PATNA - शासन की उपेक्षा
ने टाल इलाके में किसानों के बड़े आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। पिछले तीन
सालों से लगातार अपनी दलहन की सही क़ीमत नहीं मिलने से किसान नाराज़ हैं। बिहार से
लेकर दिल्ली सरकार के दरबार तक से मिली निराशा ने किसानों को आंदोलन के लिए मज़बूर
कर दिया है। बड़हिया से लेकर मोकामा और बाढ़ तक आने वाले टाल क्षेत्र के किसान अब
निर्णायक लड़ाई के मूड में हैं।

28 मई को टाल
क्षेत्र में बंद का एलान
सरकार की नीतियों
से नाराज़ बड़हिया और मोकामा की टाल विकास समितियों ने 28 मई को अपने प्रभाव वाले इलाके में बंद बुलाया है। 28 मई को किसान सड़क और रेल यातायात को तो ठप्प
करेंगे ही साथ ही साथ बाढ़ से लेकर बड़हिया तक का बाजार भी बंद रहेगा। किसानों की
माने तो 28 मई के बंद केवल आंदोलन
की शुरुआत भर है, अगर किसानों की
मांगें पूरी नहीं हुई तो आंदोलन का स्वरूप और बड़ा होगा।
क्या है किसानों
की समस्या ?
दाल का कटोरा कहे
जाने वाले टाल क्षेत्र के किसानों की असल मुश्किल उनकी फ़सल का सही क़ीमत नहीं मिल
पाना है। मसूर की सबसे ज़्यादा पैदावार करने वाला टाल का किसान दोहरी मार झेल रहा
है। एक तो इलाके में दलहन का क्रय केंद्र नहीं होने के कारण किसान अपनी फ़सल
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं बेच पा रहे वहीं खुले बाज़ार में भी उचित क़ीमत नहीं
मिल पर रही। मसूर जैसी फ़सल का न्यूनतम समर्थन सरकार ने 4250 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है लेकिन सरकारी स्तर पर
किसानों से फ़सल खरीदने की व्यवस्था नहीं है। खुले बाजार में मसूर की क़ीमत 32 से 34 सौ रुपये प्रति क्विंटल से ज़्यादा नहीं मिल रही।

आखिर क्या है
समस्या की मूल वजह
टाल के किसानों
की समस्या का जड़ दलहन क्रय केंद्र से जुड़ा है। सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य
निर्धारित किये जाने के बावजूद राज्य और केंद्र किसी ने भी यहां क्रय केंद्र खोलने
की ज़हमत नहीं उठाई। किसान लंबे अरसे से क्रय केंद्र खोलने की मांग कर रहे हैं ताकि
उन्हें फ़सल की सही क़ीमत मिल जाए। किसानों ने कई स्तरों पर अपनी बात रखी। राज्य
सरकार ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि दलहन क्रय केंद्र खोलना उसके जिम्मे नहीं आता।
केंद्र सरकार की नीति समझ से परे है क्योंकि एक तऱफ किसानों से दलहन की खरीद नहीं
हो रही और दूसरी तरफ दाल को आयात किया जा रहा।
बेबस किसानों का
दर्द
फ़सल की क़ीमत नहीं
मिलने से टाल क्षेत्र के किसानों का दर्द बढ़ता जा रहा है। टाल से उठकर दलहन की फ़सल
घर पहुंच चुकी है लेकिन खरीददार नहीं है तो माली हालत भी ख़राब है। इलाके के
किसानों के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, पिछले दो सालों से हालात ऐसे ही हैं। कई किसानों ने बीते साल दाल की सही क़ीमत
नहीं मिलते देख घर मे फ़सल को स्टॉक कर लिए। अब इस साल घर मे फ़सल रखने तक कि जगह नहीं
है। मोलदियार टोला के किसान धर्मेंद्र सिंह को अपनी बेटी की शादी करनी है। लेकिन
बेटी की शादी आखिर करें कैसे क्योंकि फ़सल बिक नहीं रही। धर्मेंद्र सिंह की कहानी
बस एक नमूना समझिए... टाल क्षेत्र के हर किसान परिवार के अंदर आपको ऐसा ही दर्द
छिपा मिल जाएगा, बस उसे देखने की
नज़र चाहिए।

राजनीतिक रसूख़ के
बावजूद मिली निराशा
टाल के किसानों
का गुस्सा इस बात पर भी है कि इलाके से आने वाले बड़े सियासी चेहरे भी अबतक उन्हें
राहत नहीं दिला सके हैं। केंद्र से लेकर बिहार तक कि सरकार में नुमाइंदगी होने
बावजूद किसानों की मदद को हाथ नहीं उठे हैं। टाल विकास समिति के मांगों के बावजूद
दलहन ख़रीद के मुद्दे पर राज्य और केंद्र सरकार गेंद एक - दूसरे पाले में डाल रहे
हैं। यही नहीं अलग - अलग पार्टियों से आने वाले प्रभावशाली नेताओं एक दूसरे का
सियासी कद छोटा करने की ताक में किसानों की अनदेखी भी कर रहे हैं। इलाके के सियासी
क्षत्रप आपसी वर्चस्व की लड़ाई में किसानों की अनदेखी कर रहे हैं. टाल क्षेत्र से
बिहार सरकार के दो मंत्री एवं केंद्र में एक मंत्री शामिल हैं. स्थानीय सांसद के
दलीय अध्यक्ष भी केंद्र सरकार में ताकतवर मंत्री हैं. बावजूद इसके अगर किसानों की समस्या
का निदान नहीं निकल रहा तो मामला कहीं ना कहीं सियासी पेंच में फंसा है.

क्या है विकल्प ?
किसानों ने 28
मई के बंद का एलान काफी पहले ही कर दिया था
बावजूद इसके कोई ठोस पहल नहीं हुई लेकिन बंद के ठीक पहले राज्य सरकार की नींद टूटी
है। उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की अध्यक्षता में 28 मई को ही कृषि विभाग, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग, सहकारिता विभाग, वाणिज्यकर विभाग के मंत्रियों, अधिकारियों की
संयुक्त बैठक होने वाली है। बैठक में किसानों के लिए दलहन फ़सल का क्रय केन्द्र
खोलने पर चर्चा होनी है। नेफेड को दाल खरीद का जिम्मा देने की संभावना जताई जा रही
है। किसानों का आंदोलन बड़ा रूप ले उसके पहले एकमात्र विकल्प यही हो सकता है कि
किसानों से उचित मूल्य पर फ़सल ख़रीद का इंतज़ाम हो।