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राजनीति के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, चुनाव आयोग को दिया य़ह निर्देश....

राजनीति के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, चुनाव आयोग को दिया य़ह निर्देश....

NEWS4NATION DESK : राजनीति में अपराधीकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट गंभीर है। इस मामले को लेकर कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह देश में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के मद्देनजर रूपरेखा बनाकर एक सप्ताह के भीतर अदालत में पेश करे।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट राजनीति में अपराधीकरण को रोकने को लेकर दायर याचिका पर आज सुनवाई की। इस दौरान चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि चुनावी उम्मीदवारों को इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में घोषणा करने के 2018 के उनके निर्देश से राजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगाने में मदद नहीं मिल रही है।

चुनाव आयोग ने कहा कि उम्मीदवारों से उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि की मीडिया में घोषणा करने के बारे में कहने के बजाए राजनीतिक दलों से कहा जाना चाहिए कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट ही न दें।
 
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और चुनाव आयोग से कहा कि वह साथ मिलकर विचार करें और सुझाव दें जिससे राजनीति में अपराधीकरण पर रोक लगाने में मदद मिले।

न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह देश में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के मद्देनजर रूपरेखा बनाकर एक सप्ताह के भीतर अदालत में पेश करे।
 

गौरतलब है कि सितंबर 2018 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करनी होगी। उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में व्यापक प्रचार करने को भी कहा गया था।

 बता दें जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा आठ दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है। लेकिन ऐसे नेता जिन पर केवल मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं। भले ही उनके ऊपर लगा आरोप कितना भी गंभीर है।

 जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(1) और (2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई विधायिका सदस्य (सांसद अथवा विधायक) हत्या, दुष्कर्म, अस्पृश्यता, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा और छह वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किये जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।

 

 

 

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