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श्री राम ने किया धनुष भंग और सीता ने राम को पहनाई वरमाला , श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे रामकथा

श्री राम ने किया धनुष भंग और सीता ने राम को पहनाई वरमाला , श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे रामकथा

PATNA : पालीगंज प्रखण्ड रघुनाथपुर गांव में अनन्त श्री विभूषित वैकुण्ठवासी परांकुशाचार्य जी महाराज की जयंती मनाई जा रही है. जिसके उपलक्ष्य में भगवान श्री राम की कथा चल रही है. वहीं श्री स्वामी रंग रामानुजाचार्य जी महाराज का प्रवचन चल रहा है. प्रवचन में भक्तों का विशेष उत्साह देखा जा रहा है. भक्तगण दूरदराज से आ रहे हैं. साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम भी चल रहा है. प्रवचन प्रसंग में पूज्य पाद स्वामी जी महाराज ने कहा कि भगवान श्री राम की धनुष भंग करने पर सीता जी ने मुस्कुराते हुए श्री राम के गले में वरमाला पहना दिया. उन्होंने कहा कि राजा जनक में मंत्रियों से चंदन माला आदि से अलंकृत दिव्य धनुष को ले आने को कहा. धनुष 8 पहियों वाली लोहे की बड़ी संदूक में रखा हुआ था. मंत्री पाँच हजार पहलवान वीरों को लेकर गए और वहां से ठेल कर उसे राजा जनक के दरबार में ले आये. मंत्रियों ने राजा जनक से कहा कि समस्त राजाओं से सम्मानित यह श्रेष्ठ धनुष है. राजा जनक ने महात्मा विश्वामित्र तथा श्री राम और लक्ष्मण से कहा कि यही वह शिव धनुष है, जिसे समस्त देवता, असुर,राक्षस, गंधर्व, यक्ष, किन्नर और महनाग भी नहीं चढ़ा  सके. फिर मनुष्य की कहां शक्ति है कि इस धनुष को चढ़ा कर हिलाने में भी समर्थ हो सके. राजा जनक ने कहा कि इसे राजकुमारों को दिखा दे. 

राजा जनक के वचन सुनकर विश्वामित्र ने श्रीराम से कहा कि रघुनंदन इस धनुष को देखो. महामुनि की आज्ञा से श्रीराम ने संदूक खोल कर उस धनुष को देखा और कहा कि अब मैं इस दिव्य धनुष को उठाने और चढ़ाने का प्रयत्न करता हूं. उसके लिए राजा जनक और विश्वामित्र दोनों ने अनुमति दे दी. श्रीराम में आश्चर्यमयी शक्ति है. उन्होंने इस धनुष को बीच में पकड़कर लीला पूर्वक उठा लिया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी. महात्मा श्री राम ने ज्यों ही उसे कान तक खींचा कि वह बीच से ही टूट गया. उस समय हजारों मनुष्यों की दृष्टि श्रीराम की ओर लगी हुई थी. टूटते समय उससे वज्रपात के समान बड़ी भारी ध्वनि हुई. उस समय ऐसा लगा कि पर्वत फटा हो, बड़ा भूकंप हुआ हो. धनुष के टूटने से भयंकर शब्द  गुंजायमान हुआ, जिसे सुनकर विश्वामित्र, जनक, राम और लक्ष्मण को छोड़कर वहां जितने भी लोग उपस्थित थे, वे सब मूर्छित हो गये. कुछ काल के बाद सब की मूर्छा दूर हो गई. श्री राम द्वारा धनुष टूटने पर राजा जनक ने विश्वामित्र से कहा- आज मैंने रघुनंदन श्री राम के पराक्रम को अपनी आंखों से देख लिया. शिव धनुष को उठाना और तोड़ना अत्यंत अद्भुत अचिंत्य और अतर्कनीय है. मैंने सीता को वीर्यशुल्का बनाया था, वह मेरी प्रतिज्ञा आज सफल हो गई. मेरी पुत्री सीता मुझे प्राण से प्रिय है, उसको श्रीराम के लिए समर्पण करूंगा. 

महर्षि वाल्मीकि ने जनक नंदिनी सीता के द्वारा श्री राम के गले में माला पहनाने का उल्लेख नहीं किया है. अध्यात्म रामायण में कहा गया है कि शिव धनुष टूटने के बाद श्री सीता जी अपने दाहिने हाथ में स्वर्णमयी माला लेकर श्री राम के पास आयीं और मुस्कुराती हुई उस जयमाला को उनके गले में डाल दीं. आनंद रामायण के अनुसार सीता जी नवरत्न निर्मित माला को दाहिने हाथ में लेकर श्रीराम के गले में डाल दी हैं. इसके बाद राजा जनक ने श्रीराम से विवाह के लिए प्रस्ताव रखा. 

श्री राम बोले कि जब तक पिता जी का आज्ञा नहीं होती. तब तक मैं विवाह नहीं कर सकता. राजा जनक ने मंत्रीयों को अयोध्या भेजकर राजा दशरथ को बारात लेकर आने को आग्रह किया. राजा दशरथ चतुरंगिनी सेना को साथ लेकर बारात लेकर चल दिए. राजा जनक ने बारातियों का भव्य स्वागत किया. इसके बाद शास्त्रानुसार वेद मंत्रों के द्वारा भगवान श्री राम और महारानी सीता का विवाह संपन्न हुआ. साथ हीं लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न जी का विवाह उर्मिला, सुकृति और मांडवी से संपन्न हुआ. 

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