PATNA : खीर पॉलिटिक्स वाला बयान देकर सुर्ख़ियों में आये केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की हवा निकल गई है. दो दिन पहले पटना में आयोजित अपनी पार्टी के एक कार्यक्रम में कुशवाहा ने बिहार में ऐसी सियासी खीर बनाने की चर्चा कि जिसमें यदुवंशियों को साथ लेने की बात थी. दरअसल एनडीए में रहकर केंद्र में मंत्री पद पर बैठे कुशवाहा का मकसद अपने सहयोगी दल बीजेपी पर दबाव बनाने और खुद के लिए महागठबंधन का विकल्प खुला दिखाने का था लेकिन उनका यह दांव उल्टा पड़ गया. एक तो महागठबंधन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया ऊपर से बीजेपी ने भी खीर वाले बयान पर कुशवाहा को खरी - खोटी सुना दी.
कुशवाहा ने दी सफाई
महागठबंधन से निराश और बीजेपी के कड़े तेवर देख उपेन्द्र कुशवाहा ने 'खीर पॉलिटिक्स' से तौबा कर ली. कुशवाहा ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि मेरे बयानों को किसी जाति या पार्टी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। मैंने सामाजिक एकता की बात कही थी। सोमवार को मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ना तो मैंने आरजेडी से दूध मांगा और ना ही बीजेपी से चीनी। उन्होंने कहा कि हम तो सभी को एनडीए के साथ लाकर 2019 में नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं।
बैकफुट पर क्यों आये कुशवाहा
राजनीतिक जानकारों की माने तो उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में जेडीयू के आने के बाद से असुरक्षा की आशंका से परेशान हैं. उन्हें यह आशंका सता रही कि 2019 में एनडीए के अन्दर उनकी पार्टी की सीटें कम कर दी जाएंगी. लिहाजा कुशवाहा महागठबंधन की तरफ भी एक खिड़की खुला रखना चाहते हैं. यही वजह है कि कुशवाहा गाहे - बगाहे ऐसे बयान देते रहते हैं कि जिससे ऐसा लगे की वह महागठबंधन का रुख कर सकते हैं. खीर पॉलिटिक्स वाले मामले में भी कुशवाहा का बैकफुट पर आना उनकी रणनीति का हिस्स्सा मन जा रहा है क्योंकि वह किसी भी क़ीमत पर फिलहाल मोदी कबिनेट में मिला मंत्री पद छोड़ना नहीं चाहते.