पटना. पटना हाईकोर्ट ने बिहार फार्मेसी कॉउन्सिल के रजिस्ट्रार के पद से सेवानिवृत होने के बाद भी कार्य करते रहने के मामले में सुनवाई की। चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को चार महीने में नए स्थाई रजिस्ट्रार की नियुक्ति करने का निर्देश दिया है।
साथ ही साथ कोर्ट ने विजिलेंस को भी चार महीने में जांच पूरा करने को कहा है। याचिकाकर्ता उमा शंकर शर्मा की जनहित याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता शिल्पी केशरी ने कोर्ट को बताया था कि बिहार फार्मेसी कॉउन्सिल के अध्यक्ष अनियमित ढंग से लाइसेन्स देते थे। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया था कि वे मनमानी ढंग से नियमों की अनदेखी कर लाइसेन्स फोन पर ही दे दिया करते थे।
कोर्ट ने मामलें को काफी गम्भीरता से लेते हुए राज्य निगरानी विभाग को पूरे मामलें की जांच करने का भी निर्देश दिया है। पूर्व में कोर्ट को राज्य सरकार की ओर से बताया गया था कि बिहार फार्मेसी कॉउन्सिल के पूर्व रजिस्ट्रार को पद से हटा दिया गया है।
कोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को रजिस्ट्रार के पद पर नए अधिकारी को अविलम्ब नियुक्त करने को भी कहा था। इसके पूर्व में कोर्ट ने सेवानिवृत रजिस्ट्रार द्वारा लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा दिया था। कथित तौर पर सेवानिवृत्ति के बाद भी बिहार फार्मेसी कौंसिल के रजिस्ट्रार के पद पर बने रहने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया था कि रजिस्ट्रार की नियुक्ति स्थाई तौर पर पटना हाई कोर्ट द्वारा एक अवमानना मामले में 19 अगस्त, 2011 को दिए गए आदेश को गलत तरीके से परिभाषित करते हुए, बगैर किसी विज्ञापन व साक्षात्कार के किया गया था। इस मामले में अगली सुनवाई अब 4 सप्ताह बाद होगी।