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बिहार में शराबबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर तक पटना हाईकोर्ट से मांगा जवाब, जानिए पूरा मामला

बिहार में शराबबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर तक पटना हाईकोर्ट से मांगा जवाब, जानिए पूरा मामला

पटना. बिहार में शराबबंदी से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट का पक्ष जानना चहा है। इसके लिए हाईकोर्ट से 27 सितंबर तक जवाब मांगा है। दरअसल बिहार में शराबबंदी से जुड़े केसों की संख्या अधिक हो गयी है। इस बीच बिहार सरकार ने शराबबंदी नियमों में बदलाव करते हुए पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने वाले अभियुक्तों को कार्यपालक दंडाधिकारी के स्तर पर ही जुर्माना लेकर छोड़े जाने की व्यवस्था की है। इसके लिए सरकार ने पटना हाइकोर्ट से न्यायिक शक्तियां दिये जाने का अनुरोध किया गया था। हालांकि इस पर अभी फैसला नहीं आया है। इस बीच शराबबांदी से जुड़ी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी दायर की गयी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी के लंबित मामलों और सरकार की ओर से शराबबंदी विधेयक में संशोधन के बाद की गई नई व्यवस्था को लेकर पटना हाईकोर्ट का पक्ष जाना चाहा है। 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में शराबबंदी के लंबित मामलों में सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के अधिवक्ता ने बताया कि लंबित मामलों से निबटने के लिए राज्य सरकार ने विशेष न्यायधीशों के 74 पदों पर भर्ती की स्वीकृति का प्रस्ताव भेजा था। इसके लिए आधारभूत संरचना के निर्माण के साथ बजट प्रावधान भी किया गया है। 766 स्टाफ की मंजूरी भी दे दी गयी है। इसके बावजूद तदर्थ व्यवस्था पर काम हो रहा है। इस पर बेंच ने कहा कि हम इस पहलू की भी जांच कर रहे हैं कि राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत न्यायिक अधिकारियों की जगह भर्ती होनी चाहिए। इस व्यवस्था को लागू करने में पटना हाइकोर्ट की कोई हिचकिचाहट तो नहीं है, यह भी देखा जाएगा। इसको लेकर रजिस्ट्रार के माध्यम से पटना हाइकोर्ट को नोटिस देकर 27 सितंबर तक जवाब मांगा गया है।

शराबबंदी से जुड़ी एक ही याचिका पर पटना उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट दोनों जगहों पर सुनवाई हो रही है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अब व्यवस्था दी है कि मामले की सुनवाई अब एक ही जगह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में ही होगी। मद्य निषेध अधिनियम लागू होने के बाद से 11 मई 2022 तक कुल 378186 मामले दर्ज किये गये हैं, जिनमें 116103 मामलों में सुनवाई शुरू हुई है। इनमें केवल 2473 मामलों में सुनवाई पूरी हुई है। इन मामलों में 1643 अभियुक्त दोषी ठहराए गए हैं, जबकि 830 आरोपियों को बरी कर दिया गया है।


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