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धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, समलैंगिक यौनाचार अपराध नहीं

धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, समलैंगिक यौनाचार अपराध नहीं

NEWS4NATION DESK : समलैंगिक यौनाचार अपराध है या नहीं, इस मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ आज समलैंगिक यौन संबंध पर फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने इसे अपराध मानने से इंकार कर दिया है। बता दें कि समलैंगिक यौनाचार को को आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध माना गया था। कोर्ट में दायर याचिकाओं में इसे चुनौती दी गयी थी। धारा 377 की संवैधानिक वैधता को लेकर जुलाई में कोर्ट ने 4 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

5 सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के बाद फैसला रख लिया था सुरक्षित

सहमति से समलैंगिक यौनाचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा 377 पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ ने 10 जुलाई को सुनवाई शुरू की थी और चार दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने सभी पक्षकारों को अपने-अपने दावों के समर्थन में 20 जुलाई तक लिखित दलीलें पेश करने को कहा था। उम्मीद जताई जा रही थी कि इस मामले में दो अक्टूबर से पहले ही फैसला आने की संभावना है, क्योंकि उस दिन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

नाज फाउंडेशन से उठाया था सबसे पहले मामला

इस मुद्दे को सबसे पहले 2001 में गैर सरकारी संस्था नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में उठाया था। हाईकोर्ट ने सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए इससे संबंधित प्रावधान को 2009 में गैर कानूनी घोषित कर दिया था।

2009 में सुप्रीम कोर्ट ने दखल से कर दिया था मना 

दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में दो एडल्ट के बीच आपसी रजामंदी से एकांत में बने समलैंगिक संबंध को अपराध मानने से मना कर दिया था। लेकिन साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून में बदलाव को संसद का अधिकार बता कर मामले में दखल देने से मना कर दिया। इसकी वजह से 2009 में आया दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला निरस्त हो गया था।

2013 में HC का फैसला पलटा

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में हाईकोर्ट के उक्त आदेश को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाएं भी खारिज कर दी थीं। इसके बाद सुधारात्मक याचिका दायर की गईं जो अब भी कोर्ट में लंबित है।

क्या है धारा 377?

धारा 377 कहता है कि जो भी प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है, उसे उम्रकैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।' इसी व्यवस्था के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थीं। इन याचिकाओं में परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा 377 को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी।

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