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पूर्वी चंपारण में पग-पग पर घपला ! अफसर-जनप्रतिनिधि सरकारी राशि लूट हो रहे मालामाल, पंचायती राज की योजनाओं में किया जा रहा 'टैक्स घोटाला'

पूर्वी चंपारण में पग-पग पर घपला ! अफसर-जनप्रतिनिधि सरकारी राशि लूट हो रहे मालामाल, पंचायती राज की योजनाओं में किया जा रहा 'टैक्स घोटाला'

PATNA:  बिहार में पग-पग पर घोटाले होते हैं. अगर अफसर व जनप्रतिनिधि का गठजोड़ हो गया फिर तो चांदी ही है. वैसी स्थिति में सरकारी राशि की बंदरबांट होने से कौन रोक सकता है? यही काम हो रहा पूर्वी चंपारण में । मोतिहारी जिले में अधिकारी व जनप्रतिनिधि सरकारी राशि को दोनों हाथ से लूटने में मस्त हैं । जब गठजोड़ है ही तो फिर काहे का डर ? 

पूर्वी चंपारण में पग-पग पर घपला !

पूर्वी चंपारण जिले में पंचायती राज विभाग के अधिकारी व जनप्रतिनिधि  योजनाओ में सरकार को देने वाले रॉयलटी व मालिकाना हक की टैक्स चोरी कर मालामाल हो रहे हैं। इस कारनामे से सरकार को करोड़ो का चूना लगा रहा है. जिले के 27 प्रखंडो के पंचायती राज योजनाओ के भुगतान की जांच सूक्ष्म तरीके से करा दी जाय तो बड़े घोटाले का खुलासा हो सकता है।  महिला मुखिया के पति , पुत्र व संबंधी के नाम पर फर्जी तरीके से इंटरप्राइजेज खोल कर योजनाओ का भुगतान धड़ल्ले से हो रहा है ।भुगतान में पंचायती राज कार्यालय के लेखापाल की मिलीभगत से बिना रॉयलटी व मालिकाना हक बिना काटे ही योजनाओ की राशि का भुगतान कर सरकारी राजस्व को चुना लगाया जा रहा है । 27 प्रखंडो में एक-दो प्रखंडों को छोड़ दिया जाय तो यह खेल सभी पंचायतों में धड़ल्ले से चल रहा है । 

पंचायती राज की योजनाओं में किया जा रहा 'टैक्स घोटाला'  

सूत्रों की मानें तो पंचायती राज  विभाग द्वारा जिले के सभी प्रखंडो में वर्ष 2022 में 15 वीं वित्त आयोग से एक अरब 27 करोड़ 55 लाख रू विभिन्न योजनाओ पर खर्च किया गया । जिसका रॉयलटी व मालिकाना हक का टैक्स लगभग 6 करोड़ 37 लाख सरकार को जान चाहिए था । लेकिन अधिकारी व जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से कुछ प्रखंडो को छोड़ दिया जाय तो टैक्स की राशि सरकारी खाता में नही जाकर अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों में बंदरबाट कर लिया गया ।अगर सूक्ष्म तरीके से जांच की जाय तो मेटेररियल भुगतान किए गए दुकान धरातल पर हैं ही नहीं । सिर्फ कागज में ही दुकान है। मेटेरियल के भुगतान में सरकारी नियम के अनुसार जीएसटी 2 प्रतिशत, लेबर-शेष एक प्रतिशत, रॉयलटी एक हज़ार ईट पर 45 रुपया प्रति एमक्यू ,लोकल बालू पर 75 रुपया, सोनबालू पर 75 रुपया, इस्टर्न चिप्स पर 150 रुपया प्रति एमक्यू. मालिकाना हक बेसिक रेट का 10 प्रतिशत, कुल मिलाकर योजना राशि का लगभग 6 प्रतिशत रू खनन विभाग के खजाने में जमा करना होता है । लेकिन जो जानकारी मिली है उसके अनुसार इस नियम को ताक पर रखकर पंचायती राज विभाग द्वारा जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से बिना टैक्स जमा किये धड़ल्ले से राशि भुगतान कर राजस्व की क्षति पहुंचाई जा रही है। 

जब धरातल पर योजनाओ में प्रयोग किये जा रहे मेटेरियल की दुकान ही नही  है तो फिर मैटेरियल खरीद व भुगतान कैसे किया जा रहा है...यह बड़ा सवाल है। पंचायती राज विभाग की योजनाओ के मेटेरियल भुगतान के लिए साइट पर लोड किये गए वाउचर की जांच की जाय तो धरातल पर 80 प्रतिशत दुकान मुखिया के सगे-संबंधी  के नाम पर दर्ज हैं । जब दुकानदार द्वारा सामान की खऱीद ही नहीं की गई तो बिक्री कैसे की जायेगी ? यह गंभीर प्रश्न है. इस पूरे खेले में लेखापाल-अधिकारी व जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत की बात सामने आ रही है। जो बिना टैक्स काटे ही भुगतान कर सरकारी राजस्व को चूना लगाकर मालामाल हो रहे हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी 

पूर्वी चंपारण जिले के जिला पंचायती राज पदाधिकारी ने बताया कि बिना रॉयलटी काटे व जनप्रतिनिधियों के सगा-संबंधी के नाम पर कागज पर दुकान चलाकर भुगतान करना गंभीर बात है । शिकायत मिलती है तो जांच कर दोषी के विरुद्ध कठोर करवाई की जाएगी। वहीं इस संबंध में जनकारी के लिए जिला खनन पदाधिकारी को फोन किया गया। लेकिन उके द्वारा फोन नही उठाने से जनकारी नही ली जा सकी ।

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