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सिल्क सिटी में 30 हज़ार लूम की थम गयी रफ़्तार, मजदूरी करने को विवश है बुनकर

सिल्क सिटी में 30 हज़ार लूम की थम गयी रफ़्तार, मजदूरी करने को विवश है बुनकर

BHAGALPUR : जिस नगरी को सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता हैं. जो देश में रेशमी नगरी के नाम से विख्यात है. उस भागलपुर में सिल्क कारोबार करने वाले बुनकर मजदूर बनकर रह गए है. बात हम भागलपुर के नाथनगर प्रखंड के चंपानगर क्षेत्र की कर रहे हैं. लूम चलाने वाले बुनकरों की पीड़ा सुनकर किसी की आँखे भर आती है. उनकी मजबूरी सब कुछ बयां करते दिख रही है. लूम चलाने वाले बुनकर अपने बातों को सुनाते सुनाते रो पड़ते हैं. उन लोगों ने सरकार से अपने परिवार वालों के लिए दो वक्त की रोटी के लिए गुहार भी लगाई. उन लोगों का कहना है सरकार हम लोगों पर विशेष ध्यान दें. हम सभी लूम पर ही टिके हैं, अगर लूम नहीं चले तो हम कहां जाएंगे. सरकार हमारी कोई मदद नहीं करेगी तो हम परिवार कैसे चलाएंगे. हम सभी भूखे मर जाएंगे. 

आखिरकार क्यों है सिल्क  सिटी के बुनकर इतने भावुक

आज बुनकर का काम करने वाले  90% बुनकर लूम को बेचने को मजबूर हो गए हैं. दूसरी बात यह है कि यहां मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल पड़ रहा है. जिससे बुनकर आंखों में आंसू और दिन भर समस्या से परेशान रहने को मजबूर दिख रहें है. 90% लोग लूम को बंद कर दिए हैं. बताया यह भी जा रहा है कि बुनकरों को आर्डर नहीं आने से स्थिति दयनीय हो गयी है. 

क्यों हुई यह स्थिति 

बुनकर प्रतिनिधियों ने बताया कि यहां का कारोबार अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, श्रीलंका अधिक देशों में फैला था. लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप से लगभग बंद हो गया है. देश में भी केरल, असम, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई व दिल्ली समेत अन्य इलाकों में सप्लाई होती थी. यहां भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है. 

क्यों बुनकर कम मजदूरी पर भी हो जाते हैं तैयार ?

जिले के अलग-अलग क्षेत्रों के बुनकर कामगारों को पहले घर बैठे काम मिलता था. अब गली गली भटक रहे हैं. पहले से आधी मजदूरी भी मिल जाती है तो किस्मत की बात मानते हैं.

सुनिए दर्द बुनकर व्यवसाईयों का

यहां के बुनकर व्यवसायियों का दर्द भी कम नहीं हैं. कहते हैं कि घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा. घर की छत जर्जर हुई तो इतने पैसे नहीं थे कि उसे बनवा पाए. नतीजा घर की छत गिर गई. जिसके सहारे कमाते थे. वह भी टूटकर क्षत-विक्षत हो गया, डेढ़ लाख का लूम था. कई लूम व्यवसायियों का कहना है की सरकार हम लोगों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. बिजली का बिल भी बहुत गिर गया है. आखिर कैसे चुकता करें. चारों तरफ से आफत है कुछ समझ नहीं आता है. लोग कर्ज देने से भी इनकार करने लगे है. अब करे तो करे क्या.

30,000 लूम की थमी रफ्तार 

बुनकर बहुल क्षेत्र में अभी 90 फ़ीसदी लूम बंद पड़े हैं. 10 फ़ीसदी लोग इसलिए चला रहे है ताकि उनके बचे हुए धागे खराब नहीं हो जाए. अब वह कपड़े लागत मूल्य से भी कम पर बेचने को विवश है. लूम बंद होने से एक लाख बुनकर परिवार बेरोजगार हो गए हैं और दिल पर पत्थर रख लूमबेच दिया। कभी मालिक थे, अब मजबूरी में मजदूर बन गए हैं।

भागलपुर से अंजनी कुमार कश्यप की रिपोर्ट 


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