N4N Desk: जब हमसे कोई गलती होती है तो उसके सज़ा की सुनवाई कोर्ट करता है, लेकिन जब गलती कोर्ट से हो जाये तो उसके आगे क्या? एक ऐसा ही मामला सुप्रीम कोर्ट का है. जहां कोर्ट से सज़ा देने में गलती हो गयी. महाराष्ट्र में हुई एक घटना के मामले में सजा काट रहे आरोपियों को 16 साल बाद कोर्ट ने अपने गलती का एहसास करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया है।
साल 2003 में जालना के भोकरधान के एक घर में 6 बदमाश घुसे और परिवार के पांच लोगों की हत्या कर दी और घर की दो महिलाओं के साथ गैंगरेप भी किया। इस मामले में कुल 6 लोगों को आरोपी बनाया गया। अब जब मामला उच्चतम न्यायालय के पास आया है तो पता चला की सच्चाई कुछ और ही है. सुनवाई के दौरान पता चला कि इस वारदात में जो महिला गैंग रेप का शिकार होने और गंभीर रूप से घायल होने के बाद बच गई थी, उसने पुलिस रिकॉर्ड में बदमाशों की फोटो देखकर उनमें से 4 की पहचान की थी, लेकिन पुलिस के गलती के कारण 2 और लोगों को भी सज़ा काटनी पड़ी.
सेशन कोर्ट ने जून 2006 में सभी 6 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद साल 2007 में हाई कोर्ट ने इनमें से तीन की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी। मामला इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों की अपील खारिज कर दी. दोषियों ने पुनर्विचार याचिका दायर की जिसकी सुनवाई के दौरान पता चला कि राज्य सरकार ने जिन 3 दोषियों की उम्रकैद को फांसी की सजा में तब्दील करने की मांग की थी,उनकी तरफ से कोई पैरवी ही नहीं की गई। ऐसे में कोर्ट ने मामले को फिर से सुनने की मांग की। जिसके बाद परत दर परत मामला सामने आया।