास सफाई कर पूजा करना शुरू कर दिया। कहा तो यह भी जाता है कि भक्ति से प्रसन्न देवी मां ने रखवाली के लिए एक बाघ प्रदान किया जो हरिचरण के साथ रहता था। धीरे-धीरे इसकी चर्चा चारों तरफ फैल गई। यहां मंदिर का निर्माण हो गया है, नेपाल बिहार उत्तर प्रदेश के बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी दर्शन के साथ ही शादी विवाह मुंडन आदि धार्मिक कार्य करते हैं। यहां बकरे और मुर्गे की बलि भी दी जाती है। नवरात्र के समय भारी मेला लगता है।

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